शिमला: हिमाचल में सेब सीजन की शुरुआत हो गई है. निचले इलाकों में सीजन पूरे चरम पर है. अगले कुछ दिनों में मध्यम इलाकों में भी सेब का तुड़ान शुरू हो जाएगा. हालांकि, प्रदेश में अबकी बार सेब उत्पादन बहुत कम है. वहीं, हिमाचल में आपदा से सड़कें क्षतिग्रस्त हैं. अगर ऐसी ही स्थिति रही तो इससे सेब सीजन प्रभावित होगा. क्योंकि बागवान अपना सेब बाहर भी नहीं ले पा रहे हैं. ऐसे में बागवानों के पास प्रदेश में ही कंपनियों के पास सेब बेचने का बेहतर विकल्प भी है. प्रदेश में कुछ कंपनियों ने सीए स्टोर खोले हैं, जो हर साल सेब खरीदती हैं. इनमें सबसे बड़ा खरीददार अडानी ग्रुप है.
अडानी एग्रो फ्रेश हर साल खरीदता हजारों मीट्रिक टन सेब: अडानी ग्रुप की अडानी एग्रो फ्रेश हर साल हजारों मीट्रिक टन सेब खरीदती है. बागवानों के लिए स्टोर में सेब बेचने का सबसे बेहतर विकल्प है. यही वजह है कि इस बार भी बागवान अडानी के स्टोर खोलने का इंतजार कर रहे हैं. अडानी एग्रो फ्रेश हिमाचल में सेब की खरीद अगले कुछ दिनों शुरू कर देगी. संभावना है कि कंपनी 15 अगस्त से सेब खरीदना शुरू कर दे. अडानी हर साल की इस साल भी 22-24 हजार मीट्रिक टन सेब की खरीद करता है. इस साल क्योंकि सेब कम है तो, अडानी अपना स्टोर को पूरी कैपेसिटी से भरना चाहेगा, ताकि बाद में सेब को अच्छे रेट पर बेचा जा सके.
हिमाचल प्रदेश में अडानी ग्रुप के तीन सीए स्टोर: प्रदेश में अडानी के तीन स्टोर हैं, इनमें रोहड़ू के मेंहदली के सीए स्टोर की क्षमता करीब 10 हजार मीट्रिक टन सेब स्टोर करने की है. इसके अलावा ठियोग के सैंज में 6 हजार मीट्रिक टन का स्टोर अलग है. ये दोनों स्टोर सेब बहुल इलाके में है जहां रोहड़ू, जुब्बल, कोटखाई, चौपाल, ठियोग आदि के बागवान अपना सेब आकर बेचते है. इसके अलावा तीसरा सीए स्टोर रामपुर के बीथल में है, जिसकी स्टोरेज क्षमता 6 हजार मीट्रिक टन की है. इस सीए स्टोर सेब बहुल इलाके कोटगढ़ और साथ में लगते कुल्लू जिला के आनी व निरमंड के अलावा किन्नौर के बागवानों का सेब पहुंचता है.
हर साल 24 हजार मीट्रिक टन सेब की खरीद: इसके अलावा इसी इलाके में कुमारसैन की ओडी में भी करीब 2 हजार मीट्रिक का एक प्राइवेट सीए स्टोर को भी अडानी एग्रो फ्रेश हायर करती है. इस तरह कुल मिलाकर 24 हजार मीट्रिक टन सेब की खरीद अडानी एग्रो फ्रेश कंपनी करती है. अडानी एग्रो फ्रेश कंपनी अपने सीए स्टोर में बागवानों से सेब खरीदती है. बागवान क्रेटों में भरकर सेब लाते हैं. सीए स्टोर में इन क्रेटों के सेब की मशीनों में ग्रेडिंग की जाती है और कलर को भी जांचा जाता है. सेब का मूल्य ग्रेडिंग और कलर के आधार पर ही तय होता है. कलर में तीन कैटेगरी बनाई जाती है, जिसमें 80 से 100 फीसदी कलर, 60 से 80 फीसदी कलर और 60 फीसदी से कम वाले कलर की कैटेगरी शामिल हैं. एक अन्य कैटेगरी कलर लेस सेब की भी रहती है.
अडानी एग्रो फ्रेश किलो के हिसाब से सेब खरीदती है: हिमाचल सरकार ने इस साल से मंडियों में सेब किलो के हिसाब से सेब बेचने का फैसला लिया है, लेकिन अडानी एग्रो फ्रेश सरकार के एपीएमसी एक्ट के मुताबिक सेब के रेट किलो के हिसाब से तय करती आई है. दरअसल प्रदेश में किलो के हिसाब से सेब खरीदने का श्रेय अडानी एग्रो फ्रेश को ही जाता है. अडानी की कंपनी साल बीते करीब 16 सालों से हिमाचल में सेब की खरीद कर रही है और यह सारी खरीद किलो के हिसाब से की जाती है. यही वजह है कि बागवान भी अडानी की कंपनी को सेब बेचने को प्राथमिकता देते हैं. यह इसलिए भी क्योंकि बागवानों को सेब को पेटियों में भरने की जरूरत नहीं होती. वे क्रेट में भरकर सेब स्टोरों में ले जाते हैं. हालांकि, बागवान अपने क्रेटों मे सेब ले जाते हैं, लेकिन अडानी कंपनी की ओर से भी सेब लाने के लिए क्रेट बागवानों को दिए जाते हैं. इसके चलते बागवानों में अडानी एग्रो फ्रेश को सेब बेचने के लिए होड़ लगी रहती है.
अडानी एग्रो फ्रेश मार्केट में तय करती है रेट: हिमाचल में अडानी एग्रो फ्रेश कंपनी सेब की सबसे बडी खरीददार है. हर साल यह कंपनी 22 से 24 हजार मीट्रिक टन का सेब खरीदती है. ऐसे में अडानी की कंपनी जिस रेट से सेब को खरीदती है, उसी रेट से सेब मंडियों में भी बागवानों के सेब रेट तय होते हैं. यही वजह है कि अडानी की कंपनी पर मार्केट में सेब के रेट गिराने के भी आरोप लगते रहे हैं. पिछले साल जब अडानी एग्रो फ्रेश ने सीए स्टोर खोलने पर सेब के अधितम रेट 76 रुपए प्रति किलो तय किए थे, तो मार्केट में ये तब प्रचलित रेट से कम थे. अडानी के इस रेट के हिसाब से बागवानों को 20 किलो की पेटी के 1520 रुपए मिल रहे थे. जबकि मार्केट में तब 2000 से 2500 रुपए प्रति किलो पेटी सेब बिक रही थी.
मार्केट में सेब के रेट गिराने के आरोप: यही वजह है कि अडानी पर मार्केट में सेब के रेट गिराने के गंभीर आरोप भी लगे थे और इसको लेकर किसानों और विपक्ष ने तत्कालीन जयराम सरकार को भी खूब घेरा था. दरअसल राज्य की बीजेपी सरकार ने पहले कहा था कि सेब सीजन में सेब के रेट तय करने के लिए बागवानी विश्वविद्यालय नौणी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर की अध्यक्षता में कमेटी बनेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अडानी एग्रो फ्रेश ने अपनी ओर से रेट तय कर दिए थे. बागवानों ने इसको लेकर धरना प्रदर्शन भी किए थे.
बागवानों को सेब के ऊंचे दाम मिलने की उम्मीद: दरअसल इस साल सेब की फसल कम है. ऐसे में अबकी बार अडानी एग्रो फ्रेश और अन्य कंपनियां बागवानों को सेब के अच्छे रेट दे सकती है. अडानी एग्रो फ्रेश सहित अन्य कंपनियां निचले इलाकों का सेब नहीं खरीदती. इनकी नजर मध्यम और ऊंचाई वाले इलाकों के सेब पर रहती, जिनकी शेल्फ लाइफ ज्यादा ualr है. हालांकि, अबकी बार सेब की फसल पिछले सालों की तुलना में बहुत कम है. ऐसी हालात में अडानी और अन्य कंपनियों को अपने स्टोर भरना भी मुश्किल हो जाएगा. कंपनियों को मंडियों से ज्यादा रेट बागवानों को देना पड़ेगा, जिससे की बागवान मंडियों की बजाए इन कंपनियों को अपना सेब बेचे. क्योंकि अब मंडियों में भी किलो के हिसाब से सेब बिक रहा है.
पिछले साल सेबों के साइड के हिसाब से रेट: बीते साल अडानी एग्रो ने सीएम स्टोर पर सेब के कलर और साइज के हिसाब से रेट दिए थे. इनमें 80 से 100 फीसदी कलर वाले सेब लारज मीडियम साइज (LMS) 76 प्रति किलो, एक्ट्रा लारज (EL) 52 रुपए प्रति किलो, एक्स्ट्रा स्मॉल (ES) 68 रुपए प्रति किलो, एक्स्ट्रा-एक्स्ट्रा स्मॉल (EES) 60 रुपए प्रति किलो और पीतू (PITTU) 52 रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदे थे. वहीं, 60 से 80 फिसदी कलर वाले सेब लारज मीडियम साइज (LMS) 61 प्रति किलो, एक्ट्रा लारज (EL) 37 रुपए प्रति किलो, एक्स्ट्रा स्मॉल (ES) 51 रुपए प्रति किलो, एक्स्ट्रा-एक्स्ट्रा स्मॉल (EES) 41 रुपए प्रति किलो और पीतू (PITTU) 31 रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदे थे. जबकि 60 फीसदी से कम कलर वाले सेब 20 प्रति किलो और कलर लेस सेब 15 रुपए किलो के हिसाब से खरीदे थे.
कंपनियां देगी मार्केट से ज्यादा से के रेट: सेब बहुल इलाके कोटगढ़ की सहकारी सभाओं के संयोजक सतीश भलैक का कहना है कि अबकी बार बागवानों को अच्छे रेट मिलने की उम्मीद है क्योंकि सेब की फसल पिछले सालों की तुलना में काफी कम है. उम्मीद है कि अडानी एग्रो फ्रेश सहित अन्य कंपनियां बागवानों को मंडियों की तुलना में ज्यादा रेट देंगी. उनका कहना है कि कंपनियों से 80 रुपए प्रति किलो से ज्यादा का रेट मिलने की उम्मीद बागवान लगा रहे हैं, अन्यथा बागवान मंडियों में ही फसल बेचेंगे. अगर हिमाचल में अच्छे दाम नहीं मिलते तो बाहर की मंडियों का रुख बागवान करेंगे. क्योंकि बाहर की मंडियों में सेब के बहुत अच्छे दाम मिल रहे हैं.
सेब उत्पादन कम होने से दाम बढ़ने की संभावना: हिमाचल संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान ने कहा कि कंपनियों को सेब के अच्छे रेट अबकी बार देने होंगे. ताकि पिछली बार की तरह लड़ाई उनको न लड़नी पड़े. हालांकि, ऐसा लग रहा है कि इस बार बागवानों को सड़कों पर उतरने की नौबत नहीं आएगी. क्योंकि इस साल सेब उत्पादन बहुत कम है. यह जरूर है कि इस बार सेब आपदा से प्रभावित हुआ है, ऐसे में कंपनियों को अपने नॉर्मस में कुछ छूट बागवानों को देनी चाहिए.
बागवान के हित में हिमाचल सरकार उठा रही कदम: वहीं, सुक्खू सरकार भी इस बार बागवानों के हितों के लिए कदम उठा रही है. प्रदेश में पहली दफा सेब किलो के हिसाब से बेचा जा रहा है. बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी पहले ही साफ कर चुके हैं कि सेब खरीदने वाली कंपनियां और आढ़ती नियमों का पालन करें, सरकार यह सुनिश्चित करेगी. सेब बागवानों के हितों को देखते हुए ही सरकार ने अबकी बार मंडियों में भी किलो के हिसाब से सेब बेचने का फैसला लिया है. वहीं, साइज के हिसाब देखें तो लारज (L), मीडियम (M) और स्माल (S) इनका एक ही रेट दिया जाता है. वहीं, एक्ट्रा लारज (EL), एक्स्ट्रा स्मॉल (ES), एक्स्ट्रा-एक्स्ट्रा स्मॉल (EES), पीतू (PITTU) के आकार के सेब के अलग रेट होते हैं.
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