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अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है हिमाचल की ये झील, 3 धर्मों की है संगम स्थली - himachal news

मंंडी की रिवालसर झील अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. झील के पानी में सिल्ट की मात्रा बढ़ने से जलस्तर सिकुड़ कर 10 से 15 फीट रह गया है. इसी वजह से ये धार्मिक स्थल अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. स्थानीय लोग झील की दयनीय हालत के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

रिवालसर झील मंडी
Rewalsar lake mandi
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Published : Feb 12, 2020, 11:56 PM IST

मंडी: हिमाचल का मंडी जिला अपनी खुबसूरती और मंदिरों के लिए पूरे देश भर में विख्यात है. यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है. इस खुबसूरती को चार चांद लगाती है यहां की झीलें. मंडी जिले में सात झीलें हैं जो पर्यटन और लोगों की आस्था की प्रतीक हैं. इनमें से एक है रिवालसर झील. ये प्राचीन झील तीन धर्मों की संगम स्थली है. हिंदू, बौद्व और सिक्ख धर्म के लोगों की इस झील में गहरी आस्था है.

हर साल हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. लेकिन बीते कई सालों से रिवालसर झील का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है. पानी में गाद की मात्रा बढ़ने से झील पूरी तरह से दूषित हो चुकी है. पानी में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण कुछ साल पहले झील में भारी मात्रा में मछलियों की मौत हुई थी, जिसके बाद जिला प्रशासन ने झील के संरक्षण के लिए योजना तो बनाई, लेकिन वो योजना कागजों तक ही सिमट कर रह गई. धरातल पर झील के संरक्षण के लिए अब तक कोई काम नहीं हो पाया है.

वीडियो रिपोर्ट

रिवालसर झील की मौजूदा स्थिति की बात की जाए तो इसमें सिल्ट की मात्रा बढ़ने से जलस्तर सिकुड़ कर 10 से 15 फीट रह गया है. इसी वजह से ये धार्मिक स्थल अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. स्थानीय लोग झील की दयनीय हालत के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं.

वहीं, जिला प्रशासन झील के संरक्षण के लिए हामी भर रहा है. उपायुक्त मंडी ऋग्वेद ठाकुर की मानें तो झील को बचाने के लिए संबंधित विभाग पूरी जदोजहद में लगा है. पानी से गाद को निकालने के डेढ़ करोड़ की राशि खर्च करने की बात कहकर डीसी ने कहा कि इसके लिए 50 लाख की राशि भी स्वीकृत हो चुकी है.

सवाल है कि आखिर बजट तय होने के बाद भी झील के रख रखाव में दिक्कत क्यों हो रही है. रिवालसर झील धार्मिक पर्यटन का एक बेहतरीन उदाहरण है, जहां प्रकृति की खूबसूरती और आस्था का मेल होता है, लेकिन सरकार की अनदेखी इस खूबसूरत झील के अस्तित्व पर भारी पड़ रही है. प्रशासन और सरकार दावे कितने भी करें लेकिन झील का ये हाल देखकर सरकारी नीयत पर सवाल उठने लाजमी हैं.

शहर में डेढ़ करोड़ की लागत से सिवरेज लाइन बिछाई जा रही है ताकि बाहर की गंदगी झील में न जा सके. वहीं, पानी में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने के लिए भी योजना बना ली गई है. बता दें कि जिला प्रशासन कई सालों से झील के संरक्षण के लिए प्रयास में लगा है, लेकिन झील की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है. ऐसे में देवभूमी के पर्यटन और धार्मिक स्थलों के संरक्षण के लिए जयराम सरकार की योजनाएं धूमिल होती दिख रही हैं.

मंडी: हिमाचल का मंडी जिला अपनी खुबसूरती और मंदिरों के लिए पूरे देश भर में विख्यात है. यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है. इस खुबसूरती को चार चांद लगाती है यहां की झीलें. मंडी जिले में सात झीलें हैं जो पर्यटन और लोगों की आस्था की प्रतीक हैं. इनमें से एक है रिवालसर झील. ये प्राचीन झील तीन धर्मों की संगम स्थली है. हिंदू, बौद्व और सिक्ख धर्म के लोगों की इस झील में गहरी आस्था है.

हर साल हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. लेकिन बीते कई सालों से रिवालसर झील का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है. पानी में गाद की मात्रा बढ़ने से झील पूरी तरह से दूषित हो चुकी है. पानी में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण कुछ साल पहले झील में भारी मात्रा में मछलियों की मौत हुई थी, जिसके बाद जिला प्रशासन ने झील के संरक्षण के लिए योजना तो बनाई, लेकिन वो योजना कागजों तक ही सिमट कर रह गई. धरातल पर झील के संरक्षण के लिए अब तक कोई काम नहीं हो पाया है.

वीडियो रिपोर्ट

रिवालसर झील की मौजूदा स्थिति की बात की जाए तो इसमें सिल्ट की मात्रा बढ़ने से जलस्तर सिकुड़ कर 10 से 15 फीट रह गया है. इसी वजह से ये धार्मिक स्थल अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. स्थानीय लोग झील की दयनीय हालत के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं.

वहीं, जिला प्रशासन झील के संरक्षण के लिए हामी भर रहा है. उपायुक्त मंडी ऋग्वेद ठाकुर की मानें तो झील को बचाने के लिए संबंधित विभाग पूरी जदोजहद में लगा है. पानी से गाद को निकालने के डेढ़ करोड़ की राशि खर्च करने की बात कहकर डीसी ने कहा कि इसके लिए 50 लाख की राशि भी स्वीकृत हो चुकी है.

सवाल है कि आखिर बजट तय होने के बाद भी झील के रख रखाव में दिक्कत क्यों हो रही है. रिवालसर झील धार्मिक पर्यटन का एक बेहतरीन उदाहरण है, जहां प्रकृति की खूबसूरती और आस्था का मेल होता है, लेकिन सरकार की अनदेखी इस खूबसूरत झील के अस्तित्व पर भारी पड़ रही है. प्रशासन और सरकार दावे कितने भी करें लेकिन झील का ये हाल देखकर सरकारी नीयत पर सवाल उठने लाजमी हैं.

शहर में डेढ़ करोड़ की लागत से सिवरेज लाइन बिछाई जा रही है ताकि बाहर की गंदगी झील में न जा सके. वहीं, पानी में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने के लिए भी योजना बना ली गई है. बता दें कि जिला प्रशासन कई सालों से झील के संरक्षण के लिए प्रयास में लगा है, लेकिन झील की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है. ऐसे में देवभूमी के पर्यटन और धार्मिक स्थलों के संरक्षण के लिए जयराम सरकार की योजनाएं धूमिल होती दिख रही हैं.

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