शिमला: क्लाइमेट चेंज से हिमाचल के ग्लेशियर पर खतरा मंडरा रहा है. हिमाचल के ग्लेशियर पिछले 18 साल से तेजी से पिघल रहे हैं और हर साल 20 मीटर तक ग्लेशियर पिघल रहे हैं. ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार इसी तरह रही तो आने वाले समय मे बड़ा संकट पैदा हो सकता है.
हिमाचल साइंस एंड टेक्नोलॉजी द्वारा प्रदेश के करीब 800 छोटे बड़े ग्लेशियर की मैपिंग की जा रही है और इस पर अध्ययन किया जा रहा है. अध्ययन में काफी चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ रहे हैं. 2001 से लेकर 2018 तक स्पीति और बसपा लेसन में ग्लेशियर में काफी नुकसान हुआ है और ग्लेशियर का आकार हर साल कम होता जा रहा है.
ग्लेशियर के पिघलने का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग माना जा रहा है. पिछले कुछ साल से हिमालय पर गर्मी बढ़ गई है जिससे बर्फ कम पड़ रही है और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. ग्लेशियर के तेजी से पिघलने से आने वाले समय में पानी का संकट पैदा हो सकता है. यही नहीं गलेशियर के पिघलने से कृत्रिम झीलें भी बन रही है और इसके टूटने से निचले क्षेत्रों में बसी आबादी के लिए खतरा भी बढ़ गया है.
साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक एस एस रंधावा ने कहा कि विभाग 1993 से ग्लेशियर पर अध्ययन कर रहा है और ग्लेशियर के तेजी से पिघल रहे हैं. विभाग द्वारा सेटेलाईट से ग्लेशियर की मैपिंग की जा रही है. प्रदेश के 800 छोटे बड़े ग्लेशियर का अध्ययन में पाया गया कि हर साल इनका आकार कम हो रहा है.
स्पीति में 2001 से लेकर 2018 तक दस प्रतिशत नुकसान हुआ है जबकि बसपा बेसन में 5 फीसदी कम हुआ है. उनका कहना है कि विभाग ग्लेशियर के पिघलने से आने वाले समय में जहां पानी का संकट पैदा होगा वही झीलें बनने से निचले क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाएगा. इसके अलावा नदियों में भी बाढ़ की संभावना भी बढ़ जाती है.
बता दें कि हिमाचल में 800 के करीब छोटे बड़े ग्लेशियर हैं. हालांकि बर्फबारी के बाद इनका आकार तो बढ़ जाता है, लेकिन उसके बाद गर्मी बढ़ने से ये तेजी से पिघलना भी शुरू हो रहे हैं. तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर ने वैज्ञानिकों की चिंता भी बढ़ा दी है.
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