शिमला: हिमाचल की आर्थिक स्थिति को सहारा देने के लिए सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार द्वारा लागू वाटर सेस को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है. हिमाचल सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र में वाटर सेस से संबंधित बिल पारित किया है. राज्य की 172 पनबिजली परियोजनाओं पर वाटर सेस के जरिए राजस्व जुटाने की कवायद को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने अदालत में दाखिल कई गई याचिका पर केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है.
मामले की सुनवाई अब 25 अप्रैल को होगी. मामले में प्रतिवादियों को याचिका का जवाब 25 अप्रैल तक दाखिल करने के लिए आदेश जारी किए गए हैं. वाटर सेस लागू करने के फैसले को जीएमआर होली-बजोली पनबिजली परियोजना प्रबंधन ने चुनौती दी है. इस संदर्भ में हिमाचल सरकार ने 16 फरवरी को जलशक्ति विभाग की तरफ से अधिसूचना जारी की थी. हिमाचल में वाटर सेस 10 मार्च से लागू माना जाएगा.
वहीं, सेस को चुनौती देने वाली याचिका में दिए गए तथ्यों के अनुसार राज्य सरकार ने वर्ष 2006 में पनबिजली परियोजना को बढ़ावा देने के लिए निजी कंपनियों से निविदाएं आमंत्रित की थी. इसके तहत परियोजना निर्माण, उसे फंक्शनल करना और फिर हस्तांतरण किया जाना शामिल था. याचिका में कहा गया है कि 22 जून 2006 को सरकार ने कंपनी को चंबा के बजोली-होली में 180 मैगावाट की पनबिजली परियोजना आवंटित की थी. उसके बाद कंपनी ने परियोजना की कुल लागत की 50 फीसदी के तौर पर 82.06 करोड़ रुपये की अपफ्रंट प्रीमियम मनी राज्य सरकार के पास जमा करवाई.
याचिका में बताया गया कि फिर 29 मार्च 2011 को कंपनी ने अपफ्रंट प्रीमियम मनी के तौर पर दोबारा 41.3 करोड़ रुपये जमा करवाए. उसके बाद 15 फरवरी 2023 को राज्यपाल ने वाटर सेस अध्यादेश पारित किया. अगले ही दिन सरकार ने वाटर सेस के बारे में अधिसूचना जारी कर दी. याचिका में दलील दी गई कि 24 फरवरी 2023 को पनबिजली परियोजना एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री को प्रतिवेदन किया था. लेकिन सरकार ने हिमाचल प्रदेश वाटर सेस विधेयक 2023 पारित कर दिया. याचिका में आरोप लगाया गया है कि पनबिजली परियोजना पर वाटर सेस लगाया जाना संविधान के प्रावधानों के विपरीत है.
उल्लेखनीय है कि आर्थिक बदहाली का सामना कर रही हिमाचल सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए पन बिजली उत्पादन पर वाटर सेस लागू किया है. राज्य सरकार का आकलन है कि इससे सालाना चार हजार करोड़ रुपए तक का राजस्व आएगा. सरकार का तर्क है कि पानी राज्य का विषय है और राज्य सरकार को वाटर सेस लगाने का पूरा हक है. पड़ोसी राज्य उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर राजस्व जुटाने के लिए प्रदेश सरकार ने बिजली उत्पादन पर पानी पर सेस लगाने का फैसला लिया. फिलहाल, मामले पर सुनवाई 25 अप्रैल को होगी.
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