ETV Bharat / state

हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा चाय को यूरोपियन यूनियन ने दिया GI टैग - european union gi tag to kangra tea

हिमाचल प्रदेश के लिए एक खुशखबरी है. बता दें कि कांगड़ा टी को यूरोपियन यूनियन ने GI टैग प्रदान किया है. पढ़ें पूरी खबर...

gi tag to kangra tea
सांकेतिक तस्वीर.
author img

By

Published : Mar 29, 2023, 6:13 PM IST

शिमला/कांगड़ा: हिमाचल प्रदेश की मशहूर कांगड़ा चाय को यूरोपियन यूनियन ने जीआई टैग दिया है. गौरतलब है कि कांगड़ा टी को साल 2005 में भारतीय जीआई टैग मिला था. और अब यूरोपियन यूनियन द्वारा कांगड़ा चाय को जीआई टैग मिलना बड़ी उपलब्धि है. भारत में यूरोपियन यूनियन के डेलिगेशन ने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर इस बात की जानकारी दी गई है.

कांगड़ा टी का स्वाद- कांगड़ा की चाय अपनी गुणवत्ता और महक के लिए जानी जाती है. इसका उत्पादन कांगड़ा जिले में होता है. कांगड़ा चाय के ज्यादातर बागान पालमपुर में हैं, जो एक बड़ी आबादी को रोजगार और हिमाचल को विश्व मानचित्र पर पहचान दिला रहे हैं. कांगड़ा चाय की ब्लैक टी और ग्रीन टी दो किस्में हैं. कांगड़ा चाय के उत्पादन से लेकर प्रमोशन और इससे जुड़े तमाम समस्याओं पर विचार करने के लिए हिमाचल प्रदेश स्टेट टी डेवलपमेंट बोर्ड है. जिसके चेयरमैन हिमाचल के मुख्यमंत्री और वाइस चेयरमैन कृषि मंत्री होते है.

अंग्रेजों की देन है कांगड़ा चाय- देश दुनिया के करोड़ों लोगों के दिन की सुबह एक प्याली चाय के साथ होती है. भारत में चाय का उत्पादन होता रहा है लेकिन इसको व्यावसायिक स्तर पर ले जाने का श्रेय अंग्रेजों को जाता है. 18वीं शताब्दी में कांगड़ा के मौसम को चाय के लिए बहुत ही मुफीद पाया. जिसके बाद कांगड़ा की घाटी चाय की खुशबू से महकने लगी और यहां उगने वाली चाय भी असम, दार्जिलिंग की तरह उत्पादन की जगह के नाम से पहचानी जाने लगी. आज इसे दुनिया कांगड़ा टी के नाम से जानती है.

जीआई टैग क्या है- Geographical Indication Tag यानी वो भौगोलिक संकेत है जो किसी उत्पाद के उत्पत्ति क्षेत्र को बताता है. यानी इस टैग के जरिये किसी प्रोडक्ट की पहचान उसके क्षेत्र से होती है, जहां उसका उत्पादन होता है. इसे समझने के लिए आगरा का पेठा, बनारसी साड़ी या देहरादून का बासमती चावल. जीआई टैग इन उत्पादों की पहचान उसके उत्पादन के क्षेत्र से करवाता है. खेती से जुड़े उत्पादों से लेकर हैंडीक्राफ्ट, खाने-पीने की चीजों या अन्य उत्पादों को जीआई टैग मिलता है.

भारतीय संसद में दिसंबर 1999 में Geographical indications of goods (Registration and Protection) Act 1999 पारित हुआ था. जिसे सितंबर 2003 में लागू किया गया था. इसी एक्ट के तहत देश में पैदा होने वाले उत्पादों को जीआई टैग मिलता है.

जीआई टैग मिलने के फायदे- भारत सरकार जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है. इसके बाद इसे रिन्यू करवाया जा सकता है. जीआई टैग एक ऐसी पहचान है जिसे मिलने से उत्पाद की अहमियत और उससे जुड़े लोगों की आर्थिकी तो बढ़ती ही है, इसके अलावा उसके उस उत्पाद के नकली या फेक उत्पाद बनाने पर रोक लगती है. इसके अलावा उस उत्पाद को कानूनी सुरक्षा के साथ-साथ उसके देश विदेश में निर्यात को भी बढ़ावा मिलता है.

Read Also- Horoscope 30 March 2023: कैसा रहेगा 30 मार्च का दिन, किन राशियों के जातक रहें सावधान, पढ़ें एक क्लिक पर

शिमला/कांगड़ा: हिमाचल प्रदेश की मशहूर कांगड़ा चाय को यूरोपियन यूनियन ने जीआई टैग दिया है. गौरतलब है कि कांगड़ा टी को साल 2005 में भारतीय जीआई टैग मिला था. और अब यूरोपियन यूनियन द्वारा कांगड़ा चाय को जीआई टैग मिलना बड़ी उपलब्धि है. भारत में यूरोपियन यूनियन के डेलिगेशन ने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर इस बात की जानकारी दी गई है.

कांगड़ा टी का स्वाद- कांगड़ा की चाय अपनी गुणवत्ता और महक के लिए जानी जाती है. इसका उत्पादन कांगड़ा जिले में होता है. कांगड़ा चाय के ज्यादातर बागान पालमपुर में हैं, जो एक बड़ी आबादी को रोजगार और हिमाचल को विश्व मानचित्र पर पहचान दिला रहे हैं. कांगड़ा चाय की ब्लैक टी और ग्रीन टी दो किस्में हैं. कांगड़ा चाय के उत्पादन से लेकर प्रमोशन और इससे जुड़े तमाम समस्याओं पर विचार करने के लिए हिमाचल प्रदेश स्टेट टी डेवलपमेंट बोर्ड है. जिसके चेयरमैन हिमाचल के मुख्यमंत्री और वाइस चेयरमैन कृषि मंत्री होते है.

अंग्रेजों की देन है कांगड़ा चाय- देश दुनिया के करोड़ों लोगों के दिन की सुबह एक प्याली चाय के साथ होती है. भारत में चाय का उत्पादन होता रहा है लेकिन इसको व्यावसायिक स्तर पर ले जाने का श्रेय अंग्रेजों को जाता है. 18वीं शताब्दी में कांगड़ा के मौसम को चाय के लिए बहुत ही मुफीद पाया. जिसके बाद कांगड़ा की घाटी चाय की खुशबू से महकने लगी और यहां उगने वाली चाय भी असम, दार्जिलिंग की तरह उत्पादन की जगह के नाम से पहचानी जाने लगी. आज इसे दुनिया कांगड़ा टी के नाम से जानती है.

जीआई टैग क्या है- Geographical Indication Tag यानी वो भौगोलिक संकेत है जो किसी उत्पाद के उत्पत्ति क्षेत्र को बताता है. यानी इस टैग के जरिये किसी प्रोडक्ट की पहचान उसके क्षेत्र से होती है, जहां उसका उत्पादन होता है. इसे समझने के लिए आगरा का पेठा, बनारसी साड़ी या देहरादून का बासमती चावल. जीआई टैग इन उत्पादों की पहचान उसके उत्पादन के क्षेत्र से करवाता है. खेती से जुड़े उत्पादों से लेकर हैंडीक्राफ्ट, खाने-पीने की चीजों या अन्य उत्पादों को जीआई टैग मिलता है.

भारतीय संसद में दिसंबर 1999 में Geographical indications of goods (Registration and Protection) Act 1999 पारित हुआ था. जिसे सितंबर 2003 में लागू किया गया था. इसी एक्ट के तहत देश में पैदा होने वाले उत्पादों को जीआई टैग मिलता है.

जीआई टैग मिलने के फायदे- भारत सरकार जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है. इसके बाद इसे रिन्यू करवाया जा सकता है. जीआई टैग एक ऐसी पहचान है जिसे मिलने से उत्पाद की अहमियत और उससे जुड़े लोगों की आर्थिकी तो बढ़ती ही है, इसके अलावा उसके उस उत्पाद के नकली या फेक उत्पाद बनाने पर रोक लगती है. इसके अलावा उस उत्पाद को कानूनी सुरक्षा के साथ-साथ उसके देश विदेश में निर्यात को भी बढ़ावा मिलता है.

Read Also- Horoscope 30 March 2023: कैसा रहेगा 30 मार्च का दिन, किन राशियों के जातक रहें सावधान, पढ़ें एक क्लिक पर

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.