ETV Bharat / state

कांग्रेस के सामने अब बड़ा सवाल, वीरभद्र सिंह के बाद कौन होगा पार्टी का तारणहार

हिमाचल प्रदेश में छह दशक के राजनीतिक जीवन में वीरभद्र सिंह का दौर ऐसा रहा है कि वे खुद ही सवाल थे और खुद ही जवाब. अब उनके जाने के बाद कांग्रेस पार्टी के समक्ष छोटे-बड़े कई सवाल पैदा हो जाएंगे. उनमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि वीरभद्र सिंह के बाद कौन....

Himachal Congress News, हिमाचल कांग्रेस न्यूज
डिजाइन फोटो.
author img

By

Published : Jul 10, 2021, 8:42 PM IST

Updated : Jul 10, 2021, 10:15 PM IST

शिमला: वीरभद्र सिंह का पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया. छह दशक के राजनीतिक जीवन में वीरभद्र सिंह का दौर ऐसा रहा है कि वे खुद ही सवाल थे और खुद ही जवाब. अब उनके जाने के बाद कांग्रेस पार्टी के समक्ष छोटे-बड़े कई सवाल पैदा हो जाएंगे. उनमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि वीरभद्र सिंह के बाद कौन....जाहिर है, वीरभद्र सिंह के कद के आसपास पहुंचना मौजूदा समय में किसी के बस की बात नहीं है.

फिलहाल तो कांग्रेस को ये सोचना है कि वीरभद्र सिंह के बाद पार्टी का सर्वमान्य चेहरा कौन होगा? क्या एक चेहरा होगा या फिर कोई टीम? बेशक इस समय कांग्रेस पार्टी में शोक का समय है, लेकिन राजनीति की दुनिया निरंतर गतिशील है. ऐसे में कांग्रेस को भविष्य की चिंता भी करनी है. आने वाले समय में कांग्रेस के सामने चार उपचुनाव की चुनौती है. उस चुनौती से पहले कांग्रेस को ये तय करना है कि पार्टी किसकी अगुवाई में आगे बढ़ेगी?

स्थितियां ये हैं कि कुलदीप सिंह राठौर (Kuldeep Singh Rathore) कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. मुकेश अग्निहोत्री नेता प्रतिपक्ष हैं. पूर्व में अध्यक्ष रहे सुखविंद्र सिंह सुक्खू विधायक हैं. इसी तरह जीएस बाली, कौल सिंह ठाकुर, सुधीर शर्मा आदि वो नेता हैं, जो चुनाव में हार चुके हैं.

इन परिस्थितियों में ये देखना दिलचस्प होगा कि खुलेआम या फिर पर्दे के पीछे, सबसे ताकतवर चेहरा कौन होगा? क्या कांग्रेस हाईकमान की चलेगी या क्षेत्रीय आकांक्षाओं को महत्व दिया जाएगा? ये बात इसलिए उठती है कि वीरभद्र सिंह खुद में इतना बड़ा नाम था और प्रदेश की जनता में उनका प्रभाव था, लिहाजा वे हाईकमान की सारी बातों के सामने सिर नहीं झुकाते थे.

वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) जानते थे कि चुनाव कैसे जीते जाते हैं. यही नहीं, हाईकमान भी उनकी इस ताकत को पहचानता था. यही कारण है कि अकसर चुनाव लड़ने के समय उन्हें फ्री हैंड दिया जाता था. केंद्र की राजनीति से प्रदेश की राजनीति में 2012 में वापस आए वीरभद्र सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए फ्री हैंड मांगा और अकेले अपने दम पर कांग्रेस को सत्ता में लाए.

दुर्भाग्य से पिछले कुछ साल से उनकी सेहत ठीक नहीं चल रही थी. खासकर 2017 के चुनाव के बाद से. वे कई बार स्वास्थ्य कारणों से पीजीआई चंडीगढ़ सहित कई संस्थानों में भर्ती होते रहे. गिरती सेहत के बावजूद उनकी प्रदेश की हर राजनीतिक हलचल पर नजर रहती थी. उनके पास अनुभव का विशाल खजाना था.

वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) ने अपने समय में नई पीढ़ी के कुछ नेताओं के सिर पर अपना हाथ रखा. उनमें मुकेश अग्निहोत्री, सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा आदि प्रमुख थे. ये बात अलग है कि कौल सिंह ठाकुर व जीएस बाली सरीखे नेताओं को वीरभद्र सिंह से वो अटेंशन नहीं मिल पाई. उसका नुकसान भी बाली, कौल सिंह आदि को हुआ.

फिलहाल तो कांग्रेस के समक्ष बड़ा सवाल ये है कि वीरभद्र सिंह के बाद क्या कोई एक नेता सर्वमान्य होगा? इसके आसार कम ही लगते हैं. वरिष्ठ मीडियाकर्मी अर्चना फुल्ल के अनुसार शेर और बकरी को एक घाट पर पानी पिलाने वाला ही असली खिलाड़ी है. शेर और बकरी एक घाट पर पानी पिलाने के लिए जिस कौशल की जरूरत होती है, वो वीरभद्र सिंह के पास ही था.

आने वाले समय में कांग्रेस को एक सर्वमान्य नेता स्थापित करने में बड़ा संघर्ष करना पड़ेगा. विक्रमादित्य सिंह अभी युवा हैं और उनके पास राजनीति के दांव-पेच का वो अनुभव नहीं है. विक्रमादित्य सिंह को राजनीतिक तौर पर मैच्योर होने में समय लगेगा.

हालांकि उनके साथ वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) का नाम जुड़ा होने के कारण जनता का समर्थन मिलता रहेगा, लेकिन पार्टी में अपने पिता जैसी हैसियत पाने के लिए उन्हें वीरभद्र सिंह के गुण आत्मसात करने होंगे. ये कोई आसान टास्क नहीं है. अर्चना फुल्ल का कहना है कि अभी कांग्रेस क्या करेगी, ये उपचुनाव आने पर और अधिक स्पष्टता से क्लियर होगा. फिलहाल तो कांग्रेस को एक सर्वमान्य चेहरा चाहिए, एक ऐसी छतरी, जिसके नीचे सब एकजुट हो जाएं.

ये भी पढ़ें- PM मोदी को अनुराग ठाकुर पर भरोसा, मेहनत से हासिल किया मुकाम: धूमल

शिमला: वीरभद्र सिंह का पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया. छह दशक के राजनीतिक जीवन में वीरभद्र सिंह का दौर ऐसा रहा है कि वे खुद ही सवाल थे और खुद ही जवाब. अब उनके जाने के बाद कांग्रेस पार्टी के समक्ष छोटे-बड़े कई सवाल पैदा हो जाएंगे. उनमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि वीरभद्र सिंह के बाद कौन....जाहिर है, वीरभद्र सिंह के कद के आसपास पहुंचना मौजूदा समय में किसी के बस की बात नहीं है.

फिलहाल तो कांग्रेस को ये सोचना है कि वीरभद्र सिंह के बाद पार्टी का सर्वमान्य चेहरा कौन होगा? क्या एक चेहरा होगा या फिर कोई टीम? बेशक इस समय कांग्रेस पार्टी में शोक का समय है, लेकिन राजनीति की दुनिया निरंतर गतिशील है. ऐसे में कांग्रेस को भविष्य की चिंता भी करनी है. आने वाले समय में कांग्रेस के सामने चार उपचुनाव की चुनौती है. उस चुनौती से पहले कांग्रेस को ये तय करना है कि पार्टी किसकी अगुवाई में आगे बढ़ेगी?

स्थितियां ये हैं कि कुलदीप सिंह राठौर (Kuldeep Singh Rathore) कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. मुकेश अग्निहोत्री नेता प्रतिपक्ष हैं. पूर्व में अध्यक्ष रहे सुखविंद्र सिंह सुक्खू विधायक हैं. इसी तरह जीएस बाली, कौल सिंह ठाकुर, सुधीर शर्मा आदि वो नेता हैं, जो चुनाव में हार चुके हैं.

इन परिस्थितियों में ये देखना दिलचस्प होगा कि खुलेआम या फिर पर्दे के पीछे, सबसे ताकतवर चेहरा कौन होगा? क्या कांग्रेस हाईकमान की चलेगी या क्षेत्रीय आकांक्षाओं को महत्व दिया जाएगा? ये बात इसलिए उठती है कि वीरभद्र सिंह खुद में इतना बड़ा नाम था और प्रदेश की जनता में उनका प्रभाव था, लिहाजा वे हाईकमान की सारी बातों के सामने सिर नहीं झुकाते थे.

वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) जानते थे कि चुनाव कैसे जीते जाते हैं. यही नहीं, हाईकमान भी उनकी इस ताकत को पहचानता था. यही कारण है कि अकसर चुनाव लड़ने के समय उन्हें फ्री हैंड दिया जाता था. केंद्र की राजनीति से प्रदेश की राजनीति में 2012 में वापस आए वीरभद्र सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए फ्री हैंड मांगा और अकेले अपने दम पर कांग्रेस को सत्ता में लाए.

दुर्भाग्य से पिछले कुछ साल से उनकी सेहत ठीक नहीं चल रही थी. खासकर 2017 के चुनाव के बाद से. वे कई बार स्वास्थ्य कारणों से पीजीआई चंडीगढ़ सहित कई संस्थानों में भर्ती होते रहे. गिरती सेहत के बावजूद उनकी प्रदेश की हर राजनीतिक हलचल पर नजर रहती थी. उनके पास अनुभव का विशाल खजाना था.

वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) ने अपने समय में नई पीढ़ी के कुछ नेताओं के सिर पर अपना हाथ रखा. उनमें मुकेश अग्निहोत्री, सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा आदि प्रमुख थे. ये बात अलग है कि कौल सिंह ठाकुर व जीएस बाली सरीखे नेताओं को वीरभद्र सिंह से वो अटेंशन नहीं मिल पाई. उसका नुकसान भी बाली, कौल सिंह आदि को हुआ.

फिलहाल तो कांग्रेस के समक्ष बड़ा सवाल ये है कि वीरभद्र सिंह के बाद क्या कोई एक नेता सर्वमान्य होगा? इसके आसार कम ही लगते हैं. वरिष्ठ मीडियाकर्मी अर्चना फुल्ल के अनुसार शेर और बकरी को एक घाट पर पानी पिलाने वाला ही असली खिलाड़ी है. शेर और बकरी एक घाट पर पानी पिलाने के लिए जिस कौशल की जरूरत होती है, वो वीरभद्र सिंह के पास ही था.

आने वाले समय में कांग्रेस को एक सर्वमान्य नेता स्थापित करने में बड़ा संघर्ष करना पड़ेगा. विक्रमादित्य सिंह अभी युवा हैं और उनके पास राजनीति के दांव-पेच का वो अनुभव नहीं है. विक्रमादित्य सिंह को राजनीतिक तौर पर मैच्योर होने में समय लगेगा.

हालांकि उनके साथ वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) का नाम जुड़ा होने के कारण जनता का समर्थन मिलता रहेगा, लेकिन पार्टी में अपने पिता जैसी हैसियत पाने के लिए उन्हें वीरभद्र सिंह के गुण आत्मसात करने होंगे. ये कोई आसान टास्क नहीं है. अर्चना फुल्ल का कहना है कि अभी कांग्रेस क्या करेगी, ये उपचुनाव आने पर और अधिक स्पष्टता से क्लियर होगा. फिलहाल तो कांग्रेस को एक सर्वमान्य चेहरा चाहिए, एक ऐसी छतरी, जिसके नीचे सब एकजुट हो जाएं.

ये भी पढ़ें- PM मोदी को अनुराग ठाकुर पर भरोसा, मेहनत से हासिल किया मुकाम: धूमल

Last Updated : Jul 10, 2021, 10:15 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.