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अंग्रेजों के जमाने के कनलोग कब्रिस्तान पर अतिक्रमण, हिमाचल HC ने किसी भी तरह के निर्माण पर लगाई रोक - कनलोग कब्रिस्तान पर अतिक्रमण

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने कनलोग कब्रिस्तान में अतिक्रमण के मामले में कड़ा संज्ञान लिया है. HC ने किसी भी प्रकार निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है. पढ़ें पूरी खबर...

Himachal High Court
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट (फाइल फोटो)।
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Published : May 18, 2023, 9:50 PM IST

शिमला: राजधानी शिमला के तहत हेरिटेज जोन में स्थित ब्रिटिश काल के कनलोग कब्रिस्तान में अतिक्रमण के मामले में हिमाचल हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाई है. स्थानीय निवासी की याचिका पर हाई कोर्ट ने अतिक्रमण को लेकर कड़ा संज्ञान लिया है. अदालत ने कब्रिस्तान में किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है. अदालत ने राज्य सरकार को आदेश जारी किए हैं कि वो उक्त स्थान का निरीक्षण करे और नियमों के उल्लंघन के संबंध में रिपोर्ट पेश करे.

अदालत ने अपने आदेश में ये भी स्पष्ट किया है कि उक्त हेरिटेज क्षेत्र में न तो कार पार्किंग हो सकेगी और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कार्यक्रम होगा. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने अब इस मामले की सुनवाई 31 मई को निर्धारित की है.

हाई कोर्ट ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण शिमला को आदेश दिए हैं कि वह अदालत के आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करे. अदालत ने प्राधिकरण को मौके की रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश करने के भी निर्देश दिए. उल्लेखनीय है कि स्थानीय निवासी शिवेंद्र सिंह व अन्य ने याचिका के माध्यम से अदालत को बताया कि कनलोग कब्रिस्तान में अतिक्रमण किया जा रहा है. ये कब्रिस्तान शिमला के दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित है. यह देश के सबसे पुराने कब्रिस्तानों में से एक है. यहां सबसे पुरानी कब्र वर्ष 1850 ईस्वी की है.

याचिका में कहा गया कि ईसाइयों और पारसियों के अंतिम विश्राम स्थल के रूप में ये राष्ट्रीय महत्व का स्थल है. यहां इतिहास में कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों की यादें मौजूद हैं. याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह कब्रिस्तान स्थानीय समुदाय, पर्यटकों और आने वाली पीढिय़ों के लिए एक प्रमुख विरासत है. याचिकाकर्ता के अनुसार पादरी महेंद्र सिंह और उनके ट्रस्ट ने कब्रिस्तान के रखरखाव की जिम्मेदारी संभाली हुई है, लेकिन कब्रिस्तान के संरक्षण के प्रयासों के बजाए यहां निजी हितों को प्राथमिकता दी जा रही है.

कब्रिस्तान में बड़े पैमाने पर अनाधिकृत निर्माण किया जा रहा है, जिससे कब्रिस्तान के मूल स्वरूप को बिगाड़ा है. यहां बेतरतीब निर्माण किए गए हैं. कनलोग में 50 से अधिक लोगों के लिए कई निजी आवास, पानी की टंकियां और यहां तक कि खुले हरित क्षेत्र पर अतिक्रमण करते हुए कार पार्किंग बना दी गई. रात के समय भारी मशीनरी का उपयोग करके कब्र के ऊपर एक सड़क बनाई जा रही है. दो शताब्दियों से अधिक पुरानी कई कब्रें पहले ही उखाड़ दी गई हैं या मिट्टी से ढकी हुई हैं. इसके अतिरिक्त कब्रिस्तान में मौजूद हरे-भरे स्थान में पादरी के निजी वाहन के लिए पार्किंग बनाई गई है. ऐसे में इस स्थान की अहमियत से खिलवाड़ किया जा रहा है. हाई कोर्ट ने इस पर कड़ा संज्ञान लेते हुए सरकार को निरीक्षण करने और निर्माण को तुरंत प्रभाव से रोकने के निर्देश जारी किए हैं.

वहीं, एक अन्य मामले में हाई कोर्ट ने कसौली छावनी क्षेत्र में अतिक्रमण पर संज्ञान लेते हुए अवैध कब्जों का पूरा रिकॉर्ड तलब किया है. हाई कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने कसौली निवासी भावना की जनहित याचिका पर ये आदेश पारित किए. याचिका में कसौली के पाइन मॉल में हुए अतिक्रमण को उजागर किया है.

आरोप लगाया गया है कि पाइन मॉल में 21 दुकानों का अवैध निर्माण किया गया है. यह क्षेत्र भारतीय सेना के अधीन आता है. इस जमीन पर किसी भी तरह का निर्माण नहीं किया जा सकता. भारतीय सेना के हित में इस अतिक्रमण को हटाया जाना अति आवश्यक है. भावना ने अदालत से गुहार लगाई है कि सेना की इस जमीन को खाली करवाया जाए. साथ ही 21 दुकानों को तुरंत गिराने के आदेश पारित करने की गुहार भी लगाई गई है. मामले पर सुनवाई 23 मई को निर्धारित की गई है.

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शिमला: राजधानी शिमला के तहत हेरिटेज जोन में स्थित ब्रिटिश काल के कनलोग कब्रिस्तान में अतिक्रमण के मामले में हिमाचल हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाई है. स्थानीय निवासी की याचिका पर हाई कोर्ट ने अतिक्रमण को लेकर कड़ा संज्ञान लिया है. अदालत ने कब्रिस्तान में किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है. अदालत ने राज्य सरकार को आदेश जारी किए हैं कि वो उक्त स्थान का निरीक्षण करे और नियमों के उल्लंघन के संबंध में रिपोर्ट पेश करे.

अदालत ने अपने आदेश में ये भी स्पष्ट किया है कि उक्त हेरिटेज क्षेत्र में न तो कार पार्किंग हो सकेगी और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कार्यक्रम होगा. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने अब इस मामले की सुनवाई 31 मई को निर्धारित की है.

हाई कोर्ट ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण शिमला को आदेश दिए हैं कि वह अदालत के आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करे. अदालत ने प्राधिकरण को मौके की रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश करने के भी निर्देश दिए. उल्लेखनीय है कि स्थानीय निवासी शिवेंद्र सिंह व अन्य ने याचिका के माध्यम से अदालत को बताया कि कनलोग कब्रिस्तान में अतिक्रमण किया जा रहा है. ये कब्रिस्तान शिमला के दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित है. यह देश के सबसे पुराने कब्रिस्तानों में से एक है. यहां सबसे पुरानी कब्र वर्ष 1850 ईस्वी की है.

याचिका में कहा गया कि ईसाइयों और पारसियों के अंतिम विश्राम स्थल के रूप में ये राष्ट्रीय महत्व का स्थल है. यहां इतिहास में कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों की यादें मौजूद हैं. याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह कब्रिस्तान स्थानीय समुदाय, पर्यटकों और आने वाली पीढिय़ों के लिए एक प्रमुख विरासत है. याचिकाकर्ता के अनुसार पादरी महेंद्र सिंह और उनके ट्रस्ट ने कब्रिस्तान के रखरखाव की जिम्मेदारी संभाली हुई है, लेकिन कब्रिस्तान के संरक्षण के प्रयासों के बजाए यहां निजी हितों को प्राथमिकता दी जा रही है.

कब्रिस्तान में बड़े पैमाने पर अनाधिकृत निर्माण किया जा रहा है, जिससे कब्रिस्तान के मूल स्वरूप को बिगाड़ा है. यहां बेतरतीब निर्माण किए गए हैं. कनलोग में 50 से अधिक लोगों के लिए कई निजी आवास, पानी की टंकियां और यहां तक कि खुले हरित क्षेत्र पर अतिक्रमण करते हुए कार पार्किंग बना दी गई. रात के समय भारी मशीनरी का उपयोग करके कब्र के ऊपर एक सड़क बनाई जा रही है. दो शताब्दियों से अधिक पुरानी कई कब्रें पहले ही उखाड़ दी गई हैं या मिट्टी से ढकी हुई हैं. इसके अतिरिक्त कब्रिस्तान में मौजूद हरे-भरे स्थान में पादरी के निजी वाहन के लिए पार्किंग बनाई गई है. ऐसे में इस स्थान की अहमियत से खिलवाड़ किया जा रहा है. हाई कोर्ट ने इस पर कड़ा संज्ञान लेते हुए सरकार को निरीक्षण करने और निर्माण को तुरंत प्रभाव से रोकने के निर्देश जारी किए हैं.

वहीं, एक अन्य मामले में हाई कोर्ट ने कसौली छावनी क्षेत्र में अतिक्रमण पर संज्ञान लेते हुए अवैध कब्जों का पूरा रिकॉर्ड तलब किया है. हाई कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने कसौली निवासी भावना की जनहित याचिका पर ये आदेश पारित किए. याचिका में कसौली के पाइन मॉल में हुए अतिक्रमण को उजागर किया है.

आरोप लगाया गया है कि पाइन मॉल में 21 दुकानों का अवैध निर्माण किया गया है. यह क्षेत्र भारतीय सेना के अधीन आता है. इस जमीन पर किसी भी तरह का निर्माण नहीं किया जा सकता. भारतीय सेना के हित में इस अतिक्रमण को हटाया जाना अति आवश्यक है. भावना ने अदालत से गुहार लगाई है कि सेना की इस जमीन को खाली करवाया जाए. साथ ही 21 दुकानों को तुरंत गिराने के आदेश पारित करने की गुहार भी लगाई गई है. मामले पर सुनवाई 23 मई को निर्धारित की गई है.

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