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पुण्यतिथि विशेष: डॉ. परमार की दूरदृष्टि से निखरा हिमाचल, ईमान और कलम के धनी थे हिमाचल निर्माता - हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार

हिमाचल की राजधानी शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर स्थापित प्रतिमाएं सबका ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं। इन प्रतिमाओं में एक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और एक प्रतिमा पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की है। एक अन्य प्रतिमा अलग से स्थापित है, जिसके नीचे लिखे हैं ये शब्द-हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार। ये शब्द सभी को जिज्ञासा से भरते होंगे। यहां हिमाचल निर्माता के जीवन के अनछुए पहलुओं से रू-ब-रू होना जरूरी है।

YS parmar's death anniversary special
डॉ. परमार की पुण्यतिथि.
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Published : May 2, 2020, 1:33 PM IST

शिमला: विश्व भर में अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात आधुनिक हिमाचल प्रदेश की नींव एक ऐसे शख्स ने रखी थी, जिसकी जीवन भर की पूंजी नैतिकता और ईमानदारी थी. समूची दुनिया उस शख्सियत को हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार के नाम से जानती है.

हिमाचल निर्माता एवं प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार जी की आज पुण्यतिथि है. यशवंत सिंह परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को सिरमौर में हुआ और 2 मई 1981 उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. अगर परमार ना होते तो शायद आज हिमाचल भी ना होता.

समय के इस दौर में जब राजनेता करोड़ों-अरबों की संपत्ति के मालिक हैं, हिमाचल निर्माता ने जब संसार छोड़ा तो उनके खाते में महज 563 रुपये तीस पैसे थे. बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. वाईएस परमार का सारा जीवन ईमानदारी से गुजरा और उन्होंने अपने लिए कोई संपत्ति नहीं बनाई. समूचा प्रदेश डॉ. परमार की जयंती पर उन्हें याद करता है.

YS parmar's death anniversary special
डॉ. वाईएस परमार की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन

हिमाचल की राजधानी शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर स्थापित प्रतिमाएं सबका ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं. इन प्रतिमाओं में एक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और एक प्रतिमा पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की है. एक अन्य प्रतिमा अलग से स्थापित है, जिसके नीचे लिखे हैं ये शब्द-हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार. ये शब्द सभी को जिज्ञासा से भरते होंगे. यहां हिमाचल निर्माता के जीवन के अनछुए पहलुओं से रू-ब-रू होना जरूरी है.

ऊंची शिक्षा हासिल की, लेकिन जुड़े रहे जमीन से

बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. वाईएस परमार कुशल राजनेता के साथ-साथ कला व साहित्य प्रेमी भी थे. हिंदी, अंग्रेजी व ऊर्दू भाषाओं पर कमाल का अधिकार रखने वाले डॉ. परमार हमेशा जमीन से जुड़े ठेठ पहाड़ी ही बने रहना पसंद करते थे. सिरमौर के अति दुर्गम व पिछड़े गांव चन्हालग में जन्मे परमार ने सारी उम्र परंपरागत पहाड़ी परिधान लोइया व सुथणु आदि ही पहना.

उनका जन्म 4 अगस्त 1906 को सिरमौर जिला की पच्छाद तहसील के गांव चन्हालग में शिवानंद सिंह के घर हुआ था. परमार की शिक्षा लखनऊ व लाहौर में हुई. उन्होंने वर्ष 1926 में लाहौर से बीए आनर्स की परीक्षा पास की. लखनऊ से उन्होंने एमए के साथ एलएलबी की डिग्री हासिल की.

YS parmar's death anniversary special
डॉ. वाईएस परमार. फाइल

लखनऊ से ही परमार ने पीएचडी की डिग्री ली और बाद में हिमाचल यूनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ लॉ भी बने. वे देहरादून में थियोसॉफिकल सोसायटी के सदस्य भी रहे. गुलाम भारत में रियासती समय में डॉ. परमार 1930 में सिरमौर रियासत के जज बने. सात साल तक न्यायाधीश के तौर पर काम किया. बाद में डिस्ट्रिक्ट व सेशन जज बने और 1941 तक इस पद पर रहे.

प्रजामंडल आंदोलन के क्रांतिकारियों का समर्थन

हिमाचल में राजशाही के खिलाफ प्रजामंडल आंदोलन शुरू हुआ. इस आंदोलन के क्रांतिकारियों पर झूठे मामले बनाए जाने लगे तो परमार से रहा न गया. ये मामले डॉ. परमार की अदालत में आए तो उन्होंने आंदोलनकारियों के हक में फैसले देना शुरू किया.

परमार की यह बात सिरमौर रियासत के राजाओं को नागवार गुजरी. राजाओं की नाराजगी देखते हुए परमार ने खुद ही न्यायाधीश के पद से इस्तीफा दे दिया और खुलकर राजशाही के खिलाफ बोलने लगे. प्रजामंडल आंदोलन के सफल होने के बाद डॉ. परमार वर्ष 1948 से 1952 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे.

हिमाचल निर्माता के साथ राज्य के पहले सीएम थे परमार

डॉ. परमार 3 मार्च 1952 से 31 अक्टूबर 1956 तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वर्ष 1956 में जब हिमाचल यूनियन टेरेटोरियल बना तो परमार 1956 से 1963 तक संसद सदस्य रहे. हिमाचल विधानसभा गठित होने के बाद वे जुलाई 1963 में फिर से मुख्यमंत्री बने.

परमार ने ही पंजाब में शामिल कांगड़ा व शिमला के कुछ इलाकों को हिमाचल में शामिल करवाने में अहम भूमिका निभाई थी. यहां बता दें कि कुछ नेता हिमाचल को पंजाब का हिस्सा बनाना चाहते थे, लेकिन परमार के होते यह संभव नहीं हो पाया.

परमार की ही देन है पूर्ण राज्य का दर्जा और आधुनिक हिमाचल

जनवरी 1971 में हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और इसमें डॉ. वाईएस परमार का बड़ा योगदान था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला के रिज मैदान पर 25 जनवरी 1971 को हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की थी. बाद में परमार ने वर्ष 1977 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.

परमार ने एक महत्वपूर्ण पुस्तक पोलीएंड्री एन हिमाचल भी लिखी थी. भारत सरकार ने डॉ. परमार पर डाक टिकट भी जारी किया था. डॉ. परमार का हिमाचल के विकास को लेकर विजन बिल्कुल स्पष्ट था. वे पूरे प्रदेश में प्राथमिकता के आधार पर सड़कों का जाल बिछाने की मुहिम में जुटे थे.

वे सडक़ों को पहाड़ के निवासियों की भाग्य रेखा कहते थे. ईमानदारी के जीवंत प्रतीक डॉ. वाईएस परमार ने 2 मई 1981 को शरीर त्याग दिया. डॉ. वाईएस परमार की जयंती पर हिमाचल में साहित्यिक आयोजन नियमित रूप से होते हैं. इस साल परमार जयंती पर राज्य स्तरीय आयोजन बिलासपुर में हो रहा है. डॉ. परमार के नाम पर हिमाचल के सोलन जिला में बागवानी व वानिकी विश्वविद्यालय भी है.

शिमला: विश्व भर में अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात आधुनिक हिमाचल प्रदेश की नींव एक ऐसे शख्स ने रखी थी, जिसकी जीवन भर की पूंजी नैतिकता और ईमानदारी थी. समूची दुनिया उस शख्सियत को हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार के नाम से जानती है.

हिमाचल निर्माता एवं प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार जी की आज पुण्यतिथि है. यशवंत सिंह परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को सिरमौर में हुआ और 2 मई 1981 उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. अगर परमार ना होते तो शायद आज हिमाचल भी ना होता.

समय के इस दौर में जब राजनेता करोड़ों-अरबों की संपत्ति के मालिक हैं, हिमाचल निर्माता ने जब संसार छोड़ा तो उनके खाते में महज 563 रुपये तीस पैसे थे. बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. वाईएस परमार का सारा जीवन ईमानदारी से गुजरा और उन्होंने अपने लिए कोई संपत्ति नहीं बनाई. समूचा प्रदेश डॉ. परमार की जयंती पर उन्हें याद करता है.

YS parmar's death anniversary special
डॉ. वाईएस परमार की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन

हिमाचल की राजधानी शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर स्थापित प्रतिमाएं सबका ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं. इन प्रतिमाओं में एक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और एक प्रतिमा पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की है. एक अन्य प्रतिमा अलग से स्थापित है, जिसके नीचे लिखे हैं ये शब्द-हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार. ये शब्द सभी को जिज्ञासा से भरते होंगे. यहां हिमाचल निर्माता के जीवन के अनछुए पहलुओं से रू-ब-रू होना जरूरी है.

ऊंची शिक्षा हासिल की, लेकिन जुड़े रहे जमीन से

बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. वाईएस परमार कुशल राजनेता के साथ-साथ कला व साहित्य प्रेमी भी थे. हिंदी, अंग्रेजी व ऊर्दू भाषाओं पर कमाल का अधिकार रखने वाले डॉ. परमार हमेशा जमीन से जुड़े ठेठ पहाड़ी ही बने रहना पसंद करते थे. सिरमौर के अति दुर्गम व पिछड़े गांव चन्हालग में जन्मे परमार ने सारी उम्र परंपरागत पहाड़ी परिधान लोइया व सुथणु आदि ही पहना.

उनका जन्म 4 अगस्त 1906 को सिरमौर जिला की पच्छाद तहसील के गांव चन्हालग में शिवानंद सिंह के घर हुआ था. परमार की शिक्षा लखनऊ व लाहौर में हुई. उन्होंने वर्ष 1926 में लाहौर से बीए आनर्स की परीक्षा पास की. लखनऊ से उन्होंने एमए के साथ एलएलबी की डिग्री हासिल की.

YS parmar's death anniversary special
डॉ. वाईएस परमार. फाइल

लखनऊ से ही परमार ने पीएचडी की डिग्री ली और बाद में हिमाचल यूनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ लॉ भी बने. वे देहरादून में थियोसॉफिकल सोसायटी के सदस्य भी रहे. गुलाम भारत में रियासती समय में डॉ. परमार 1930 में सिरमौर रियासत के जज बने. सात साल तक न्यायाधीश के तौर पर काम किया. बाद में डिस्ट्रिक्ट व सेशन जज बने और 1941 तक इस पद पर रहे.

प्रजामंडल आंदोलन के क्रांतिकारियों का समर्थन

हिमाचल में राजशाही के खिलाफ प्रजामंडल आंदोलन शुरू हुआ. इस आंदोलन के क्रांतिकारियों पर झूठे मामले बनाए जाने लगे तो परमार से रहा न गया. ये मामले डॉ. परमार की अदालत में आए तो उन्होंने आंदोलनकारियों के हक में फैसले देना शुरू किया.

परमार की यह बात सिरमौर रियासत के राजाओं को नागवार गुजरी. राजाओं की नाराजगी देखते हुए परमार ने खुद ही न्यायाधीश के पद से इस्तीफा दे दिया और खुलकर राजशाही के खिलाफ बोलने लगे. प्रजामंडल आंदोलन के सफल होने के बाद डॉ. परमार वर्ष 1948 से 1952 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे.

हिमाचल निर्माता के साथ राज्य के पहले सीएम थे परमार

डॉ. परमार 3 मार्च 1952 से 31 अक्टूबर 1956 तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वर्ष 1956 में जब हिमाचल यूनियन टेरेटोरियल बना तो परमार 1956 से 1963 तक संसद सदस्य रहे. हिमाचल विधानसभा गठित होने के बाद वे जुलाई 1963 में फिर से मुख्यमंत्री बने.

परमार ने ही पंजाब में शामिल कांगड़ा व शिमला के कुछ इलाकों को हिमाचल में शामिल करवाने में अहम भूमिका निभाई थी. यहां बता दें कि कुछ नेता हिमाचल को पंजाब का हिस्सा बनाना चाहते थे, लेकिन परमार के होते यह संभव नहीं हो पाया.

परमार की ही देन है पूर्ण राज्य का दर्जा और आधुनिक हिमाचल

जनवरी 1971 में हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और इसमें डॉ. वाईएस परमार का बड़ा योगदान था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला के रिज मैदान पर 25 जनवरी 1971 को हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की थी. बाद में परमार ने वर्ष 1977 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.

परमार ने एक महत्वपूर्ण पुस्तक पोलीएंड्री एन हिमाचल भी लिखी थी. भारत सरकार ने डॉ. परमार पर डाक टिकट भी जारी किया था. डॉ. परमार का हिमाचल के विकास को लेकर विजन बिल्कुल स्पष्ट था. वे पूरे प्रदेश में प्राथमिकता के आधार पर सड़कों का जाल बिछाने की मुहिम में जुटे थे.

वे सडक़ों को पहाड़ के निवासियों की भाग्य रेखा कहते थे. ईमानदारी के जीवंत प्रतीक डॉ. वाईएस परमार ने 2 मई 1981 को शरीर त्याग दिया. डॉ. वाईएस परमार की जयंती पर हिमाचल में साहित्यिक आयोजन नियमित रूप से होते हैं. इस साल परमार जयंती पर राज्य स्तरीय आयोजन बिलासपुर में हो रहा है. डॉ. परमार के नाम पर हिमाचल के सोलन जिला में बागवानी व वानिकी विश्वविद्यालय भी है.

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