शिमला: जिला सिरमौर के एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी थी. इस मामले में सेशन जज सिरमौर ने अपराधी को उम्र कैद की सजा सुनाई थी. सेशन जज के फैसले के खिलाफ दोषी ने हाईकोर्ट में अपील की थी. हिमाचल हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और कहा कि हत्या के जुर्म के लिए निचली अदालत ने साक्ष्यों के आधार पर सही निर्णय दिया है. लिहाजा हाईकोर्ट ने दोषी को सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है. हिमाचल हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति रंजन शर्मा की खंडपीठ ने सेशन जज सिरमौर के फैसले को बरकरार रखा है.
ये है सारा मामला: मामले के अनुसार सिरमौर निवासी शुपा राम पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप था. हिमाचल हाईकोर्ट ने सारे मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि शुपा राम का दोष निचली अदालत में सिद्ध हुआ था. शुपा राम की शादी सत्या देवी से हुई थी. दोनों के पांच बच्चे थे, जो अपने चाचा के साथ अलग गांव जाखल में रहते थे. वर्ष 2015 में शुपा राम का बड़ा बेटा मां-पिता से मिलने के लिए आया. तब सत्या देवी ने अपने बेटे से कहा कि शुपा राम ने उसके साथ मारपीट की है. सभी में आपस में बातचीत हुई और झगड़ा सुलझ जाने के बाद तीनों ने एक साथ खाना खाया.
बेटे को घर से भेज की पत्नी की हत्या: सुबह अचानक शुपा राम ने अपने बेटे को कहा कि वह अपने चाचा से कुछ पैसों का इंतजाम करे, ताकि उसकी मां की का इलाज करवाया जा सके. सुबह साढ़े छह बजे बेटा पैसों का इंतजाम करने के लिए अपने चाचा के घर की तरफ चला गया. चाचा उसे रास्ते में ही मिल गया और वे दोनों वापिस लौट आए. घर लौटने पर चाचा-भतीजा ने पाया कि सत्या देवी घर के बाहर लहूलुहान हालत में पड़ी थी. घायल सत्या देवी को उठाकर घर के भीतर लाया गया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी. चाचा-भतीजा ने देखा कि इन सबसे बेखबर शुपा राम सोया हुआ था.
शुपा राम के बेटे ने पुलिस को सारी बात बताई और शुपा राम के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया गया. अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए गवाहों और बयानों के आधार पर निचली अदालत ने शुपा राम को उम्रकैद की सजा सुनाई. इस सजा के खिलाफ शुपा राम ने हाईकोर्ट में अपील की थी, जो खारिज हो गई. वहीं, सेशन जज सिरमौर ने शुपा राम को उम्र कैद के साथ 10 हजार रुपए जुर्माना भी लगाया था.
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