शिमला: इंटरनेट ने आज के आधुनिक युग में हमारे जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाया है. इंटरनेट आज मावन जीवन की मूलभूत सुविधाओं में शामिल है. लेकिन जैसे-जैसे इंटरनेट का दायरा हमारे जीवन में बढ़ रहा है वैसे-वैसे साइबर अपराध भी पैर पसार रहे हैं. इंटरनेट के जरिए होने वाले अपराध पुलिस सिस्टम के लिए नई चुनौती साबित हो रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश में साइबर क्राइम के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. साल दर साल सूबे में साइबर क्राइम का जाल फैलता जा रहा है. साइबर ठग भी इंटरनेट के इस जमाने में लोगों को ठगने के नए-नए रास्ते खोज रहे हैं.
साइबर ठगी के ऐसे कई मामले हैं जिनके सामने फिल्मी कहानी भी फीकी लगने लगेगी. ठग हर रोज ठगी के नए-नए हथकंडे अपनाते हैं. फेक आइडेंटिटी, सीम क्लोनिंग, ओटीपी, वाई-फाई डेबिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग, डिजिटल पेमेंट और ई-कॉमर्स के जरिए ठग लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं.
साइबर अपराधी इस तरह से भी करते हैं ठगी
फेक आइडेंटिटी का एक ऐसा ही मामला शिमला में सामने आया था, जहां एक वकील को साइबर अपराधियों ने अपने चंगुल में फंसा कर उनसे लाखों की ठगी कर ली. दरअसल, ठगों ने पीड़ित को सेना का एक अधिकारी बन फोन किया और उनसे अपने करीबी का केस हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में लड़ने को कहा.
ठग ने इसके लिए फेक आइडेंटिटी, फेक कैंटीन कार्ड और आर्मी की यूनिफॉर्म में एक फोटो भी पीड़ित को भेजा. इसके बाद उसने केस लड़ने की एवज में फीस देने के लिए पीड़ित वकील से अकाउंट नंबर मांगा और थोड़े पैसे उसमें जमा करवाए और पूरे पैसे भेजने में तकनीकी खराबी बताई.
इसके बाद ठग ने पीड़ित वकील के मेबाइल पर आया ओटीपी पूछा और उनके दो खातों से 1 लाख 40 हजार रुपये निकाल लिए. इसके बाद पीड़ित ने अपने साथ हुई ठगी की शिकायत साइबर क्राइम सेल की मेल आईडी पर भेजी, जिसके बाद इस केस की जांच शुरू हुई.
ठगों ने ई-वॉलेट को बनाया हथियार
साइबर पुलिस ने जब इस मामले की जांच शुरू की तो उन्हें दोनों बैंक शाखाओं से ये पता चला कि इन दोनों अकाउंट से राशि किसी मॉविक्विड ई-वॉलेट मैं ट्रांसफर हुई है और यह सारी ट्रांजैक्शन ऑनलाइन मोबाइल नंबर की सहायता से ओटीपी से हुई है.
पुलिस ने ई-वॉलेट के मुख्यालय में संपर्क किया और उस अकाउंट को फ्रीज करवा कर कानूनी औपचारिकताओं के बाद पीड़ित की राशि उसे वापिस दिला दी. लेकिन ई-वॉलेट के जरिए की गई इस ठगी में पुलिस आरोपी तक नहीं पहुंच पाई. आरोपी अभी भी पुलिस की पहुंच से दूर है.
ई-वॉलेट पेमेंट का एक ऐसा गेटवे है जहां मोबाइल नंबर के माध्यम से एकाउंट खोला जा सकता है. साइबर ठग इस बात का लाभ उठाकर फर्जी प्रमाणपत्र के माध्यम से एकाउंट खोलते हैं. फेक आइडेंटिटी पर बनाए गए अकाउंट के कारण पुलिस भी आरोपी तक नहीं पहुंच पाती है.
क्या ना करें ?
साइबर ठगी से बचने के लिए सावधानी बहुत जरूरी है. बिना जांच परख या किसी के झांसे में आकर अपने बैंक खाते से जुड़ी जानकारी किसी को भी ना दें. इसके अलावा ओटीपी, सीवीवी नंबर, एटीएम पिन भी किसी के साथ शेयर ना करें. ठगी होने पर तुरंत पुलिस या फिर साइबर सेल को शिकायत करें.
साइबर ठगी हो तो क्या करें?
साइबर ठगों का शिकार बनने पर सबसे पहले पुलिस को जानकारी दें. खासकर ऐसे मामलों में साइबर सेल को जानकारी देना उचित होगा. हिमाचल में इसके लिए साल 2016 में शिमला में साइबर सेल बना है जहां इस तरह के मामलों की जांच होती है. इसके अलावा ई-मेल और टोल फ्री नंबर पर भी साइबर क्राइम की शिकायत दी जा सकती है.