बिलासपुर (छत्तीसगढ़): सास-बहू के झगड़े की खबरों के बीच अगर हम आपसे ये कहें कि बहुओं ने सास का मंदिर बनवाया, तो शायद आप यकीन नहीं करेंगे. लेकिन ये सच है. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के रतनपुर के तंबोली परिवार की 11 बहुओं ने अपनी सास की यादों को संजोने के लिए उनका मंदिर बनवाया है.
बहुएं हर रोज मंदिर में सास की आरती करती हैं. महीने में एक बार मंदिर के सामने बैठकर भजन-कीर्तन भी करती हैं. बहुओं ने सास की मूर्ति का सोने के गहनों से श्रृंगार भी किया है.
बहुओं ने सास से सीखा प्यार
39 सदस्यों वाले इस परिवार में 2010 में रिटायर्ड शिक्षक शिवप्रसाद तंबोली की पत्नी गीता का स्वर्गवास हो गया था. गीता जब तक जीवित रहीं, अपनी बहुओं को बहुत प्रेम करती रहीं. बहुओं को अपनी सास से भी उतना ही लगाव है. एक वक्त जब वे दूसरे के घरों में झगड़े की खबरें सुनती थीं, उस वक्त उनकी सास उन्हें एकता का पाठ पढ़ाती थीं. बहुएं तो कहती हैं कि प्यार करना उन्होंने अपनी सास से ही सीखा है.
परिवार में नहीं होते झगड़े
गीता के पति शिव प्रसाद कहते हैं कि उनके अच्छे संस्कार और धार्मिक सदाचार ने ही आज तक परिवार को जोड़कर रखा है. तंबोली परिवार को स्वर्गीय गीता तंबोली को खोने का गम आज भी सता रहा है. परिवार के सदस्यों का मानना है कि गीता देवी के प्रयासों से ही परिवार में सुख, समृद्धि और एकता है. इस परिवार में कभी झगड़ा नहीं हुआ. हर काम सबकी सलाह से किया जाता है.
परिवार को प्यार से बांधे रखा
गीता की तीन बहुएं हैं. इनमें बेटे संतोष की पत्नी ऊषा, प्रकाश की पत्नी वर्षा और प्रमोद की पत्नी रजनी हैं. संयुक्त परिवार में गीता देवी के देवर केदार की पत्नी कलीबाई, कौशल की मीराबाई, पुरुषोत्तम की गिरिजा बाई और सुभाष की अंजनी भी हैं. वे कहती हैं कि बड़ी जेठानी गीता ने कभी उन्हें देवरानी नहीं माना, बल्कि बहनों की तरह ही दुलार किया. सभी को मिल-जुलकर साथ रहने की शिक्षा दी.
शिवप्रसाद चलाते हैं घर
इधर शिव प्रसाद ने बेटे और भाइयों में भेदभाव नहीं किया. रिटायर होने के बाद उन्हें सरकार से जो राशि मिली, उसे सभी को बांट दिया. पेंशन की रकम को घर खर्च में लगाते हैं. शिवप्रसाद आपस में पांच भाई हैं. वे सबसे बड़े हैं. दूसरे नंबर पर केदारनाथ तीसरे कौशलनाथ का निधन हो चुका है. तीनों परिवार का जिम्मा वे खुद ही संभालते हैं.
11 बहुएं तंबोली परिवार की आधार स्तंभ हैं. तंबोली परिवार की सभी बहुएं पढ़ी-लिखी हैं और घर के साथ-साथ बाहर के काम में भी हाथ बंटाती हैं. सच ये परिवार समाज के लिए एक नजीर है. हम जब टूटते और बिखरते परिवारों से मिल रहे हैं, तब तंबोली परिवार के लोग उम्मीद की किरण जैसे नजर आते हैं.
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