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सरोगेसी से मां बनी महिला को मातृत्व अवकाश से नहीं किया जा सकता इनकार: HC - Shimla latest news

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरोगेसी से अपने फैसले में कहा कि मां बनने वाली महिला कर्मचारी भी मातृत्व अवकाश पाने की हकदार है. कोर्ट ने कहा कि सरोगेसी के माध्यम से बनी मां और एक प्राकृतिक मां में भेद करने से नारीत्व का अपमान होगा. बच्चे के जन्म पर मातृत्व कभी खत्म नहीं होता है.

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Published : Mar 4, 2021, 8:07 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा कि सरोगेसी से मां बनने वाली महिला कर्मचारी भी मातृत्व अवकाश पाने की हकदार है. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने सुषमा देवी की दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया है.

खण्डपीठ ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश का मतलब महिलाओं को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करवाना है. मातृत्व और बचपन दोनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है.मातृत्व अवकाश प्रदान करते समय न केवल मां और बच्चे के स्वास्थ्य के मुद्दों पर विचार किया जाता है, बल्कि दोनों के बीच स्नेह का बंधन बनाने के लिए छुट्टी प्रदान की जाती है.

किसी महिला से नहीं किया जा सकता भेदभाव

कोर्ट ने कहा कि सरोगेसी के माध्यम से बनी मां और एक प्राकृतिक मां में भेद करने से नारीत्व का अपमान होगा. बच्चे के जन्म पर मातृत्व कभी खत्म नहीं होता है. इसी कारण सरोगेसी व्यवस्था के माध्यम से बच्चा पाने वाली एक मां को मातृत्व अवकाश से इनकार नहीं किया जा सकता है. इन परिस्थितियों में एक महिला के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है.

बच्चे को मां की देखभाव की जरूरत

कोर्ट ने कहा कि जहां तक मातृत्व के लाभ का संबंध है, केवल इस आधार पर उससे भेदभाव नहीं किया जा सकता कि महिला सरोगेसी से मां बनी है, एक नवजात बच्चे को दूसरों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता है. क्योंकि उसे लालन पालन की आवश्यकता है और यह सबसे महत्वपूर्ण अवधि है जब बच्चे को अपनी मां की देखभाल और ध्यान की आवश्यकता होती है. जीवन के पहले वर्ष में बच्चा बहुत कुछ सीखता है. इस दौरान दोनों में स्नेह का बंधन भी विकसित करना होगा.

ये भी पढ़ें- कांगड़ा का राजा और सिरमौर की रानी, पढ़ें देईजी साहिबा मंदिर की कहानी

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा कि सरोगेसी से मां बनने वाली महिला कर्मचारी भी मातृत्व अवकाश पाने की हकदार है. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने सुषमा देवी की दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया है.

खण्डपीठ ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश का मतलब महिलाओं को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करवाना है. मातृत्व और बचपन दोनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है.मातृत्व अवकाश प्रदान करते समय न केवल मां और बच्चे के स्वास्थ्य के मुद्दों पर विचार किया जाता है, बल्कि दोनों के बीच स्नेह का बंधन बनाने के लिए छुट्टी प्रदान की जाती है.

किसी महिला से नहीं किया जा सकता भेदभाव

कोर्ट ने कहा कि सरोगेसी के माध्यम से बनी मां और एक प्राकृतिक मां में भेद करने से नारीत्व का अपमान होगा. बच्चे के जन्म पर मातृत्व कभी खत्म नहीं होता है. इसी कारण सरोगेसी व्यवस्था के माध्यम से बच्चा पाने वाली एक मां को मातृत्व अवकाश से इनकार नहीं किया जा सकता है. इन परिस्थितियों में एक महिला के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है.

बच्चे को मां की देखभाव की जरूरत

कोर्ट ने कहा कि जहां तक मातृत्व के लाभ का संबंध है, केवल इस आधार पर उससे भेदभाव नहीं किया जा सकता कि महिला सरोगेसी से मां बनी है, एक नवजात बच्चे को दूसरों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता है. क्योंकि उसे लालन पालन की आवश्यकता है और यह सबसे महत्वपूर्ण अवधि है जब बच्चे को अपनी मां की देखभाल और ध्यान की आवश्यकता होती है. जीवन के पहले वर्ष में बच्चा बहुत कुछ सीखता है. इस दौरान दोनों में स्नेह का बंधन भी विकसित करना होगा.

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