शिमला: बेशक आम आदमी पार्टी पंजाब में बंपर मेजॉरिटी के साथ आई हो, लेकिन हिमाचल प्रदेश में वह बड़ा कुछ कर जाएगी इस तरह के आसार नहीं दिख रहे हैं. न तो पार्टी के पास कोई बड़ा लीडर है और न ही अभी तक कोई काडर है. इतना जरूर है कि जिन नेताओं के भाजपा और कांग्रेस से टिकट काटे जाएंगे वह आम आदमी पार्टी की तरफ एडजस्ट होने की कोशिश करेंगे, लेकिन इतने कम समय में वह किस प्रकार से काडर खड़ा करेंगे यह चुनौती भरा कार्य होगा.
पंजाब विधानसभा चुनाव में जीत (punjab assembly elections) के बाद आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने शिमला में जश्न मनाया. सोशल मीडिया पर भी पार्टी से जुड़े लोग एक दूसरे को बधाई देते रहे, लेकिन हिमाचल के चुनावी इतिहास (Himachal assembly election history) को देखें तो 1998 से पहले व इसके बाद किसी भी तीसरे विकल्प को मतदाता नकारता रहा है. यह बात अलग है कि इक्का-दुक्का मौकों पर माकपा व भाकपा के उम्मीदवार यहां चुनाव जीतते रहे हैं. मगर सत्ता का संतुलन सिर्फ एक बार 1998 में पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस के हाथों में आया था. हिमाचल विकास कांग्रेस 1998 में 5 विधान सभा सीटें जीत गई थी.
नगर निगम चुनाव (Shimla Municipal Corporation Election) से पहले शिमला शहर में पार्टी के सर्वे सर्वा अरविंद केजरीवाल की हॉर्डिंग्स लगी है. विधानसभा चुनाव (Himachal assembly elections) से पहले आम आदमी पार्टी शिमला नगर निगम में दांव खेलने की तैयारी में है. हिमाचल में पार्टी के सामने पहाड़ सी चुनौती है. पहाड़ पर चढ़ने के प्रयास से पहले आम आदमी पार्टी को हिमाचल में 7 हजार से अधिक मतदान केंद्रों से लेकर प्रदेश कोने-कोने तक संगठन खड़ा करना होगा. जिसका अभी पूरी तरह से अभाव है. 8 महीने में संगठन से हजारों कार्यकर्ताओं को जोड़ कर पहाड़ पर चढ़ने की चुनौती के साथ-साथ प्रदेश में संगठनात्मक तौर पर मजबूत भाजपा व कांग्रेस का मुकाबला आम आदमी पार्टी को करना है.
पंजाब में आम आदमी पार्टी एक दशक से लगातार मेहनत कर रही है. दिल्ली के बाद से ही पार्टी के प्रमुख व रणनीतिकारों ने पंजाब पर फोकस किया हुआ था. पंजाब में जातीय समीकरणों (caste equations in punjab) के साथ-साथ कांग्रेस की अंतर्कलह से पार्टी को और मजबूती मिली. किसान आंदोलन के दम पर तैयार विकेट पर आम आदमी पार्टी ने जमकर बैटिंग की और वह जीत गई.
सनद रहे कि दिल्ली में किसान आंदोलन (Farmers Movement in Delhi) के दौरान मुख्ययमंत्री अरविंद केजरीवाल खुलकर किसानों के समर्थन में आए थे. बात अगर उत्तराखंड की करें तो आम आदमी पार्टी ने यहां पर चुनाव में उम्मीदवार उतारे, मगर पार्टी के प्रदेश के कार्यवाहक अध्यक्ष अजय कोठियाल भी हार गए. उत्तराखंड व हिमाचल की सियासत लगभग एक जैसी है. ध्यान देेने की बात यह है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने लगातार दूसरी बार सरकार बना कर उत्तराखंड में इतिहास रचा है.
उत्तराखंड व पंजाब में कांग्रेस की हार की मुख्य वजह अंतर्कलह बताया जा रहा है. कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन किया, लेकिन फायदा नहीं हुआ. उत्तराखंड में भी पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री हरीष रावत के दबाव में आई और वह खुद चुनाव हार गए. हिमाचल में भी पार्टी की अंतर्कलह किसी से नहीं छीपी है. न सिर्फ मुख्यमंत्री के कई दावेदार हैं, बल्कि यहां पीसीसी चीफ की दौड़ में भी कई नेता शामिल हैं.
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