शिमला: हिमाचल प्रदेश सेब उत्पादक राज्य के नाम से देश-विदेशों में जाना जाता है. हिमाचल में सेब की आर्थिकी करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपये की है. आम तौर पर हिमाचल तीन से चार करोड़ सेब का उत्पादन हर साल करता है, लेकिन अबकी बार सेब पैदावार काफी कम है. मौसम की मार से सेब का उत्पादन में भारी गिरावट आने के आसार है. बागवानी विभाग ने फील्ड से जो जानकारी जुटाई है, उसके मुताबिक करीब 1.90 करोड़ पेटी तक सेब का उत्पादन रहने की संभावना है, लेकिन सेब का साइज कम रहने से उत्पादन पौने दो करोड़ पेटियों तक सीमट सकता है.
इस साल हिमाचल में सेब उत्पादन कम: पिछले 12 सालों में दूसरी बार हिमाचल में सेब इतना कम उत्पादन होगा. इससे पहले 2011 में हिमाचल में सेब का सबसे कम उत्पादन 1.38 करोड़ पेटियां हुई थी, 2018 में 1.65 करोड़ पेटियों तक सेब का उत्पादन सिमट गया था. मौसम की मार से अबकी बार प्रदेश के सेब आर्थिकी को नुकसान पहुंचा है. प्रदेश में सेब की पैदावार अबकी बार पिछले पांच सालों का रिकॉर्ड तोड़ेगी. पिछले साल प्रदेश में 3.36 करोड़ पेटियां सेब की हुई थी, लेकिन अबकी बार मुश्किल से पौने दो करोड़ तक सेब की पेटियां होने के आसार बन गए हैं. इससे प्रदेश के सेब बागवानों को अबकी बार करोड़ों रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है.
ये है सेब की कम फसल होने की वजह: प्रदेश में सेब की कम फसल की वजह प्रतिकूल मौसम रहा है. इसकी सीधी मार सेब उत्पादन पर पड़ी है. सर्दियों में अधिकतर इलाको में बर्फबारी नहीं हुई है. प्रदेश में अबकी बार अधिकतर, खासकर निचले व मध्यम इलाकों बर्फबारी नहीं हुई. इससे सूखे के हालात पैदा हो गए. इसका एक असर यह रहा है कि सेब के बागीचों के लिए जरूरी चिलिंग ऑवर पूरे नहीं हो पाए, विशेषकर निचले इलाकों में यह दिक्कत आई है. कुछ मध्यम इलाकों में भी इस समस्या का सामना बागवानों को करना पड़ा है.
फ्लावरिंग के समय बारिश से नहीं हुई सेटिंग: एक ओर जहां मार्च के मध्य तक प्रदेश में सूखे के हालात बने रहे तो, इसके बाद मौसम खराब होने लगा और बारिश का दौरा शुरू हुआ. हालात यह रही अप्रैल और मई तक बारिश प्रदेश में होती रही. इस तरह अप्रैल में सेब की फ्लावरिंग प्रभावित हुई. फ्लावरिंग के समय ऊंचाई वाले इलाकों में 7 से 8 डिग्री तक तापमान गिर गया. जबकि फ्लावरिंग के समय 15 डिग्री से ज्यादा जरूरी रहता है. इससे सेब की पॉलिनेशन प्रभावित हुई और इसका असर सेब की सेटिंग यानी फल तैयार होने पर पड़ा.
ओलावृष्टि ने कई इलाकों में फसल की तबाह: फलों की सेटिंग प्रभावित होने के बाद ओलावृष्टि ने सेब को प्रभावित किया. कई इलाकों में भारी ओलावृष्टि हुई. यही नहीं कई इलाकों में अलग अलग दौर में ओलावृष्टि हुई, जिससे थोड़ी बहुत सेब की फसल तबाह भी तबाह हो गई. कमोबेश कई इलाकों में ओलावृष्टि का असर पड़ा. इसका सीधा असर सेब की पैदावार पर पड़ा.
अब लगातार बारिश ने सेब से उत्पादन प्रभावित: प्रदेश में अबकी बार मानसून की बारिश लगातार हो रही है. इससे सेब के लिए तापमान और धूप नहीं मिल पा रही. सेब में रंग और इसके आकार के लिए धूप जरूरी रहती है. सेब के साइज के लिए 25 से 30 डिग्री तक के तापमान की जरूरत रहती है. जो कि अबकी बार नहीं मिल पाया. इससे सेब का अच्छा साइज नहीं बन पाया. इसका सीधा असर सेब की पैदावार पर पड़ रहा है. यह भी एक बड़ा कारण सेब के पेटियों के कम होने का अबकी बार बन सकता है.
प्री मैच्योर लीफ फॉल से सेब की फसल प्रभावित: प्रदेश में अबकी बार प्री मैच्योर लीफ फॉल (यानी समय से पहले पतझड़) सेब के बगीचों में हुआ है. कई इलाकों में इसका सीधा असर सेब की गुणवत्ता पर पड़ा है. इससे सेब का रंग और आकार दोनों प्रभावित हो रहा है. यही नहीं बारिश से बीमारियां भी सेब में पनपने लगी हैं, जिसको कंट्रोल करने के लिए बागवानों को दवाइयों पर पूरी तरह निर्भर रहना पड़ रहा है.
मौसम प्रतिकूल रहा तो और गिर सकती है पैदावार: लगातार मौसम के प्रतिकूल से सेब का अनुमानित उत्पादन गिर भी सकता है. अगर मौसम प्रतिकूल बना रहा तो सेब की पैदावार पिछले साल की तुलना में आधी रहने के आसार है. माना जा रहा है कि अगर अभी भी मौसम का यही रूख रहा, तो ऊंचाई वाले इलाकों में भी सेब में रंग नहीं आ पाएगा और इसका आकार भी नहीं बन पाएगा. इससे सेब उत्पादन गिरेगा और यह पिछले साल की तुलना मे आधा रह सकता है. एक ओर जहां उत्पादन कम है, तो वहीं आपदा ने बागवानों की मुश्किलें बढ़ाई हैं. सेब इलाकों में सड़कें खराब होने से सेब को समय पर मंडियों में पहुंचाना मुश्किल हो रहा है.
शिमला जिले में 80 फीसदी सेब का उत्पादन: प्रदेश में सेब उत्पादन देखा जाए तो शिमला जिला सबसे बड़ा सेब उत्पादक जिला है, जो प्रदेश के कुल सेब उत्पादन का करीब 80 फीसदी सेब तैयार करता है. शिमला जिला के कोटगढ़ से सेब की शुरुआत हिमाचल में हुई थी. यह इलाका सेब बहुल है. वहीं शिमला जिला के जुब्बल और कोटखाई भी सेब बहुल इलाके हैं. इसके अलावा कुल्लू, किन्नौर, मंडी के कई इलाके भी बड़े स्तर पर उत्पादन करते हैं. सिरमौर और चंबा में भी कुछ मात्रा में सेब पैदा किया जाता है. हिमाचल के अलावा दूसरा सबसे बड़ा सेब उत्पादक राज्य जम्मू-कश्मीर है. उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में भी सेब उत्पादन होता है, लेकिन हिमाचल और जम्मू-कश्मीर सेब उत्पादन में अलग पहचान रखते हैं.
इस साल सेब उत्पादन में भारी कमी: कोटगढ सेब बहुल इलाके के बागवान और कोटगढ़ सहकारी सभाओं के संयोजक सतीश भलैक कहते हैं कि इस बार सेब की पैदावार काफी कम है. क्षेत्रवार देखें तो निचले इलाकों सेब की फसल बहुत ही कम है, जबकि मध्यम के कई इलाकों में कुछ जगह सेब की अच्छी फसल है. ऊंचाई वाले इलाकों में भी की फसल कम है. इसकी वजह यह रही है कि अबकी बार फ्लावरिंग के समय बारिश हुई, इसके बाद ओलावृष्टि ने सेब की फसल कई इलाकों में तबाह की. वहीं लगातार बारिश के बाद सेब का रंग और आकार प्रभावित हुआ है.
समय से पहले पतझड़ से सेब क्वालिटी पर असर: सतीश भलैक ने कहा कई इलाकों में समय से पहले बगीचों में पतझड़ हुआ है, इसका असर सीधा सेब की गुणवत्ता पर पड़ा है. उनका कहना है ऐसी हालात में अबकी बार सेब की पैदावार डेढ़ करोड़ तक सिमट तक सकता है. इसमें भी अच्छी क्वालिटी का सेब एक करोड़ पेटियों तक रहने की संभावना है. कम पैदावार से सेब खरीदने वाली कंपनियों को भी अपने सीए स्टोर को भरना मुश्किल हो जाएगा. वहीं, बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी का कहना है कि प्रदेश में दो करोड़ तक पेटियां तक सेब का उत्पादन हो सकता है. उनका कहना है कि इस बार सरकार ने बागवानों के लिए किलो के हिसाब सेब मंडियों में सेब बेचने की व्यवस्था की है, जिससे बागवानों को सेब के अच्छे रेट मिल रहे हैं.
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