शिमला: अमूमन हीरे-जवाहरात, स्वर्ण, मूंगा-मोती आदि को अनमोल खजाना कहा जाता है, परंतु शिमला में एक ऐसा दुर्लभ खजाना मौजूद है जिसे देखकर हर कोई दांतों तले अंगुली दबा लेता है. ये खजाना पुस्तकों के रूप में है. शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान ( Indian Institute of advanced Studies) यानी आईआईएएस में ये खजाना करीने से सजा है. यहां करीब दो लाख किताबें हैं. बड़ी बात ये है कि सारी किताबों का खजाना एक क्लिक पर खुल जाता है. हर विषय पर दुर्लभ जानकारियों से युक्त किताबें यहां की लाइब्रेरी में है.
देश-दुनिया के विद्वान इस खजाने को देखकर मंत्रमुग्ध होते रहे हैं. यहां एक बार पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक अब्दुल बासित भी आए थे. बासित की आंखें अचरज से भर गई, जब उन्हें यहां मौजूद पुस्तकों की विलक्षणता बताई गई. हजार-दस हजार नहीं, बल्कि दो लाख किताबों का खजाना एक ही स्थान पर है. अब्दुल बासित को लाइब्रेरी के संदर्भ में जानकारी देते हुए संस्थान के अधिकारियों ने बताया कि यहां उर्दू और फारसी भाषा में दुर्लभ ग्रंथ भी हैं. अब्दुल बासित ने अलग-अलग विषयों की किताबों से सजी इस लाइब्रेरी की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और विजिटर्स बुक में इसे बेमिसाल धरोहर बताया.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी (Indian Institute of Higher Studies ) में माउस के एक क्लिक पर दो लाख किताबों का खजाना खुल जाता है. जब माउस के एक ही क्लिक से जब दो लाख किताबों की खजाना सामने खुले, तो ज्ञान की भूख मिटना स्वभाविक है. यहां सभी किताबों की जानकारी ऑनलाइन मौजूद है. किस विषय की किताब किस खाने में है, ये सारी जानकारी माउस के एक क्लिक भर की दूरी पर है.
लाइब्रेरी में कुछ बेहद दुर्लभ किस्म की किताबों का कलेक्शन है. इसमें तिब्बती भाषा के ग्रंथों सहित संस्कृत के कई प्राचीन ग्रंथ यहां मौजूद हैं. इसके अलावा गुरु ग्रंथ साहिब की दुर्लभ कलेक्शन भी यहां है. पूरे भारत देश में संत बसंत सिंह की हस्तलिखित कलेक्शन की सिर्फ तीन ही प्रतियां हैं. उनमें से एक प्रति यहां मौजूद है. यहां मानविकी, इतिहास, दर्शन, धर्म, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, इतिहास, साहित्य, धर्म, कला, संस्कृति व राजनीति शास्त्र की किताबों का शानदारी कलेक्शन है. इसके अलावा संस्थान का खुद का प्रकाशन भी है. संस्थान में फैलो व नेशनल फैलो को जिस भी विषय में कोई भी रेफरेंस बुक चाहिए हो, वो सहज ही उपलब्ध है.
संस्थान में बर्मा की पूर्व शासक आंग सान सू की भी फैलो रह चुकी हैं. सू की के पति भी यहां फैलो थे. देश के जाने-माने विद्वान यहां फैलो रहे हैं. उनमें स्वर्गीय भीष्म साहनी, कृष्णा सोबती, स्व. ओमप्रकाश वाल्मिकी, गिरिराज किशोर, दूधनाथ सिंह, राजेश जोशी जैसे नाम शामिल हैं. उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश हुकूमत के समय यह ईमारत वायसरीगल लॉज कहलाती थी. यहां अंग्रेज हुक्मरां वायसराय रहा करते थे. आजादी के बाद शिक्षाविद् राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) ने इसे राष्ट्रपति भवन से भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में बदला.
हालांकि भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान सोसायटी का पंजीकरण (Indian Institute of Advanced Study Society Registration) 6 अक्टूबर 1964 को हुआ, लेकिन इसका विधिवत शुभारंभ 20 अक्टूबर 1965 को किया गया. संस्थान की स्थापना का मकसद मानविकी व सामाजिक अध्ययन के लिए वातावरण तैयार करना और उसे प्रोत्साहित करना था. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के पहले अध्यक्ष भारत के तत्कालीन उप राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन थे. तत्कालीन शिक्षा मंत्री एमसी छागला उपाध्यक्ष बने. संस्थान के प्रथम निदेशक प्रोफेसर निहार रंजन रॉय थे. वर्ष 1884 में इस इमारत का निर्माण शुरू हुआ. यह चार साल में बनकर तैयार हुई. उस दौरान इस पर 20 लाख रुपए से अधिक का खर्चा आया था. बर्मा से टीक की लकड़ी मंगवाई गई थी.
चूंकि शिमला ब्रिटिशकाल में देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी, लिहाजा यहां बड़े-बड़े नेताओं का आना-जाना होता था. ब्रिटिश वायसराय शिमला में इसी इमारत में रहते थे, जिसे तब वायसरीगल लॉज कहा जाता था. आजादी के बाद यह राष्ट्रपति निवास बना और 1964 में इसे भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में तबदील किया गया. खैर, इसी संस्थान में भारत व पाक के विभाजन के पहले ड्राफ्ट की तैयारी हुई. यह मई 1947 की बात है. संस्थान में महात्मा गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद सरीखे नेता आते रहे.
यूपी के पूर्व सीएम व कुछ समय के लिए हिमाचल के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह, यूपी के राज्यपाल रहे राम नाइक को भी किताबों के विशाल खजाने ने प्रभावित किया था. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला की सैर को आए सैलानियों का प्रमुख आकर्षण है. संस्थान को निहारने के लिए हर साल लाखों सैलानी आते हैं. टिकट बिक्री से ही संस्थान को हर साल 80 लाख रुपए सालाना की आय होती रही है. कोरोना काल में इसमें कमी आई है. फिलहाल, संस्थान की लाइब्रेरी में हर साल नई किताबों का खजाना जुड़ता रहता है.
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