शिमला: कोरोना काल में देवभूमि हिमाचल के शक्तिपीठों में पुजारी आस्था की कतारें देखने के लिए तरस गए. मां के मंदिरों में श्रद्धालुओं के भक्तिभाव से परिपूर्ण चढ़ावे में भी भारी कमी आई. बेशक कुछ समय पहले कुछ सीमाओं के साथ मंदिर खोल दिए गए, लेकिन नवरात्रि के पर्व में भी कोरोना के चलते मंदिरों में पहले जैसी चहल-पहल नहीं देखी गई.
हिमाचल प्रदेश के शक्तिपीठ और अन्य मंदिर बेहद संपन्न हैं और यहां अरबों रुपए की संपत्ति, सोना-चांदी और आभूषण हैं, लेकिन इस साल कोरोना की वजह से चढ़ावे में अभूतपूर्व कमी देखी गई. विख्यात शक्तिपीठ मां ज्वालामुखी के मंदिर में इस साल केवल 3.91 करोड़ रुपये का चढ़ावा नकद आया. पिछले साल यह आंकड़ा 13 करोड़ रुपये से कुछ ही कम था. श्रद्धालुओं की संख्या भी इस साल सितंबर अंत तक पांच लाख ही रही. इसमें भी आस्थावानों की संख्या साल के उन दिनों की है, जब कोरोना संकट ने दस्तक नहीं दी थी. यानी मार्च के पहले पखवाड़े तक श्रद्धालुओं की संख्या अधिक थी.
इसी तरह मां चामुंडा देवी के मंदिर के नकद चढ़ावे में सवा तीन करोड़ रुपये की कमी दर्ज की गई है. कांगड़ा जिला के ही बज्रेश्वरी देवी मंदिर का नकद चढ़ावा भी पिछले साल के मुकाबले पांच करोड़ रुपए कम रहा. देश-विदेश में फैले माता चिंतपूर्णी के भक्तों की हाजिरी भी कोरोना काल में नहीं लग पाई. नवरात्रि के दौरान 17 अक्टूबर से लेकर 24 अक्टूबर तक मां चिंतपूर्णी के मंदिर में नकद चढ़ावा केवल 47 लाख रुपये रहा. पिछले साल इन्हीं सात दिनों में यह रकम 67 लाख से अधिक थी.
साल 2018 में शारदीय नवरात्रि में चढ़ावे का आंकड़ा सत्तर लाख रुपये से ज्यादा था. जाहिर है, कोरोना के कारण श्रद्धालुओं की संख्या तो कम होनी ही थी, चढ़ावे में भी गिरावट आनी थी. यही आंकड़े भी बता रहे हैं.
कांगड़ा के तीन शक्तिपीठों में चढ़ावे का तुलनात्मक ब्यौरा
कांगड़ा में जिस शक्तिपीठ में सबसे ज्यादा भक्त आते हैं, उसे जोतां वाली माता यानी मां ज्वालामुखी के नाम से पुकारा जाता है. देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु, जिन्हें स्थानीय बोली में जातरू कहा जाता है, वह माता ज्वालामुखी के दर्शन को आते हैं. साल 2017 में ज्वालामुखी मां के दर्शन को बीस लाख भक्त आए थे. साल दर साल यह आंकड़ा बढ़ता गया. साल 2018 में 20 लाख 25 हजार और वर्ष 2019 में 20 लाख, 75 हजार जातरू आए, लेकिन कोरोना के कारण 2020 में सितंबर तक केवल पांच लाख ही भक्त आए. चढ़ावे में भी इसी क्रम में बढ़ोतरी और गिरावट देखी गई.
साल 2017 में 12.16 करोड़ रुपये से अधिक नकद चढ़ावा चढ़ा. अगले साल यानी 2018 में यह रकम 12.40 करोड़ रुपये के करीब थी. 2019 में यह बढक़र 12.95 करोड़ हो गई, लेकिन कोरोना साल में इसमें गिरावट आई और यह रकम तीन करोड़ 91 लाख रुपय तक सिमट गई.
मां चिंतपूर्णी मंदिर में आभूषण का चढ़ावा भी हुआ मामूली कम
मां चिंतपूर्णी के दरबार में भक्त नकद रकम के अलावा आभूषण भी भेंट करते हैं. साल 2017 में यहां नवरात्रि में यहां 112 ग्राम सोना और साढ़े चार किलो चांदी अर्पित की गई. 2018 में स्वर्ण आभूषण 157 ग्राम व चांदी सात किलो से अधिक चढ़ाई गई. श्रद्धालु इस बार बेशक कम आए, लेकिन सोना व चांदी के चढ़ावे में खास कमी नहीं आई. कोरोना संकट में नवरात्रि में 111 ग्राम सोना व सवा चार किलो चांदी भेंट की गई.
बिलासपुर स्थित माता नैना देवी जी के दरबार की बात की जाए तो यहां नवरात्रि में पिछले साल यहां 92 लाख रुपये के करीब नकद भेंट आई. करीब अढ़ाई सौ ग्राम सोना और 17 किलो के करीब चांदी भेंट की गई. इस साल कोरोना के कारण नकद चढ़ावा 61 लाख रुपये से अधिक था. करीब दो सौ ग्राम सोना और नौ किलो से अधिक चांदी अर्पित की गई.