शिमला: प्रदेश सरकार ने पिछले कुछ दिनों से समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर स्वास्थ्य विभाग में दवा खरीद में अनियमितताओं को लेकर छपे समाचारों का खंडन किया है. उनका कहना है कि ये आरोप पूरी तरह निराधार हैं.
प्रदेश सरकार ने एक प्रवक्ता ने शनिवार को कहा कि यह कहना पूरी तरह से गलत है कि किसी एक व्यक्ति को 35 करोड़ रुपये के सप्लाई ऑर्डर दिए गए हैं क्याोंकि सरकार ने इस काम के लिए 42 फर्मों को सूचीबद्ध किया है. ऐसे में किसी एक व्यक्ति विशेष को यह काम देने का सवाल ही नहीं उठता.
प्रवक्ता ने कहा कि जहां तक आयुर्वेदिक विभाग में अधिक दरों पर दवाइयों को खरीदने का सवाल है, आयुर्वेद विभाग के तत्कालीन निदेशक को राजकीय कोष में 39 लाख रुपये के नुकसान और कुप्रबन्धन के लिए चार्जशीट किया गया है. इसी तरह क्रय समिति के तीन सदस्यों को भी निलंबित किया गया है और लापरवाही व राजकोष में घाटे के लिए चार्जशीट किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि जिला मंडी के एक डॉक्टर ने 2 रुपये के बजाय 16 रुपये के अधिक मूल्य पर दवाइयां खरीदने संबंधी जो मामला उठाया है, वह निराधार है. विभाग के संज्ञान में ऐसा कोई मामला नहीं आया है.
प्रवक्ता ने कहा कि पालमपुर में दवाई की दुकान के आवंटन के संबध में मीडिया में उठाया गया मामला भी झूठा और आधारहीन है. यह दुकान साल 1997 से नागरिक आपूर्ति निगम को आवंटित की गई है. इसमें फार्मासिस्टों की नियुक्ति नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा ही की जाती है.
प्रवक्ता ने कहा कि राज्य सरकार ने स्वास्थ्य विभाग में सभी दवाइयों, शल्य चिकित्सा उपकरणों और अन्य उपभोग्य सामग्री की खरीद में पूर्ण पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से अगस्त 2019 से प्रदेश में पहली बार ई-टेंडर प्रणाली शुरू की है. इसके अंतर्गत दवा निर्माताओं और आयातकों से सीधे तौर पर निविदाएं आमंत्रित की गईं.
इनमें 118 फर्मों ने भाग लिया और 73 फर्म स्वीकृत की गईं. अब सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों और मेडिकल कॉलेजों के लिए सभी तरह की दवाइयों और उपकरणों की खरीद का काम ई-टेंडर के माध्यम से किया जा रहा है. साल 2018 से पहले यह काम राज्य नागरिक आपूर्ति निगम लिमिटेड की ओर से निर्धारित किए जाने वाले रेट कॉंट्रेक्ट के आधार पर होता था.
उन्होंने कहा कि ड्रग्स वैक्सीन वितरण प्रणाली पोर्टल के माध्यम से एल-1 बीडर्ज सफल बोलीदाता के कोड को जनरेट करके सभी आपूर्ति आदेश जारी किए जा रहे हैं. इस प्रणाली को मुख्य चिकित्सा अधिकारी/चिकित्सा अधीक्षक/खंड चिकित्सा अधिकारी के स्तर पर संचालित किया जा रहा है.
प्रवक्ता ने कहा कि रेट कांट्रेक्ट के आधार पर अधिकतर दवाएं लेने के प्रयास किए गए और जो दवाएं रेट कांट्रेक्ट राज्य दर उपलब्ध नहीं हैं, उन्हें सीपीएसयू, मेडिकल कॉलेजों और ईएसआई की अनुमोदित दरों, बीपीपीआई दरों (जन औषधी) और स्थानीय निविदाओं के आधार पर खरीदा जा रहा है. साथ ही कुछ शर्तों के आधार पर मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व चिकित्सा अधीक्षकों को भी खरीद की अनुमति दी गई है.
उन्होंने कहा कि साल 2019 में लगभग 44 करोड़ रुपये की दवाइयां खरीदने के आदेश दिए गए हैं. इसमें लगभग 8.33 करोड़ की राशि जिला मंडी से संबंधित है. सारी खरीद प्रक्रिया हिमाचल प्रदेश सरकार ने अनुमोदित दरों पर की है. ब्रांडेड दवाएं किसी भी सीएमओ, बीएमओ या चिकित्सा अधीक्षक द्वारा नहीं खरीदी जा सकती क्योंकि रेट कांट्रेक्ट पर उपलब्ध सभी दवाएं जेनरिक हैं. अगर किसी को ब्रांडेड ड्रग्ज रेट कांट्रेक्ट से हटकर या बाहर से खरीदने का दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी क्योंकि यह न केवल नियमों के विरुद्ध है बल्कि इससे राजकीय कोष को घाटा भी होता है.
प्रवक्ता ने कहा कि विभाग दवाओं और उपकरणों की खरीद में पूरी पारदर्शिता बरत रहा है लेकिन कुछ लोग जान-बूझकर भ्रांतियां फैलाने की कोशिश कर रहे हैं. उन लोगों को चाहिए कि लोगों को गुमराह करने के बजाय अनियमितता को लेकर कोई पुख्ता सबूत है तो सरकार के सामने लाएं. इसकी छानबीन होगी और अगर कोई दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी.