शिमला: हिमाचल में 250 करोड़ रुपये के स्कॉलरशिप स्कैम में 2 अन्य आरोपी केसी ग्रुप पंडोगा के उपाध्यक्ष हितेश गांधी और शिक्षा विभाग में तत्कालीन अधीक्षक अरविंद राजटा की आय से ज्यादा संपत्ति को जब्त करने की तैयारी में है. ED ने पिछले कल ही मंगलवार को मोहाली और शिमला में दबिश देकर दो अन्य आरोपी राजदीप और कृष्ण कुमार की 5 अचल संपत्ति और 14 बैंक खातों में पड़ी 6.25 करोड़ की शेष राशि को जब्त किया है. आखिर ये स्कॉलरशिप स्कैम कैसे हुआ आइए विस्तार से जानते हैं. बता दें कि हिमाचल के स्कॉलरशिप स्कैम में घोटालेबाजों ने छात्रों का हक मार कर करोड़ों की संपत्ति बनाई थी. CBI के बाद ED ने भी मामला दर्ज किया और जांच शुरू की. मनी ट्रेल के सहारे ED ने बड़ा एक्शन लिया और 6 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति अटैच की है. हिमाचल के इतिहास के सबसे बड़े घोटाले मेंदलालों ने कागजों में हेराफेरी कर 2.38 लाख छात्रों का हक हड़प लिया गया था.
266 करोड़ रुपये का है घोटाला: दलाल होटलों में बैठकर सेटिंग करते थे. शातिरों को अपने ऊपर इतना भरोसा था कि उन्होंने 19,915 छात्रों को सिर्फ 4 मोबाइल नंबर्स से जुड़े बैंक खातों में राशि जारी कर दी. गौरतलब है कि ये सब मोबाइल नंबर फर्जी थे और 19 हजार से ज्यादा छात्रों के हक की सारी रकम दलाल हड़प गए थे. कुल फर्जीवाड़ा 266 करोड़ रुपए का है. इसमें से 256 करोड़ रुपए निजी संस्थानों को जारी किए गए और दस करोड़ रुपए सरकारी संस्थानों को दिए गए थे.
किन्हें मिलती है स्कॉलरशिप: सबसे पहले स्कॉलरशिप प्रोसेस को जानते हैं. केंद्र व राज्य सरकार मेधावी छात्रों को पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप देती है. ये स्कॉलरशिप SC, ST, OBC, माइनॉरिटी वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिए होती है. स्कॉलरशिप की ये राशि छात्रों को सीधे तौर पर नहीं दी जाती है, बल्कि पात्र स्टूडेंट जिन सरकारी अथवा निजी संस्थानों में विभिन्न कोर्स की पढ़ाई करने जाते हैं, उस संस्थान के खाते में ये रकम जाती है. जिसके बाद वो संस्थान छात्र अथवा छात्रा को कोर्स विशेष की पढ़ाई करवाता है.
उदाहरण के लिए हिमाचल सरकार की मेधा प्रोत्साहन योजना को लेते हैं. इस योजना में राज्य सरकार निजी कोचिंग संस्थानों को प्रति छात्र 1 लाख रुपए देती है. ये पैसा स्टूडेंट को नहीं मिलता, बल्कि संस्थान के खाते में जाता है और संस्थान उस पैसे से छात्र को प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे UPSC आदि की कोचिंग प्रदान करता है. राज्य सरकार इसके लिए संस्थानों की सूची जारी करती है. वहीं, शर्तें पूरी करने वाले संस्थानों को कोचिंग के लिए अधिकृत किया जाता है. इसी तरह केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न वर्ग के स्टूडेंट्स के लिए पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप देती है. इसकी राशि अलग-अलग कोर्स के लिए अलग-अलग होती है. पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के तहत छात्र हिमाचल प्रदेश के अलावा देश के किसी भी अधिकृत शैक्षणिक संस्थान में अपनी पसंद के कोर्स की पढ़ाई कर सकते हैं.
कब शुरू हुआ फर्जीवाड़ा और कैसे आया पकड़ में: हिमाचल में स्कॉलरशिप घोटाला 2013 से चल रहा है. वहीं, आशंका तो ये भी है कि फर्जीवाड़ा इससे भी पहले 2009 से चल रहा था, लेकिन इसका खुलासा 2013 में चला. हुआ यूं कि IAS अफसर अरुण शर्मा जब शिक्षा सचिव थे तो उन्होंने घोटाला सामने आने के बाद पुलिस में मामला दर्ज करवाया. शिक्षा विभाग की संबंधित ब्रांच के एक अफसर को शक हुआ कि स्कॉलरशिप में कुछ गड़बड़ी हो रही है. उन्होंने इस बारे में शिक्षा सचिव अरुण शर्मा से बात की. उन्होंने अपने स्तर पर जांच की और पाया कि फर्जीवाड़ा हो रहा है. शिक्षा विभाग के कुछ अफसर व कर्मचारी संस्थानों के दलालों से मिलकर कागजों में ही रकम हड़प रहे हैं. पहले मामला पुलिस के पास गया और फिर जयराम सरकार ने 2019 में CBI जांच की सिफारिश की. CBI के साथ ही ED ने भी अपने स्तर पर जांच शुरू कर दी, क्योंकि जहां भी एक निश्चित रकम से अधिक का मामला हो, ईडी स्वत जांच शुरू कर सकती है. अब ED ने इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया है.
बैंक में खोले थे छात्र-छात्राओं के नाम पर फर्जी खाते: बता दें कि कैग ने अपनी 2014 की रिपोर्ट में संकेत किया था कि स्कॉलरशिप में फर्जीवाड़ा हुआ है, लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंगी. दरअसल, पहले ऑनलाइन ट्रांजेक्शन नहीं होती थी तो दलाल फर्जी विड्रॉल फॉर्म साइन करवा कर रकम हड़प लेते थे. बैंक में पात्र स्टूडेंट्स के नाम पर फर्जी खाते खोलकर स्कॉलरशिप हड़प ली गई. 38 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स के फर्जी खाते खोले गए थे. रिकार्ड के अनुसार 2016-2017 के शैक्षणिक सत्र तक कुल 924 निजी संस्थानों में कोर्स की पढ़ाई कर रहे छात्रों को 210.05 करोड़ रुपये और 1868 सरकारी संस्थानों के छात्रों को महज 56.35 करोड़ रुपये स्कॉलरशिप के दिए गए. इससे पता चलता है कि घोटाला 266 करोड़ रुपए से ज्यादा का था. हैरानी की बात है कि हिमाचल के Tribal Area के छात्रों को तो इसका लाभ मिला ही नहीं. उनके हिस्से की छात्रवृत्ति तो फर्जी खातों के जरिए प्राइवेट शिक्षण संस्थान ही खा गए. इस तरह घोटाले का जाल हिमाचल सहित देश के अन्य राज्यों तक फैला था.
सबमें कमीशन बंटता था: निजी शिक्षण संस्थानों के प्रबंधकों से पूछताछ में भी सामने आया कि वो शिक्षा विभाग के अफसरों को कमीशन देते थे. कमीशन की ये रकम दस फीसदी तय थी. यानी यदि किसी संस्थान को 1 करोड़ रुपए ट्रांजेक्ट किए गए तो अफसरों की रिश्वत 10 लाख होती थी. इसके बाद ही शिक्षा विभाग के अधीक्षक अरविंद राज्टा CBI की राडार पर आए थे और उन्हें गिरफ्तार किया गया था. बाद में उन्हें जमानत मिली, लेकिन अभी ED ने उन्हें फिर से पकड़ लिया है. CBI की जांच में यह भी पता चला है कि स्कॉलरशिप की स्वीकृति से संबंधित फाइलों को शिक्षा विभाग टॉप मोस्ट अफसरों तक पहुंचने नहीं दिया जाता था. निचले स्तर के अधिकारी-कर्मचारी फाइलों को अपने स्तर पर ही मार्क कर देते थे. जांच में यह भी पता चला कि नियमों के खिलाफ निजी ई-मेल आईडी से फर्जीवाड़े को अंजाम दिया जाता था.
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