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जूता घोटाले में फिर फंसेंगे हिमाचल के बड़े पुलिस अफसरों के पांव, कोर्ट में विजिलेंस की कैंसेलेशन रिपोर्ट नामंजूर

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Published : Nov 11, 2019, 9:22 PM IST

जूता घोटाले में स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन ब्यूरो की कैंसेलेशन रिपोर्ट शिमला की स्थानीय अदालत ने नामंजूर कर दी है. इस घोटाले में हिमाचल के पूर्व डीजीपी डीएस मन्हास, पूर्व डीआईजी एचपीएस वर्मा के साथ ही वर्तमान में जेल महानिदेशक सोमेश गोयल का भी नाम है.

cancellation report of Vigilance and acb on shoe scam rejected by Shimla court

शिमला: हिमाचल में पुलिस विभाग के बहुचर्चित जूता घोटाले की आहट फिर से सुनाई दे रही है. पुलिस के आला अधिकारियों के पांव एक बार फिर से इस घोटाले में फंसने वाले हैं. कारण ये है कि जूता घोटाले में स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन ब्यूरो की कैंसेलेशन रिपोर्ट शिमला की स्थानीय अदालत ने नामंजूर कर दी है.

उल्लेखनीय है कि हिमाचल में पुलिस विभाग में कर्मियों के लिए करीब एक करोड़ रुपए के जूते खरीदे गए थे. इन जूतों की क्वालिटी घटिया पाई गई थी. मामला नौ साल पुराना है. बताया जा रहा है कि अब शिमला की स्थानीय अदालत ने इस मामले में स्टेट विजिलेंस से सारा रिकॉर्ड मांगा है.

यहां बता दें कि इस घोटाले में हिमाचल के पूर्व डीजीपी डीएस मन्हास, पूर्व डीआईजी एचपीएस वर्मा के साथ ही वर्तमान में जेल महानिदेशक सोमेश गोयल का भी नाम है. मामले की जांच हुई और विजिलेंस ने उक्त तीनों आला अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र तैयार किए थे. करीब छह साल पहले यानी 26 दिसंबर 2013 को उक्त तीनों अफसरों के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर सरकार के समक्ष भेजा गया था.

मामला विभागीय एक्शन के लिए प्रशासनिक सचिव के पास गया. बाद में मार्च 2017 को वर्तमान डीजी जेल सोमेश गोयल के खिलाफ चार्जशीट ड्रॉप कर दी गई थी. तत्कालीन डीजीपी डीएस मन्हास के खिलाफ विभागीय जांच की अनुमति केंद्रीय गृह मंत्रालय से मिलनी थी.

ये अनुमति 18 फरवरी 2015 को मांगी गई, परंतु केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार के मंजूरी संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया. वहीं, पूर्व डीआईजी एचपीएस वर्मा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई आरंभ करने के लिए गृह मंत्रालय को 23 अप्रैल 2014 को मामला भेजा गया. गृह मंत्रालय ने इसकी भी मंजूरी नहीं दी.

धूमल सरकार के समय से चर्चा में मामला
जूता घोटाला वर्ष 2010 का है. इस मामले में आला अधिकारियों का नाम सामने आया था. जांच विजिलेंस को दी गई. विजिलेंस ने जून 2013 में एफआईआर दर्ज की थी. जांच पर कई सवाल भी उठे थे. कारण ये था कि मामले में आला अफसर संलिप्त थे और जांच का जिम्मा डीएसपी रैंक के अफसर को दिया गया.

फिलहाल, स्थानीय अदालत की तरफ से विजिलेंस की रिपोर्ट को नामंजूर किए जाने और मामले का सारा रिकार्ड फिर से तलब करने के बाद पुलिस के बड़े अफसरों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. डीएस मन्हास व एचपीएस वर्मा रिटायर हो चुके हैं. वहीं, सोमेश गोयल इस समय डीजी जेल के पद पर हैं.

शिमला: हिमाचल में पुलिस विभाग के बहुचर्चित जूता घोटाले की आहट फिर से सुनाई दे रही है. पुलिस के आला अधिकारियों के पांव एक बार फिर से इस घोटाले में फंसने वाले हैं. कारण ये है कि जूता घोटाले में स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन ब्यूरो की कैंसेलेशन रिपोर्ट शिमला की स्थानीय अदालत ने नामंजूर कर दी है.

उल्लेखनीय है कि हिमाचल में पुलिस विभाग में कर्मियों के लिए करीब एक करोड़ रुपए के जूते खरीदे गए थे. इन जूतों की क्वालिटी घटिया पाई गई थी. मामला नौ साल पुराना है. बताया जा रहा है कि अब शिमला की स्थानीय अदालत ने इस मामले में स्टेट विजिलेंस से सारा रिकॉर्ड मांगा है.

यहां बता दें कि इस घोटाले में हिमाचल के पूर्व डीजीपी डीएस मन्हास, पूर्व डीआईजी एचपीएस वर्मा के साथ ही वर्तमान में जेल महानिदेशक सोमेश गोयल का भी नाम है. मामले की जांच हुई और विजिलेंस ने उक्त तीनों आला अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र तैयार किए थे. करीब छह साल पहले यानी 26 दिसंबर 2013 को उक्त तीनों अफसरों के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर सरकार के समक्ष भेजा गया था.

मामला विभागीय एक्शन के लिए प्रशासनिक सचिव के पास गया. बाद में मार्च 2017 को वर्तमान डीजी जेल सोमेश गोयल के खिलाफ चार्जशीट ड्रॉप कर दी गई थी. तत्कालीन डीजीपी डीएस मन्हास के खिलाफ विभागीय जांच की अनुमति केंद्रीय गृह मंत्रालय से मिलनी थी.

ये अनुमति 18 फरवरी 2015 को मांगी गई, परंतु केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार के मंजूरी संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया. वहीं, पूर्व डीआईजी एचपीएस वर्मा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई आरंभ करने के लिए गृह मंत्रालय को 23 अप्रैल 2014 को मामला भेजा गया. गृह मंत्रालय ने इसकी भी मंजूरी नहीं दी.

धूमल सरकार के समय से चर्चा में मामला
जूता घोटाला वर्ष 2010 का है. इस मामले में आला अधिकारियों का नाम सामने आया था. जांच विजिलेंस को दी गई. विजिलेंस ने जून 2013 में एफआईआर दर्ज की थी. जांच पर कई सवाल भी उठे थे. कारण ये था कि मामले में आला अफसर संलिप्त थे और जांच का जिम्मा डीएसपी रैंक के अफसर को दिया गया.

फिलहाल, स्थानीय अदालत की तरफ से विजिलेंस की रिपोर्ट को नामंजूर किए जाने और मामले का सारा रिकार्ड फिर से तलब करने के बाद पुलिस के बड़े अफसरों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. डीएस मन्हास व एचपीएस वर्मा रिटायर हो चुके हैं. वहीं, सोमेश गोयल इस समय डीजी जेल के पद पर हैं.

जूता घोटाले में फिर फंसेंगे हिमाचल के बड़े पुलिस अफसरों के पांव, कोर्ट में विजिलेंस की कैंसेलेशन रिपोर्ट नामंजूर
शिमला। हिमाचल में पुलिस विभाग के बहुचर्चित जूता घोटाले की आहट फिर से सुनाई दे रही है। पुलिस के आला अधिकारियों के पांव एक बार फिर से इस घोटाले में फंसने वाले हैं। कारण ये है कि जूता घोटाले में स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन ब्यूरो की कैंसेलेशन रिपोर्ट शिमला की स्थानीय अदालत ने नामंजूर कर दी है। उल्लेखनीय है कि हिमाचल में पुलिस विभाग में कर्मियों के लिए करीब एक करोड़ रुपए के जूते खरीदे गए थे। इन जूतों की क्वालिटी घटिया पाई गई थी। मामला नौ साल पुराना है। बताया जा रहा है कि अब शिमला की स्थानीय अदालत ने इस मामले में स्टेट विजिलेंस से सारा रिकार्ड मांगा है। यहां बता दें कि इस घोटाले में हिमाचल के पूर्व डीजीपी डीएस मन्हास, पूर्व डीआईजी एचपीएस वर्मा के साथ ही वर्तमान में जेल महानिदेशक सोमेश गोयल का भी नाम है। मामले की जांच हुई और विजिलेंस ने उक्त तीनों आला अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र तैयार किए थे। करीब छह साल पहले यानी 26 दिसंबर 2013 को उक्त तीनों अफसरों के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर सरकार के समक्ष भेजा गया था। फिर मामला विभागीय एक्शन के लिए प्रशासनिक सचिव के पास गया। बाद में मार्च 2017 को वर्तमान डीजी जेल सोमेश गोयल के खिलाफ चार्जशीट ड्रॉप कर दी गई थी। तत्कालीन डीजीपी डीएस मन्हास के खिलाफ विभागीय जांच की अनुमति केंद्रीय गृह मंत्रालय से मिलनी थी। ये अनुमति 18 फरवरी 2015 को मांगी गई, परंतु केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार के मंजूरी संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। वहीं, पूर्व डीआईजी एचपीएस वर्मा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई आरंभ करने के लिए गृह मंत्रालय को 23 अप्रैल 2014 को मामला भेजा गया। गृह मंत्रालय ने इसकी भी मंजूरी नहीं दी।
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धूमल सरकार के समय से चर्चा में मामला
जूता घोटाला वर्ष 2010 का है। इस मामले में आला अधिकारियों का नाम सामने आया था। जांच विजिलेंस को दी गई। विजिलेंस ने जून 2013 में एफआईआर दर्ज की थी। जांच पर कई सवाल भी उठे थे। कारण ये था कि मामले में आला अफसर संलिप्त थे और जांच का जिम्मा डीएसपी रैंक के अफसर को दिया गया। फिलहाल, स्थानीय अदालत की तरफ से विजिलेंस की रिपोर्ट को नामंजूर किए जाने और मामले का सारा रिकार्ड फिर से तलब करने के बाद पुलिस के बड़े अफसरों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। डीएस मन्हास व एचपीएस वर्मा रिटायर हो चुके हैं। वहीं, सोमेश गोयल इस समय डीजी जेल के पद पर हैं। 
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