शिमला: कानून का डंडा पड़ा तो लोक निर्माण विभाग ने 24 घंटे के अंदर हाईकोर्ट के आदेश पर अमल कर दिया. एक दिन पहले ही हाईकोर्ट ने कहा था कि हिमाचल सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है. इससे पहले एक मामले में हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर-इन-चीफ और धर्मपुर डिवीजन के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर की सैलरी रोकने के आदेश दिए थे. अदालती आदेश पर अमल न करने के कारण हाईकोर्ट ने ये सख्ती की थी. हाईकोर्ट की तरफ से सैलरी रोकने का आदेश आते ही 24 घंटे के भीतर अदालती आदेश की अनुपालना कर दी गई. मामला करीब पांच साल पुराना है. अदालती आदेश के बावजूद लोक निर्माण विभाग एक कर्मचारी को नियुक्ति नहीं दे रहा था. प्रार्थी ने हाईकोर्ट में अनुपालना याचिका दाखिल की.
दो बड़े अफसरों की सैलरी रोकने के थे आदेश: हाईकोर्ट ने आदेश की अनुपालना न करने पर दो बड़े अफसरों की सैलेरी रोकने के आदेश जारी कर दिए. इससे अफसरशाही में हडक़ंप मच गया. आनन-फानन में अदालती आदेश की अनुपालना के दस्तावेज तैयार किए गए और प्रार्थी का हक उसे दिया गया. इसके बाद अदालत ने भी अफसरों के वेतन को रोकने संबंधी आदेश वापिस ले लिया. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने अनिल कुमार नामक प्रार्थी की तरफ से दाखिल की गई अनुपालना याचिका की सुनवाई के बाद वेतन रोकने से जुड़े आदेश जारी किए थे.
PWD फैसले पर अमल करने में रहा था नाकाम: लोक निर्माण विभाग के दो बड़े अफसरों का वेतन रोकने का आदेश आते ही 26 सितम्बर 2018 को प्रार्थी के पक्ष में आए फैसले पर 24 घंटे में अमल कर दिया गया. इससे पहले 12 जून को जब मामले की सुनवाई हुई थी तो अदालत ने आदेश में साफ किया था कि 42 दिन में प्रार्थी के पक्ष में आए फैसले पर अमल किया जाए. यदि ऐसा ना हुआ तो इसके लिए जिम्मेदार कर्मचारी कोर्ट में हाजिर रहें. फिर मामले पर सुनवाई 24 जुलाई को निर्धारित की गई थी, लेकिन उस दिन भी लोक निर्माण विभाग फैसले पर अमल करने में नाकाम रहा था. मामले पर सुनवाई के दौरान विभाग ने एक बार फिर मामले में और समय दिए जाने का आग्रह किया तो अदालत का सब्र का बांध टूट गया.
हाईकोर्ट ने एक्स्ट्रा टाइम देने के इनकार किया और कहा कि जब तक फैसले पर अमल नहीं हो जाता इंजीनियर इन चीफ और एग्जीक्यूटिव इंजीनियर का वेतन जारी न किया जाए. मामले के अनुसार प्रार्थी अनिल कुमार लोक निर्माण विभाग के धर्मपुर डिवीजन में वर्ष 1998 में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के तौर पर नियुक्त हुआ था. उसे वर्ष 2007 में उसे नौकरी से निकाल दिया गया. अनिल कुमार लेबर कोर्ट गया और वहां से उसे राहत मिल गई. लेबर कोर्ट ने लोक निर्माण विभाग को आदेश दिए गए कि वह अनिल कुमार को गलत तरीके से निकाले जाने पर एकमुश्त 25 हजार रुपए दे. लेबर कोर्ट के आदेश पर अमल न होने से मामला हाईकोर्ट पहुंचा. हाईकोर्ट ने प्रार्थी के हक में फैसला दिया था.
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