शिमला: राजधानी के समीप छराबड़ा स्थित वाइल्ड फ्लावर होटल (wildflower hotel shimla) की संपत्ति के मामले में ईस्ट इंडिया होटल्स (ईआईएच) की तरफ से दाखिल अपील को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया (wildflower hotel property case) है. इस फैसले से हिमाचल सरकार को बड़ी राहत मिली है. हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सीबी बारोवालिया की डिविजन बैंच का वाइल्ड फ्लावर होटल पर आया फैसला ईआईएच के लिए झटका साबित हुआ है. मामला वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल की संपत्ति से (wildflower hotel property case) जुड़ा है. ईआईएच यानी ईस्ट इंडिया होटल्स ने उक्त अपील मध्यस्थता और सुलह अधिनियम यानी आरबिट्रेशन में दाखिल की थी.
मामले के अनुसार वाइल्ड फ्लावर हॉल की संपत्ति का मालिकाना हक राज्य सरकार के पास था. होटल वाइल्ड फ्लावर हाल को हिमाचल प्रदेश पर्यटन निगम संचालित करता था. वर्ष 1993 में यहां आग लगने से ये होटल नष्ट हो गया था. इसे फिर से बनाने और पांच सितारा होटल के तौर पर विकसित करने के लिए वैश्विक टेंडर आमंत्रित किए गए थे. टेंडर प्रक्रिया में ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड ने भी भाग लिया. इस कंपनी के पास देश और दुनिया के अन्य हिस्सों में ऐसे प्रोजेक्ट चलाने का अनुभव था. लंबी प्रक्रिया के बाद राज्य सरकार ने ईस्ट इंडिया होटल्स के साथ साझेदारी (Himachal High court on wildflower hotel property case) में जाने का फैसला लिया.
संयुक्त उपक्रम के तहत काम आगे बढ़ाया गया और संयुक्त कंपनी मशोबरा रिजाट्र्स लिमिटेड के नाम से बनाई गई. तय किया गया कि राज्य सरकार की 35 फीसदी से कम शेयर होल्डिंग नहीं होगी. इसके अलावा ईआईएच की शेयर होल्डिंग भी 36 फीसदी से कम नहीं होगी, ये तय किया गया. साथ ही ये भी फैसला लिया गया कि ईआईएच को 55 फीसदी से अधिक होल्डिंग नहीं मिलेगी. जमीन सौंपने के बाद चार साल में भी होटल फंक्शनल नहीं हुआ था, जैसा कि करार में तय किया गया था.
उल्लेखनीय है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1995 में पर्यटन विकास निगम के इस होटल को निजी हाथों में देने का फैसला लिया. अक्टूबर 1995 को इस संपत्ति को लेकर ईस्ट इंडिया होटल के साथ ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट साइन किया गया. एग्रीमेंट का मकसद पांच सितारा होटल का निर्माण व संचालन करना था. फिर कांग्रेस सरकार ने ही कन्वेंयस डीड के माध्यम से वर्ष 1997 में ये भूमि मशोबरा रिसोर्ट लिमिटेड के पक्ष में स्थानांतरित कर दी. ज्वाइंट वेंचर परियोजना की कुल लागत 40 करोड़ आंकी गई. सरकार के लिए भूमि के रूप में 35 फीसदी भागीदारी तय हुई. कांग्रेस सरकार के समय इस परियोजना की लागत लगातार बढ़ती गई और ये सौ करोड़ रुपए तक पहुंच गई. वहीं, कांग्रेस सरकार ने इस परियोजना में राज्य की घटती भागीदारी के मामले में कोई कदम नहीं उठाया.
बाद में भाजपा सरकार के समय 2002 में ईस्ट इंडिया होटल (east india hotels wildflower case) के साथ ज्वाइंट वेंचर अग्रीमेंट को रद्द किया गया. बाद में मामला हाईकोर्ट पहुंच गया था. अदालत ने इसमें आर्बिट्रेटर नियुक्त किया. आर्बिट्रेटर ने 23 जुलाई 2005 को इस मामले में अवार्ड दे दिया, जिसके अनुसार भूमि सरकार को वापिस होनी है और सरकार इसे लीज पर कंपनी को देगी. सरकार ने आर्बिट्रेटर के फैसले को मान लिया. वहीं, ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड ने उक्त अवार्ड के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, वर्ष 2016 में वो याचिका खारिज हो गई. मामला हाईकोर्ट की डबल बैंच के पास आया.
कांग्रेस के समय बना था होटल: ये होटल पूर्व में कांग्रेस सरकार के समय में वर्ष 1995 में बनाया गया था. उस समय जमीन की कीमत 7 करोड़ रुपए तय की गई थी. उस दौरान पूरा प्रोजेक्ट चालीस करोड़ रुपए का था. कंपनी ने चालाकी की और प्रोजेक्ट कॉस्ट बढ़ा दी, लेकिन लैंड वैल्यू नहीं बढ़ाई. लैंड राज्य सरकार की है. फिर राज्य सरकार को 1995 से इक्विटी के तौर पर सालाना एक करोड़ रुपए मिलना है, लेकिन हाईकोर्ट में केस की जल्द सुनवाई नहीं होने से हिमाचल को अब तक 27 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका था. इस बीच बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा सरकारें सत्ता में आती रही. इस होटल का इतिहास ब्रिटिश हुकूमत के समय से है. यहां पुरानी इमारत में लार्ड किचनर ठहरा करते थे. समुद्र तल से 8 हजार फीट से अधिक ऊंचाई वाला ये स्थान बहुत मनोरम है. बाद में इसे ओबेराय समूह ने ले लिया था. अब हाईकोर्ट ने इस मामले में ईआईएच की अपील खारिज की है. देखना है कि अब इस मामले में राज्य सरकार का क्या रुख रहता है.
ये भी पढ़ें: कल सोलन में प्रियंका गांधी की रैली, 'परिवर्तन प्रतिज्ञा' लेकर करेंगी चुनावी शंखनाद