शिमला: कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है. केंद्र से लेकर राज्यों में सबसे ज्यादा सरकार बनाने का अनुभव भी कांग्रेस के पास है लेकिन बीते कुछ वक्त से कांग्रेस की हालत ठीक नहीं है. केंद्र से लेकर राज्यों तक कांग्रेस की हालत किसी से छिपी नहीं है.
खासकर बीते दो लोकसभा चुनाव और इस दौरान देशभर के राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस लगातार अपनी ताकत खोती रही. कई राज्यों में तो नौबत साख बचाने तक की आ चुकी है. कभी छोटे मोटे दल कांग्रेस से गठबंधन करने को तैयार रहते थे लेकिन मौजूदा दौर में कई राज्यों में कांग्रेस क्षत्रपों के सहारे नजर आ रही है.
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस
हिमाचल के गठन के बाद से ही कांग्रेस मजबूत स्थिति में रही है. छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद कांग्रेस का सत्ता के गलियारों में दबदबा रहा है. मौजूदा समय में हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सत्तासीन है. कुल 68 सदस्यीय विधानसभा में 21 सीटों के साथ कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है. यूं तो हिमाचल की राजनीति में पांच साल के बाद सत्ता बदलने का ट्रेंड रहा है, लेकिन मौजूदा दौर में कांग्रेस पहले की तरह मजबूत नहीं है.
विधानसभा चुनाव और कांग्रेस
हिमाचल में बीते करीब 3 दशक से सियासी मौसम हर बार कांग्रेस और बीजेपी के लिए बदलता है. यानी यहां कोई भी पार्टी सरकार रिपीट नहीं कर पाई है. बीते 3 दशक का ट्रेंड बताता है कि हर 5 साल में जनता सरकार बदल देती है.
विधानसभा चुनाव के ये दिलचस्प आंकड़े इसकी तस्दीक भी करते हैं. बीते 5 विधानसभा चुनाव की बात करें तो साल 2017 में कांग्रेस महज 21 सीटों पर सिमट गई थी. हालांकि बीते 5 विधानसभा के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में ज्यादा बदलाव या गिरावट दर्ज नहीं की गई.
लोकसभा चुनाव और कांग्रेस
हिमाचल में लोकसभा की 4 सीटें हैं और आंकड़ों पर नजर डालें तो हिमाचल में कांग्रेस की हालत विधानसभा के मुकाबले लोकसभा चुनावों में लगातार बिगड़ी है. खासकर बीते 2 लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस हिमाचल में खाता भी नहीं खोल पाई और 2014 लोकसभा चुनाव के बाद 2019 के आम चुनावों में भी बीजेपी ने जीत का चौका लगाया था.
वोट प्रतिशत के मामले में बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ जब 2004 में 3 सीटें पाकर करीब 52 फीसदी वोट पाने वाली कांग्रेस इस बार एक भी सीट नहीं जीत पाई और सिर्फ 27.30 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई.
कांग्रेस का सुनहरा दौर
देश के अन्य राज्यों के मुकाबले हिमाचल में कांग्रेस अपनी स्थिति पर संतोष तो कर सकती है लेकिन प्रदर्शन में साल दर साल गिरावट सबको नजर आ रही है. हालांकि हमेशा ऐसा नहीं था. कांग्रेस ने देश के अन्य राज्यों की तरह हिमाचल में भी वो सुनहरा दौर देखा जब साल 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सबसे अधिक 58 सीटें जीतीं.
इसी तरह साल 1972 में 53, साल 1993 में 52 और साल 2003 में 43 सीटें हासिल की थीं. ये कांग्रेस का शानदार प्रदर्शन रहा है, इसी तरह लोकसभा में सात बार कांग्रेस ने सभी सीटें जीतीं. आखिरी बार साल 1996 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने सभी चार सीटें जीती थीं. इससे पहले 1971, 1980 और 1984 में कांग्रेस ने लगातार हिमाचल की सभी चार सीटें अपनी झोली में डाली हैं.
हिमाचल कांग्रेस का मर्ज
हिमाचल कांग्रेस के पास फिलहाल कोई बड़ा चेहरा नहीं है. 6 बार के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह 86 साल के हो चुके हैं और उनके रहते प्रदेश में कांग्रेस नेताओं की नई पौध तैयार नहीं कर पाई. कांग्रेस की अंदरूनी कलह उसका बहुत पुराना रोग है. मौजूदा दौर में भी कौल सिंह ठाकुर से लेकर जीएस बाली तक और वीरभद्र सिंह से लेकर सुक्खू तक अलग-अलग गुटों की नुमाइंदगी करते दिखते हैं.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे कुलदीप सिंह राठौर संगठन से तो लंबे वक्त से जुड़े रहे हैं लेकिन चुनावी राजनीति का उन्हें खास अनुभव नहीं है. ऐसे में हिमाचल में कांग्रेस के हाथ को मजबूत करने के लिए सभी अंगुलियों यानी फ्रंटल संगठनों, कार्यकर्ताओं और नेताओं को साथ आने की जरूरत है.
पार्टी विधानसभा के अंदर तो सरकार को घेरने की कोशिश करती है लेकिन सरकार के खिलाफ किसी भी मुद्दे को लेकर ना एकजुट हो पाती है और ना ही सड़क पर उतर पाती है. सरकार में रहते हुए भी कांग्रेस संगठन और सरकार के बीच तालमेल कम ही नजर आया. जिसके कारण प्रदेश में पार्टी का कार्यकर्ता हताश और निराश दिखता है.
कई बार तो प्रदेश अध्यक्ष और आला नेताओं के सामने ही कार्यकर्ताओं के बीच जूतम पैजार जैसी स्थिति आ गई है. हालांकि इतना कुछ होने के बावजूद पार्टी आलाकमान की तरफ से कोई सख्ती नहीं दिखाई गई है जिसके कारण पार्टी का माहौल लगातार खराब हो रहा है. इसलिये अगर हिमाचल में कांग्रेस को फिर से मजबूत होना है तो इन सभी मुश्किलों से पार पाना होगा.
कर्ज का मर्ज का तोड़ किसी के पास नहीं
यदि कांग्रेस और भाजपा सरकार के कार्यकाल की बात करें तो कमोबेश विकास के मामले में दोनों का ही ट्रैक रिकार्ड ठीक रहा है. कांग्रेस के पिछले कार्यकाल में पार्टी पर ये आरोप लगता रहा कि सीएम वीरभद्र सिंह का अधिकांश समय अपने खिलाफ चल रहे करप्शन के मामलों में गुजरता रहा है.
मौजूदा भाजपा सरकार ने 2018-19 के दौरान केंद्र की तरफ से निर्धारित लोन सीमा से 1617 करोड़ रुपये कम लोन लिया है. पूर्व में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने वर्ष 2007 से 2012 के दौरान 7465 करोड़ रुपये का लोन लिया.
वहीं, कांग्रेस ने 2012 से 2017 के दौरान 19195 करोड़ रुपये कर्ज लिया. कांग्रेस के कार्यकाल में 13वें वित्तायोग से 4338 करोड़ रुपये का औसत अनुदान मिला तो 14वें वित्तायोग के दौरान प्रदेश को 14407 करोड़ रुपये का औसत अनुदान मिला और 15वें वित्तायोग ने पहले ही साल में 19309 करोड़ रुपये का वित्तीय अनुदान जारी किया. जो अगले पांच सालों में प्रदेश को मिलने वाला सर्वाधिक अनुदान था. हालांक हिमाचल में कर्ज के मर्ज का तोड़ कोई भी सरकार नहीं निकाल पाई है.
क्या कहते हैं सियासी जानकार ?
वरिष्ठ पत्रकार धनंजय शर्मा की मानें तो साल 1993 के बाद बीजेपी में नए और युवा चेहरे उभरकर सामने आने लगे जबकि कांग्रेस इस दौर में पुराने चेहरों पर ही दांव लगाती रही. आलम ये है कि बीजेपी के पास आज नए चेहरों की भरमार है और कांग्रेस कभी भी सेकेंड लाइन की लीडरशिप तैयार नहीं कर पाई जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ रहा है.
पिछले 3 दशक से हिमाचल की सियासी नब्ज टटोल रहे धनंजय शर्मा कहते हैं कि कांग्रेस को नए चेहरों को मौका देना होगा वो कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू से लेकर कुलदीप राठौर तक का उदाहरण देते हैं जो युवा राजनीति से उभरे लेकिन उन्हें वो मौका नहीं मिल पाया.
कुलदीप राठौर के साथ छात्र राजनीति के दौर में आए जेपी नड्डा प्रदेश के मंत्रिमंडल से होते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल औऱ आज बीजेपी के सर्वोच्च पद तक पहुंच चुके हैं. जबकि कुलदीप राठौर को साल 2019 में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी लेकिन चुनावी रण से वो अभी तक दूर रहे हैं. कांग्रेस अगर नए नेताओं की पौध तैयार नहीं करती है तो आने वाले दिनों में कांग्रेस की मुश्किलें और भी बढ़ सकती हैं.
कांग्रेस की मौजूदा स्थित को लेकर वरिष्ठ पत्रकार हेमंत कुमार कहते हैं कि गुटबाजी कांग्रेस की पुरानी बीमारी है जो हिमाचल में भी देश के करीब हर राज्य की तरह है कांग्रेसियों के बीच देखने को मिल जाती है. उनके मुताबिक कांग्रेसियों के बीच सांप सीढ़ी का खेल चलता रहता है जिसमें एकजुट होने की बजाय एक दूसरे की टांग खिंचाई होती है.
सियासी जानकार मानते हैं कि इस गुटबाजी और अंदरूनी कलह के लिए आलाकमान भी जिम्मेदार है क्योंकि इन गुटों को कांग्रेस आलाकमान या केंद्रीय नेताओं का साथ मिलता रहा. वरिष्ठ पत्रकार उदयवीर पठानिया कहते हैं कि हिमाचल की जनता हर 5 साल में सरकार बदलती है ऐसे में कांग्रेस मानकर बैठी है कि अगली बार उसकी सत्ता में वापसी तय है. पठानिया के मुताबिक प्रदेश में मौजूदा सरकार के खिलाफ रोष की स्थिति कांग्रेस को अगले चुनाव में फायदा दिला सकती है वरना कांग्रेस के पास ना काबीलियत है और ना संगठन.
वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के मुताबिक
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर का कहना है कि हिमाचल में कांग्रेस के साथ जनता का लगाव बरकरार है. पार्टी में सभी को एकजुट होकर सत्ता में वापिसी का मार्ग प्रशस्त करना होगा. कौल सिंह का कहना है कि अनुभवी नेताओं को साथ लेकर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की जरूरत है. आगामी पंचायत चुनावों में कांग्रेस के पास खुद को परखने का मौका होगा.