मंडी: अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के साथ कई प्रकार की रोचक कथाएं और कहानियां जुड़ी हुई हैं. इन्हीं में से एक है चौहाटा की जातर की कहानी. क्या है कि चौहाटा की जातर और क्यों शिवरात्रि महोत्सव के अंतिम दिन सभी देवी-देवता यहां विराजमान होते हैं. आईए बताते हैं आपको इस खास रिपोर्ट में.
सात दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के अंतिम दिन जिला भर से आए देवी-देवता मंडी शहर के चौहाटा बाजार में विराजमान होते हैं. यहां न सिर्फ जिला भर के बल्कि प्रदेश और देश के विभिन्न राज्यों से आए लोग देवी-देवताओं के दर्शन करके उनका आशीवार्द प्राप्त करते हैं.
इस पूरे देव समागम को चौहाटा की जातर के नाम से जाना जाता है, लेकिन बहुत कम लोग होंगे जो इस बात को जानते होंगे कि आखिर क्यों चौहाटा की जातर मनाई जाती है. तो आईए आज हम आपको इसके विस्तृत इतिहास के बारे में बताते हैं.
सर्व देवता समिति के प्रधान शिव पाल शर्मा के अनुसार सदियों पूर्व चौहाटा बाजार के साथ लगते बाबा भूतनाथ मंदिर की तत्कालीन राजा ने विधिवत रूप से स्थापना करवाई थी. उस दिन शिवरात्रि थी और मंदिर स्थापना के उपलक्ष पर छोटे से मेले का आयोजन किया गया था. तभी से यह परंपरा आज दिन तक निभाई जा रही है.
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सात दिवसीय महोत्सव के अंतिम दिन सभी देवी-देवता चौहाटा बाजार में विराजमान होते हैं और भक्तों को दर्शन व आशीवार्द देते हैं. इस देव समागम का अदभूत दृश्य देखते ही बनता है.
चौहाटा बाजार में रखे देवरथों के हजारों की संख्या में आए लोगों ने दर्शन करके आशीवार्द प्राप्त किया. दर्शन करने आए श्रद्धालुओं ने बताया कि उन्हें देवी-देवताओं का आशीवार्द लेकर विशेष प्रकार की अनुभूति का अहसास हुआ है और उन्होंने सभी के लिए मंगलकामना की है.
चौहाटा बाजार की जात्र के बाद सभी देवी-देवता अपने मूल स्थानों के लिए रवाना हो गए. अब यह सभी देवी-देवता एक वर्ष बाद अगले शिवरात्रि महोत्सव में शामिल होने मंडी आएंगे और मंडी शहर की फिजाएं एक बार फिर देवी-देवताओं के आशीवार्द से लबरेज होंगी.
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