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तकरार से बढ़ेगी संगठन और सरकार में दरार, आखिर अपने ही क्यों घेर रहे सुखविंदर सरकार को

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Dec 6, 2023, 6:45 AM IST

Updated : Dec 6, 2023, 12:22 PM IST

Himachal Congress Dispute: हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के संगठन और सुखविंदर सरकार में तकरार पड़ती नजर आ रही है. कांग्रेस सरकार के कार्यकाल को एक साल पूरा होने जा रहा है. जिसके लिए सरकार जश्न का आयोजन करेगी, लेकिन संगठन की मुखिया प्रतिभा सिंह ने इसकी कोई भी जानकारी होने से इनकार कर दिया है. जो कि संगठन में दरार की ओर इशारा कर रही है.

Himachal Congress Dispute
हिमाचल कांग्रेस विवाद

शिमला: भाजपा के कद्दावर नेता अमित शाह ने 2017 के चुनाव में मंडी के सराज में एक चुनावी सभा में कहा था कि पार्टी पांच नहीं पंद्रह साल सत्ता में रहने का लक्ष्य लेकर चली है. भाजपा की पुरजोर कोशिशों के बावजूद हिमाचल की सत्ता उसके हाथ से खिसक गई. कांग्रेस के सिर सत्ता का ताज सजा और सुखविंदर सिंह सुक्खू हॉट सीट पर विराजमान हुए.

कांग्रेस में तकरार! सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सुख की सरकार और व्यवस्था परिवर्तन का नारा दिया, लेकिन एक साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही संगठन और सरकार में तकरार बढ़ने लगी है. इससे संगठन और सरकार में दरार बढ़ने की आशंका हैं. शुरुआत हुई प्रतिभा सिंह के तीखे बयान से सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक साल के जश्न की रूपरेखा तैयार करने के लिए विधायक दल की मीटिंग बुलाई. राज्य में संगठन की मुखिया प्रतिभा सिंह को इस बैठक की जानकारी नहीं दी गई, जबकि इससे पहले पीसीसी चीफ कुलदीप सिंह राठौर को विधायक दल की बैठक में बुलाया जाता रहा.

प्रतिभा सिंह की नाराजगी! बताया जा रहा है कि प्रतिभा सिंह इस अनदेखी से आहत हो गई. शिमला में एक बयान में प्रतिभा सिंह ने कहा कि उन्हें एक साल के जश्न के लिए कॉन्फिडेंस में नहीं लिया गया. उन्हें जश्न के समारोह को लेकर कोई जानकारी नहीं है. बस, प्रतिभा सिंह के इस बयान के सामने आते ही कांग्रेस के सियासी गलियारे में हलचल मच गई. राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में करारी हार से कांग्रेस कार्यकर्ता पहले ही हताश और निराश थे और ऊपर से जिस राज्य में पार्टी सत्तासीन है, वहीं पर तकरार तेज हो जाए तो हाईकमान भी परेशान होगी.

वैसे तो हिमाचल में सत्ता में आने के दौरान ही हॉट सीट के लिए संघर्ष हुआ था. वीरभद्र सिंह के दौर में सत्ता का केंद्र उनका निजी आवास होली लॉज हुआ करता था. वीरभद्र सिंह का जलवा ऐसा था कि उनके मुख्यमंत्री रहते पार्टी में विरोधी गुट कभी हावी नहीं हो पाता था. इस बार पार्टी सत्ता में आई तो होली लॉज ने एक बार फिर से सत्ता का केंद्र बिंदु बनने के लिए जी-तोड़ प्रयास किया, लेकिन बाजी सुखविंदर सिंह सुक्खू के हाथ लगी. सुखविंदर सिंह सुक्खू सीएम बन गए, लेकिन उनके हॉट सीट पर बैठते ही कई नेताओं के अरमान टूट गए. मुकेश अग्निहोत्री को डिप्टी सीएम के पद से संतोष करना पड़ा.

का खैर, सरकार चलने लगी और सीएम ने व्यवस्था परिवर्तन के साथ-साथ सुख की सरकार का नारा बुलंद किया. सुख की सरकार के लिए पहली अग्नि परीक्षा कैबिनेट विस्तार के रूप में आई. लाल बत्ती वाली कार के इंतजार में नेता बेचैन होने लगे. कैबिनेट मंत्रियों के तीन पद खाली हैं. इंतजार की घड़ियां लंबी होने लगी तो सुजानपुर से राजेंद्र राणा का सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने सोशल मीडिया पर महाभारत वाली बात कह दी. वीरभद्र सरकार के समय कैबिनेट मंत्री रहे सुधीर शर्मा भी इंतजार करते रह गए.

कांग्रेस में उठती विद्रोह की आवाज: ज्वाली के पूर्व विधायक नीरज भारती, जिनके पिता चौधरी चंद्र कुमार वर्तमान में कैबिनेट मंत्री हैं, ने भी अपनी सरकार को नसीहत देने में कसर नहीं छोड़ी. बीच-बीच में ऑपरेशन लोटस की चर्चा छिड़ती रही. अब सरकार का एक साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है तो पार्टी की मुखिया ही नाराज हो गई. हालांकि प्रतिभा सिंह पहले भी संगठन के लोगों को एडजस्ट न करने को लेकर नाराजगी जता चुकी थी, लेकिन इस बार तो उन्होंने सीधे-सीधे ये कह दिया कि सरकार भी संगठन के ही प्रयासों से बनती है.

सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू चतुर राजनेता हैं. वे संगठन में रहे हैं और वीरभद्र सिंह जैसे कद्दावर नेता की पुरजोर खिलाफत के बावजूद संगठन में डटे रहे. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू की हाईकमान के प्रति निष्ठा का फल उन्हें मिला. सीएम बनने के बाद उन्होंने अपने संघर्ष के समय के साथियों को याद रखा. इसी कारण सरकार को मित्रों की सरकार भी कहा जाने लगा. इस बीच, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी परेशानियों से घिरे. दिल्ली एम्स में उनका लंबे समय तक इलाज चला. सेहत की परेशानियों ने उबरे तो अब संगठन और सरकार में तकरार की मुसीबत खड़ी हो गई है.

सरकारों में गुटबाजी: वहीं, तीन राज्यों में पराजय के बाद कांग्रेस में वैसे ही हताशा का माहौल है. ऐसे में संगठन के मुखिया की नाराजगी कहीं भारी न पड़ जाए. वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा का मानना है कि हर सरकार में गुटबाजी किसी न किसी रूप में रही है. वीरभद्र सिंह सरकार के समय कौल सिंह ठाकुर, विद्या स्टोक्स, आनंद शर्मा आदि नेताओं का एक अलग गुट माना जाता था. भाजपा सरकार में शांता कुमार व प्रेम कुमार धूमल का गुट चर्चित रहता था. ये कोई नई बात नहीं है, लेकिन सुखविंदर सरकार के लिए पार्टी मुखिया प्रतिभा सिंह की नाराजगी अच्छे संकेत नहीं हैं. वीरभद्र सिंह अपने आभामंडल से विरोध को निष्प्रभावी कर दिया करते थे.

धनंजय शर्मा का कहना है कि सुखविंदर सिंह सुक्खू ने संगठन में लंबा समय बिताया है, लेकिन सत्ता उनके लिए नई है. वे पहले कभी कैबिनेट मंत्री भी नहीं रहे. सीएम सुक्खू अपने हिसाब से कामकाज करने में विश्वास रखते हैं. एक साल के कार्यकाल में ही विरोध के ऐसे स्वर यदि उभरते हैं तो ये अच्छे संकेत नहीं हैं. अभी कैबिनेट विस्तार में जिस वर्ग को प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा, वो भी अपना गुबार बयानों के जरिए निकालेगा. फिलहाल, कांग्रेस के लिए सुख की सरकार और व्यवस्था परिवर्तन का नारा कितना सुखद रहता है, ये निकट भविष्य में सामने आएगा.

ये भी पढे़ं: क्या सुखविंदर सरकार और संगठन में बढ़ रही है तकरार?, प्रतिभा सिंह बोली-एक साल के कार्यक्रम की जानकारी नहीं, न मुझे कॉन्फिडेंस में लिया गया

शिमला: भाजपा के कद्दावर नेता अमित शाह ने 2017 के चुनाव में मंडी के सराज में एक चुनावी सभा में कहा था कि पार्टी पांच नहीं पंद्रह साल सत्ता में रहने का लक्ष्य लेकर चली है. भाजपा की पुरजोर कोशिशों के बावजूद हिमाचल की सत्ता उसके हाथ से खिसक गई. कांग्रेस के सिर सत्ता का ताज सजा और सुखविंदर सिंह सुक्खू हॉट सीट पर विराजमान हुए.

कांग्रेस में तकरार! सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सुख की सरकार और व्यवस्था परिवर्तन का नारा दिया, लेकिन एक साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही संगठन और सरकार में तकरार बढ़ने लगी है. इससे संगठन और सरकार में दरार बढ़ने की आशंका हैं. शुरुआत हुई प्रतिभा सिंह के तीखे बयान से सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक साल के जश्न की रूपरेखा तैयार करने के लिए विधायक दल की मीटिंग बुलाई. राज्य में संगठन की मुखिया प्रतिभा सिंह को इस बैठक की जानकारी नहीं दी गई, जबकि इससे पहले पीसीसी चीफ कुलदीप सिंह राठौर को विधायक दल की बैठक में बुलाया जाता रहा.

प्रतिभा सिंह की नाराजगी! बताया जा रहा है कि प्रतिभा सिंह इस अनदेखी से आहत हो गई. शिमला में एक बयान में प्रतिभा सिंह ने कहा कि उन्हें एक साल के जश्न के लिए कॉन्फिडेंस में नहीं लिया गया. उन्हें जश्न के समारोह को लेकर कोई जानकारी नहीं है. बस, प्रतिभा सिंह के इस बयान के सामने आते ही कांग्रेस के सियासी गलियारे में हलचल मच गई. राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में करारी हार से कांग्रेस कार्यकर्ता पहले ही हताश और निराश थे और ऊपर से जिस राज्य में पार्टी सत्तासीन है, वहीं पर तकरार तेज हो जाए तो हाईकमान भी परेशान होगी.

वैसे तो हिमाचल में सत्ता में आने के दौरान ही हॉट सीट के लिए संघर्ष हुआ था. वीरभद्र सिंह के दौर में सत्ता का केंद्र उनका निजी आवास होली लॉज हुआ करता था. वीरभद्र सिंह का जलवा ऐसा था कि उनके मुख्यमंत्री रहते पार्टी में विरोधी गुट कभी हावी नहीं हो पाता था. इस बार पार्टी सत्ता में आई तो होली लॉज ने एक बार फिर से सत्ता का केंद्र बिंदु बनने के लिए जी-तोड़ प्रयास किया, लेकिन बाजी सुखविंदर सिंह सुक्खू के हाथ लगी. सुखविंदर सिंह सुक्खू सीएम बन गए, लेकिन उनके हॉट सीट पर बैठते ही कई नेताओं के अरमान टूट गए. मुकेश अग्निहोत्री को डिप्टी सीएम के पद से संतोष करना पड़ा.

का खैर, सरकार चलने लगी और सीएम ने व्यवस्था परिवर्तन के साथ-साथ सुख की सरकार का नारा बुलंद किया. सुख की सरकार के लिए पहली अग्नि परीक्षा कैबिनेट विस्तार के रूप में आई. लाल बत्ती वाली कार के इंतजार में नेता बेचैन होने लगे. कैबिनेट मंत्रियों के तीन पद खाली हैं. इंतजार की घड़ियां लंबी होने लगी तो सुजानपुर से राजेंद्र राणा का सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने सोशल मीडिया पर महाभारत वाली बात कह दी. वीरभद्र सरकार के समय कैबिनेट मंत्री रहे सुधीर शर्मा भी इंतजार करते रह गए.

कांग्रेस में उठती विद्रोह की आवाज: ज्वाली के पूर्व विधायक नीरज भारती, जिनके पिता चौधरी चंद्र कुमार वर्तमान में कैबिनेट मंत्री हैं, ने भी अपनी सरकार को नसीहत देने में कसर नहीं छोड़ी. बीच-बीच में ऑपरेशन लोटस की चर्चा छिड़ती रही. अब सरकार का एक साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है तो पार्टी की मुखिया ही नाराज हो गई. हालांकि प्रतिभा सिंह पहले भी संगठन के लोगों को एडजस्ट न करने को लेकर नाराजगी जता चुकी थी, लेकिन इस बार तो उन्होंने सीधे-सीधे ये कह दिया कि सरकार भी संगठन के ही प्रयासों से बनती है.

सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू चतुर राजनेता हैं. वे संगठन में रहे हैं और वीरभद्र सिंह जैसे कद्दावर नेता की पुरजोर खिलाफत के बावजूद संगठन में डटे रहे. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू की हाईकमान के प्रति निष्ठा का फल उन्हें मिला. सीएम बनने के बाद उन्होंने अपने संघर्ष के समय के साथियों को याद रखा. इसी कारण सरकार को मित्रों की सरकार भी कहा जाने लगा. इस बीच, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी परेशानियों से घिरे. दिल्ली एम्स में उनका लंबे समय तक इलाज चला. सेहत की परेशानियों ने उबरे तो अब संगठन और सरकार में तकरार की मुसीबत खड़ी हो गई है.

सरकारों में गुटबाजी: वहीं, तीन राज्यों में पराजय के बाद कांग्रेस में वैसे ही हताशा का माहौल है. ऐसे में संगठन के मुखिया की नाराजगी कहीं भारी न पड़ जाए. वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा का मानना है कि हर सरकार में गुटबाजी किसी न किसी रूप में रही है. वीरभद्र सिंह सरकार के समय कौल सिंह ठाकुर, विद्या स्टोक्स, आनंद शर्मा आदि नेताओं का एक अलग गुट माना जाता था. भाजपा सरकार में शांता कुमार व प्रेम कुमार धूमल का गुट चर्चित रहता था. ये कोई नई बात नहीं है, लेकिन सुखविंदर सरकार के लिए पार्टी मुखिया प्रतिभा सिंह की नाराजगी अच्छे संकेत नहीं हैं. वीरभद्र सिंह अपने आभामंडल से विरोध को निष्प्रभावी कर दिया करते थे.

धनंजय शर्मा का कहना है कि सुखविंदर सिंह सुक्खू ने संगठन में लंबा समय बिताया है, लेकिन सत्ता उनके लिए नई है. वे पहले कभी कैबिनेट मंत्री भी नहीं रहे. सीएम सुक्खू अपने हिसाब से कामकाज करने में विश्वास रखते हैं. एक साल के कार्यकाल में ही विरोध के ऐसे स्वर यदि उभरते हैं तो ये अच्छे संकेत नहीं हैं. अभी कैबिनेट विस्तार में जिस वर्ग को प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा, वो भी अपना गुबार बयानों के जरिए निकालेगा. फिलहाल, कांग्रेस के लिए सुख की सरकार और व्यवस्था परिवर्तन का नारा कितना सुखद रहता है, ये निकट भविष्य में सामने आएगा.

ये भी पढे़ं: क्या सुखविंदर सरकार और संगठन में बढ़ रही है तकरार?, प्रतिभा सिंह बोली-एक साल के कार्यक्रम की जानकारी नहीं, न मुझे कॉन्फिडेंस में लिया गया

Last Updated : Dec 6, 2023, 12:22 PM IST
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