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हिमाचल में कर्मचारियों को नहीं मिलेंगे सरकारी क्वार्टर, हाई कोर्ट ने इस वजह से लगाई रोक - सरकारी आवास आवंटन पर रोक

न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने हिमाचल में सरकारी आवासों के आवंटन पर रोक लगा दी है. कमलेश गौतम की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किए. याचिकाकर्ता कमलेश गौतम का यह आरोप है कि वह वर्ष 2000 से सरकारी आवास के लिए प्रतिवेदन दे रही है, लेकिन उसे आज तक सरकारी आवास मुहैया नहीं करवाया गया.

High Court shimla
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Published : Sep 5, 2020, 5:21 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने बिना बारी के सरकारी आवासों के आवंटन पर रोक लगा दी है. सरकारी आवास आवंटित करने से जुड़े मामले में हाई कोर्ट ने सामान्य प्रशासन विभाग को आदेश जारी किए हैं. इन आदेशों के मुताबिक वह बिना बारी के किसी भी कर्मचारी भी कर्मचारी या अधिकारी को सरकारी आवास न आवंटित नहीं होंगे.

न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने कमलेश गौतम की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किए. हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना बारी के सरकारी आवास आवंटन करने के लिए कोर्ट की इज्जाजत लेनी होगी.

याचिकाकर्ता कमलेश गौतम का यह आरोप है कि वह वर्ष 2000 से सरकारी आवास के लिए प्रतिवेदन दे रही है, लेकिन उसे आज तक सरकारी आवास मुहैया नहीं करवाया गया. प्रार्थी ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि वह हृदय रोग से पीड़ित है और पीजीआई चंडीगढ़ से अपना इलाज करवा रही है.

प्रार्थी ने आरोप लगाया कि उसके बाद लगे कर्मचारियों को बिना बारी के सरकारी आवास आवंटित किए गए हैं. जबकि प्रार्थी द्वारा भेजे गए प्रतिवेदन को राज्य सरकार द्वारा खारिज कर दिया गया. न्यायालय ने पाया कि राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए मनमाने तरीके से सरकारी आवास आवंटित किए जाते हैं. जिस के दृष्टिगत प्रदेश उच्च न्यायालय ने उपरोक्त आदेश पारित किए.

ये भी पढ़ें: पीटीए शिक्षक ने CM सहित महेन्द्र सिंह ठाकुर का जताया आभार, बोले: टीचर्स हमेशा याद रखेंगे ये उपकार

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने बिना बारी के सरकारी आवासों के आवंटन पर रोक लगा दी है. सरकारी आवास आवंटित करने से जुड़े मामले में हाई कोर्ट ने सामान्य प्रशासन विभाग को आदेश जारी किए हैं. इन आदेशों के मुताबिक वह बिना बारी के किसी भी कर्मचारी भी कर्मचारी या अधिकारी को सरकारी आवास न आवंटित नहीं होंगे.

न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने कमलेश गौतम की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किए. हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना बारी के सरकारी आवास आवंटन करने के लिए कोर्ट की इज्जाजत लेनी होगी.

याचिकाकर्ता कमलेश गौतम का यह आरोप है कि वह वर्ष 2000 से सरकारी आवास के लिए प्रतिवेदन दे रही है, लेकिन उसे आज तक सरकारी आवास मुहैया नहीं करवाया गया. प्रार्थी ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि वह हृदय रोग से पीड़ित है और पीजीआई चंडीगढ़ से अपना इलाज करवा रही है.

प्रार्थी ने आरोप लगाया कि उसके बाद लगे कर्मचारियों को बिना बारी के सरकारी आवास आवंटित किए गए हैं. जबकि प्रार्थी द्वारा भेजे गए प्रतिवेदन को राज्य सरकार द्वारा खारिज कर दिया गया. न्यायालय ने पाया कि राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए मनमाने तरीके से सरकारी आवास आवंटित किए जाते हैं. जिस के दृष्टिगत प्रदेश उच्च न्यायालय ने उपरोक्त आदेश पारित किए.

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