शिमला: हिमाचल प्रदेश के नाहन स्थित डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जनरल सर्जरी के सीनियर रेजीडेंट डॉ. अनुपम को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग को आदेश जारी किए हैं कि वो डॉ. अनुपम को नीट सुपर स्पेशिएलिटी कोर्स के लिए एनओसी जारी करे. यही नहीं, हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सख्त टिप्पणियां की हैं.
अदालत ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग का सोते रहना और कोई स्पष्ट फैसला न करना प्रार्थी डॉक्टर को उसके अधिकारों से वंचित करने जैसा है. यही नहीं, हाईकोर्ट ने विभाग की कार्यप्रणाली को निंदनीय भी बताया. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन शर्मा ने विभाग को आदेश जारी किए कि वो प्रार्थी डॉक्टर को एनओसी जारी करे और साथ ही मूल प्रमाण पत्र भी सौंपे, ताकि वो काउंसलिंग में भाग ले सके.
मामले के अनुसार नाहन मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जनरल सर्जरी डिपार्टमेंट के सीनियर रेजीडेंट डॉ. अनुपम ने नीट सुपर स्पेशिएलिटी टेस्ट क्वालीफाई किया है. नेशनल मेडिकल कमीशन की तरफ से आयोजित नीट सुपर स्पेशिएलिटी 2023 की परीक्षा पास करने के बाद डॉ. अनुपम ने स्वास्थ्य विभाग से कोर्स के लिए एनओसी और एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी लीव के लिए एप्लाई किया. स्वास्थ्य विभाग से सहयोग न मिलने पर डॉ. अनुपम ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई पर एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर को एनओसी देने से इनकार करने और एक्सट्रा ऑर्डिनरी लीव की अनुमति नहीं देने को गलत पाया.
याचिकाकर्ता डॉ. अनुपम शर्मा ने एनओसी जारी करने और असाधारण अवकाश के लिए स्वास्थ्य निदेशक को आवेदन किया था. स्वास्थ्य विभाग ने न तो याचिकाकर्ता के अनुरोध को स्वीकार किया और न ही इस संबंध में कोई निर्णय बताया. सिर्फ याचिकाकर्ता को छह नवंबर को मौखिक रूप से सूचित किया गया कि एनओसी जारी नहीं किया जा सकता. ऐसे में याचिकाकर्ता के पास अदालत का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था.
न्यायालय ने पाया कि स्वास्थ्य विभाग का मामले पर सोते रहने के अलावा उस पर विचार न करना और न ही कोई निर्णय देना याचिकाकर्ता को उसके अधिकारों से वंचित करने जैसा है. न्यायालय ने कहा कि निष्पक्षता की मांग है कि विभाग को मामले पर उचित आदेश पारित करना चाहिए था. हाईकोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई न केवल निंदा के लायक है, बल्कि यह मनमानी और विकृति को बढ़ावा देने वाली है. सुनवाई के दौरान प्रतिवादियों की ओर से उपस्थित महाधिवक्ता ने तर्क दिया था कि इस संबंध में बनाई गई नीतियों के प्रावधानों के अनुसार एनओसी नहीं दिया जा सकता है.
वहीं, नीतियों पर गौर करने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि दूसरे पीजी कोर्स के लिए एनओसी नहीं दी जा सकता है. दिलचस्प यह कि उसके लिए याचिकाकर्ता ने आवेदन नहीं किया है. इस पर हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को सख्त निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता के पक्ष में तुरंत एनओसी जारी करें और डॉक्टर के मूल प्रमाण पत्र भी उसे सौंप दें, ताकि वो काउंसलिंग में भाग ले सके.
ये भी पढ़ें: धार्मिक पर्यटन स्थल तत्तापानी में अवैध अतिक्रमण पर हाईकोर्ट सख्त, राज्य सरकार से मांगा जवाब