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CPRI शिमला एरोपोनिक विधि से उगा रहा आलू, इस तकनीक में पौधे में लगते हैं आलू - research news shimla

सीपीआरआई शिमला ने एरोपोनिक विधि से आलू का बीज तैयार करना शुरू किया है. केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान इस नई विधि से बिना मिट्टी के आलू के पौधे लगा रहा है.

एरोपोनिक विधि से आलू
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Published : Sep 8, 2019, 3:12 PM IST

शिमला: सीपीआरआई शिमला ने एरोपोनिक विधि से आलू का बीज तैयार करना शुरू किया है. केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान इस नई विधि से बिना मिट्टी के आलू के पौधे लगा रहा है. इस एक पौधे में 60 से 70 आलू अलग-अलग ब्रीड के लगते हैं, जिससे किसानों को अलग-अलग किस्म के बीज मुहैया होंगे.

सीपीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक


आलू अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.नरेंद्र कुमार पांडे ने बताया कि अभी तक देश और प्रदेश में किसानों को उस मात्रा में ब्रीडर सीड नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में इस आवश्यकता को देखते हुए एरोपोनिक तकनीक का इस्तेमाल ज्यादा संख्या में ब्रीडर सीड उगाने के लिए किया जा रहा है. इस तकनीक से उगने वाले आलुओं की खास बात यह है कि इसमें मिट्टी से जुड़े किसी भी वायरस के आने का खतरा नहीं है.


बता दें कि सीपीआरआई शिमला, मोदीपुर के साथ ही पटना, जालंधर और शिलांग में भी आलू बीज पैदा किया जा रहा है. जल्द ही इस तकनीक की ट्रेनिंग किसानों को भी दी जाएगी, जिससे वो खुद भी इस तकनीक से ब्रीडर सीड उगा सकें.

ये भी पढ़े- खबर का असर: पराला में खुलेगा कोल्ड स्टोर और प्रोसेसिंग प्लांट, मंत्री ने किया वादा


जाने कैसे बढ़ेगी पैदावार
इस विधि में उगाए जाने वाले पौधे की जड़ों में आलू के बीज 60 से 70 की संख्या में लग रहे हैं. इस विधि से आलू के बीज काफी मात्रा में एक साथ तैयार किए जा रहे हैं. वहीं, किसानों को अलग-अलग ब्रीड के बीज इस तकनीक के माध्यम से मुहैया हो पा रहे हैं. किसान भी इन किस्मों के आलू के बीज लगाकर अपनी पैदावार को बढ़ा सकते हैं.

शिमला: सीपीआरआई शिमला ने एरोपोनिक विधि से आलू का बीज तैयार करना शुरू किया है. केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान इस नई विधि से बिना मिट्टी के आलू के पौधे लगा रहा है. इस एक पौधे में 60 से 70 आलू अलग-अलग ब्रीड के लगते हैं, जिससे किसानों को अलग-अलग किस्म के बीज मुहैया होंगे.

सीपीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक


आलू अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.नरेंद्र कुमार पांडे ने बताया कि अभी तक देश और प्रदेश में किसानों को उस मात्रा में ब्रीडर सीड नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में इस आवश्यकता को देखते हुए एरोपोनिक तकनीक का इस्तेमाल ज्यादा संख्या में ब्रीडर सीड उगाने के लिए किया जा रहा है. इस तकनीक से उगने वाले आलुओं की खास बात यह है कि इसमें मिट्टी से जुड़े किसी भी वायरस के आने का खतरा नहीं है.


बता दें कि सीपीआरआई शिमला, मोदीपुर के साथ ही पटना, जालंधर और शिलांग में भी आलू बीज पैदा किया जा रहा है. जल्द ही इस तकनीक की ट्रेनिंग किसानों को भी दी जाएगी, जिससे वो खुद भी इस तकनीक से ब्रीडर सीड उगा सकें.

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जाने कैसे बढ़ेगी पैदावार
इस विधि में उगाए जाने वाले पौधे की जड़ों में आलू के बीज 60 से 70 की संख्या में लग रहे हैं. इस विधि से आलू के बीज काफी मात्रा में एक साथ तैयार किए जा रहे हैं. वहीं, किसानों को अलग-अलग ब्रीड के बीज इस तकनीक के माध्यम से मुहैया हो पा रहे हैं. किसान भी इन किस्मों के आलू के बीज लगाकर अपनी पैदावार को बढ़ा सकते हैं.

Intro:किसानों को आलू की बेहतर पैदावार मिल सके ओर इसके लिए उन्हें अच्छी क्वालिटी का ब्रीडर सीड मुहैया करवा जा सके इसे देखते हुए सीपीआरआई शिमला ने एरोपोनिक विधि से आलू का बीज तैयार करना शुरू किया है। केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान इस नई विधि से बिना मिट्टी के आलू के पौधे लगा रहा है। इस एक पौधे में 60 से 70 आलू अलग-अलग ब्रीड के लगते है जिससे कि किसानों को अलग-अलग किस्म के बीज मुहैया हो पा रहे है। इस तकनीक से उगने वाले आलुओं की खास बात यह है कि इसमें मिट्टी से जुड़े किसी भी वायरस के आने का खतरा नहीं होता है।


Body:अभी तक जो आलू का बीज जमीन के नीचे मिट्टी में उगाया जा रहा था अब उसे एरोपोनिक नाम की नई तकनीक से आलू को बिना मिट्टी के एक बॉक्स में उगाया जा रहा है। इस विधि में उगाए जाने वाले पौधे की जड़ों में आलू के बीज 60 से 70 की संख्या में लग रहे हैं। इससे जहां आलू के बीज काफी मात्रा में एक साथ तैयार किए जा रहे हैं वहीं किसानों को अलग-अलग ब्रीड के बीज इस तकनीक के माध्यम से मुहैया हो पा रहे हैं। किसान भी इन अलग-अलग किस्मों के आलू के बीज लगाकर अपनी पैदावार को बढ़ा पा रहे हैं। अभी तक देशभर में किसानों को आलू का ब्रीडर सीड उस मात्रा में नहीं मिल पा रहा है जिस मात्रा में उन्हीं उसकी आवश्यकता है। इस जरूरत को देखते हुए ही भारतीय केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला ने एरोप्लेन एक नामक नई तकनीक को इज़ात किया और बिना मिट्टी के हवा में आलू उगाया जाने लगा है।


Conclusion:आलू अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर नरेंद्र कुमार पांडे ने बताया कि अभी तक देश और प्रदेश में किसानों में को उस मात्रा में ब्रीडर सीड नहीं मिल पा रहा है जिस मात्रा में उन्हें ब्रीडर सीड मिलना चाहिए। ऐसे में इस आवश्यकता को देखते हुए एरोपोनिक तकनीक का इस्तेमाल ज्यादा संख्या में ब्रीडर सीड उगाने के लिए किया जा रहा है। इस तकनीक से आलू का बीज तैयार करने के लिए ज्यादा लैब्स की आवश्यकता होती है। इसमें स्टील के बॉक्स पर थर्मोकोल की शीट लगाई जाती है और इसके ऊपर प्लास्टिक की एक ओर शीट लगती है। इस पर प्लांट को रखा जाता है। इसके लिए पंप के पानी व न्यूट्रिएंट दिया जाता है।इस तकनीक की सबसे खास बात यह है कि इस पद्धति से उगया गया आलू वायरस फ्री होता है ओर 90 दिन में अलग-अलग ब्रीड के 60 से 70 बीज एक ही पौधे से प्राप्त किए जा रहे। इस तकनीक से अभी सीपीआरआई शिमला, मोदीपुर के साथ ही पटना,जालंधर ओर शिलांग में भी आलू बीज पैदा किया जा रहा है। जल्द हो इस तकनीक की ट्रेनिंग किसानों को भी दी जाएगी जिससे कि वो खुद भी इस तकनीक से ब्रीडर सीड उगा सके।
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