शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अदालती आदेशों की अनुपालना न करने पर कड़ा संज्ञान लिया है. अदालत ने सिविल कारावास की सजा देने के लिए वन विभाग के दोषी अधिकारी की जानकारी तलब की है. न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बीसी नेगी ने मामले की सुनवाई आज के लिए निर्धारित की है. अदालत ने कहा कि जब तक अदालत के आदेश या निर्णय सक्षम अदालत की ओर से निरस्त नहीं किए जाते हैं, तब तक अधिकारियों की ओर से इनकी अनुपालना करनी होगी.
अदालत के निर्णय को अधिकारियों की ओर से दोबारा जांचने की प्रक्रिया अपराधिक अवमानना की कार्रवाई को वांछित करती है. अदालत ने किरपा राम की ओर से दायर अनुपालना याचिका की सुनवाई के बाद यह आदेश दिए. मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि जिला मंडी के उप वन संरक्षक सुकेत वन खंड ने अदालत के निर्णय को लागू करने के लिए आठ हफ्ते का अतिरिक्त समय मांगा था. दलील दी गई थी कि याचिकाकर्ता के हक में सुनाए गए फैसले को जांचने के लिए सरकार को भेजा गया है.
अदालत ने अपने आदेशों में कहा कि याचिकाकर्ता के हक में जो फैसला सुनाया गया है, उस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट भी अपनी मुहर लगा चुका है, लेकिन सरकार की ओर से बार-बार इसी मुद्दे को किसी न किसी याचिका के माध्यम से चुनौती दी जा रही है. अदालत ने कहा कि सरकार की इस कार्यप्रणाली के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पांच लाख रुपये की कॉस्ट भी लगाई है. अदालत ने याचिकाकर्ता को आठ वर्ष के बाद वर्क चार्ज स्टेटस देने के आदेश दिए थे. अदालत ने पाया कि जोगेंद्र सिंह को यह लाभ पहली जनवरी 2002 से दे दिया गया है.
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