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सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी को लेकर HC में हुई सुनवाई, कोर्ट ने सरकार को दिए ये निर्देश - शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने

प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने और अन्य मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने के बारे में उठाए गए कदम पर सरकार को बाबत शपथ पत्र दायर करने के निर्देश दिए हैं.

himachal HC hearing about shortage of teachers
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Published : Dec 16, 2019, 6:40 PM IST

शिमलाः प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने और अन्य मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने के बारे में उठाए गए कदम पर सरकार को बाबत शपथ पत्र दायर करने के निर्देश दिए हैं. हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में शिक्षकों और अन्य आधारभूत सुविधाओं के अभाव संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश जारी किए हैं.

मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने इस आदेश को पारित किया है. प्रदेश सरकार की ओर से दायर शपथ पत्र के अनुसार हिमाचल में 31 दिसंबर 2019 तक जेबीटी के 693, भाषा अध्यापक के 590, शास्त्री के 1049, टीजीटी आर्ट्स के 684, टीजीटी नॉन मेडिकल के 359 और टीजीटी मेडिकल के 260 के पद रिक्त पड़े हैं.

मामले की सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार ने कोर्ट को बताया कि इन पदों को भरने के लिए सरकार कदम उठा रही है. कोर्ट ने शिक्षा विभाग के उस रवैये पर नाराजगी जताई जिसके तहत प्रदेश के सभी स्कूलों में शिक्षकों व अन्य आधारभूत सुविधाओं का अभाव है.

वीडियो.

कोर्ट ने यह पाया कि जब तक प्रदेश सरकार स्कूलों को अच्छे और आधारभूत सुविधाओं के साथ नहीं चलाती है तब तक यह आशा नहीं की जा सकती कि लोग अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में कराएंगे. सरकार के इस ढुलमुल रवैये के चलते मजबूरन लोगों को अपने बच्चे का दाखिला प्राइवेट स्कूलों में करना पड़ता है.

अगर इसी तरह स्थिति रही तो आने वाले समय में प्रदेश सरकार को न चाहते हुए भी सरकारी स्कूलों को बंद करना पड़ेगा. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सरकार को समाज के निचले तबके को शिक्षा प्रदान करने के लिए भी उपयुक्त कदम उठाने को कहा है.

ये भी पढ़ें- हिमाचल के ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़े रहे ब्लड प्रेशर के मरीज, जानें इससे बचने के उपाय

शिमलाः प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने और अन्य मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने के बारे में उठाए गए कदम पर सरकार को बाबत शपथ पत्र दायर करने के निर्देश दिए हैं. हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में शिक्षकों और अन्य आधारभूत सुविधाओं के अभाव संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश जारी किए हैं.

मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने इस आदेश को पारित किया है. प्रदेश सरकार की ओर से दायर शपथ पत्र के अनुसार हिमाचल में 31 दिसंबर 2019 तक जेबीटी के 693, भाषा अध्यापक के 590, शास्त्री के 1049, टीजीटी आर्ट्स के 684, टीजीटी नॉन मेडिकल के 359 और टीजीटी मेडिकल के 260 के पद रिक्त पड़े हैं.

मामले की सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार ने कोर्ट को बताया कि इन पदों को भरने के लिए सरकार कदम उठा रही है. कोर्ट ने शिक्षा विभाग के उस रवैये पर नाराजगी जताई जिसके तहत प्रदेश के सभी स्कूलों में शिक्षकों व अन्य आधारभूत सुविधाओं का अभाव है.

वीडियो.

कोर्ट ने यह पाया कि जब तक प्रदेश सरकार स्कूलों को अच्छे और आधारभूत सुविधाओं के साथ नहीं चलाती है तब तक यह आशा नहीं की जा सकती कि लोग अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में कराएंगे. सरकार के इस ढुलमुल रवैये के चलते मजबूरन लोगों को अपने बच्चे का दाखिला प्राइवेट स्कूलों में करना पड़ता है.

अगर इसी तरह स्थिति रही तो आने वाले समय में प्रदेश सरकार को न चाहते हुए भी सरकारी स्कूलों को बंद करना पड़ेगा. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सरकार को समाज के निचले तबके को शिक्षा प्रदान करने के लिए भी उपयुक्त कदम उठाने को कहा है.

ये भी पढ़ें- हिमाचल के ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़े रहे ब्लड प्रेशर के मरीज, जानें इससे बचने के उपाय

प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने व अन्य मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने के संदर्भ में उठाए गए कदमों बाबत शपथ पत्र दायर करने के निर्देश दिए हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के व अन्य आधारभूत सुविधाओं के अभाव संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी व न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने उपरोक्त आदेश पारित किए। राज्य सरकार द्वारा दायर शपथ पत्र के अनुसार हिमाचल में 31दिसंबर 2019 तक जेबीटी के 693, भाषा अध्यापक के 590, शास्त्री के 1049, टीजीटी आर्ट्स के 684, टीजीटी नोंन मेडिकल के 359 व टीजीटी मेडिकल के 260 के पद रिक्त पड़े है। मामले की सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार से कोर्ट को बताया गया कि उपरोक्त पदों को भरने के लिए सरकार शीघ्र कदम उठा रही है। कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए शिक्षा विभाग के उस रवैए पर नाराजगी जताई जिसके तहत प्रदेश के सभी स्कूलों में शिक्षकों व अन्य आधारभूत सुविधाओं का अभाव है कोर्ट ने यह पाया कि जब तक प्रदेश सरकार स्कूलों को अच्छे व आधारभूत सुविधाओं के साथ नहीं चलाती है तब तक यह आशा नहीं की जा सकती कि लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में डालेंगे। सरकार के इस ढुलमुल रवैये के चलते मजबूरन लोगों को अपने बच्चे प्राइवेट स्कूलों में दाखिल करना पड़ते है और अगर इसी तरह स्थिति रही तो आने वाले समय में प्रदेश सरकार को न चाहते हुए भी सरकारी स्कूलों को बंद करना पड़ेगा। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार को समाज के निचले तबके को शिक्षा प्रदान करने के लिए भी उपयुक्त कदम उठाने को कहा है। मामले पर सुनवाई आठ सप्ताह के बाद होगी।
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