गोहर: कोरोना वायरस के चलते जारी कर्फ्यू से घर में बंद लोगों के लिए परिवार के साथ किचन गार्डन टाइम पास करने का जरिया बना हुआ है. नाचन और सराज में लोगों के घरों के बाहर किचन गार्डन आजकल चकाचक हो गए हैं. बुजुर्गों से लेकर बच्चे भी किचन गार्डन में सब्जियां और फूल लगाने में व्यस्त हो गए हैं.
गांव के लोग शाम के भोजन के लिए आजकल जैविक सब्जियों को प्राथमिकता देने लगे हैं. घर के समीप लोगों को जंगल मे लिंगड, गुच्छी, बुरांस और अन्य जैविक सब्जियां आसानी से मिल रही हैं. जो लोगों की रसोई में रात के भोजन के लिए तैयार रहती हैं. जंगलों में प्राकृतिक तौर पर उगने वाली सब्जियां ग्रामीण लोग आजकल पसन्द करने लगे है. इनकी महता भी समय की जरूरत के अनुसार बढ़ने लगी है.
क्षेत्र की महिलाएं मवेशियों को जंगल से चारा लाने के साथ साथ गुच्छियां, बुरांस और लिंगड लेकर आती हैं और शाम को परिवार को जैविक सब्जियां परोसती हैं. क्षेत्र के लोगों के घरों में आजकल दावतों का रंग ही बदल से गया है. 20 हजार रुपए प्रति किलो बिकने वाली गुच्छियों के दाम आजकल 2 से 4 हजार रुपए प्रति किलो रह गए हैं.
गुच्छियों की मार्किट न मिलने से यह ग्रामीणों के घरों में आजकल पक रही हैं. बुरांस के फूलों के भल्ले के लोग चटकारे लगा रहे हैं. लिंगड की हरी सब्जी ने बाजरु सब्जियों को मात दे दी है. क्षेत्र वासियों अक्षित शर्मा, इन्द्र सिंह, दीपक ठाकुर, मुरारी लाल, भीम सिंह, दिनेश कुमार, कश्मीर सिंह, लकी ठाकुर, जीत कुमार, नारायण सिंह और पवन कुमार ने बताया कि गुच्छी, बुरांस और लिंगड उनकी रसोई की दावत बने हुए हैं.
सेवानिवृत जिला आयुर्वेदिक अधिकारी डॉ राजेन्द्र ठाकुर ने बताया कि जैविक सब्जियां एक उत्तम आहार है. उन्होंने बताया कि जंगलों में अनेक प्रकार की सब्जियां है, लेकिन इनकी पहचान होना जरूरी है. कोरोना वायरस ने लोगों को पुराना रहन सहन और खानपान याद दिला दिया है. प्राकृतिक तौर पर उगने वाली साग सब्जी ग्रामीणों को जंगलों में जाकर ढूंढनी पड़ रही है.
ये भी पढ़ें- COVID-19: रेजिडेंट वेलफेयर सोसायटी ने 50 हजार रुपये का दिया अंशदान, DC को सौंपा चेक