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करसोग में धूमधाम से मनाया गया 'माल त्योहार', पशुधन की पूजा कर गले में बांधी फूल मालाएं - पशुधन की पूजा माल त्योहार

पशुधन की पूजा 'माल त्योहार' को करसोग के ग्रामीण क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है. रविवार को माल त्योहार पर महिलाओं ने पशुओं के गले में फूल मालाएं बांधी गई.

mal festival celebration in karsog
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Published : Oct 13, 2019, 7:51 PM IST

मंडी: प्राचीन काल से ही आर्थिकी समृद्धि का प्रतीक रहे पशुधन की पूजा माल त्योहार को करसोग के ग्रामीण क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है. रविवार को माल त्योहार पर महिलाओं ने पशुओं के गले में फूल मालाएं बांधी. इसके बाद सफेद और पीला रंग लगाकर पशुधन की पूजा-अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना की.

बता दें कि माल त्योहार के चलते शनिवार की रात को भी महिलाओं ने ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ माल के गीत नृत्य ,नाट्य ,संगीत और लोक गाथाओं का बखान किया. इस पर्व पर गांव की महिलाएं घर में एकत्रित होकर 'मालो मालो-मालो मालो, तू मालै केता देशा आए गै, तू मालै केता देशा आए' गीत गाकर प्राचीन प्रथा को निभाया.

वीडियो.

ग्रामीणों ने कहा कि ब्रह्मवेला में 'जोगठियों' (मशालों) की रोशनी के साथ पशुओं को खेतों और चरागाहों में चरने भेजा गया. घर-आंगन-गोशाला को 'पठावे' (देवदार के परागकणों) से बनी पारंपरिक रंगोलियों से सजाया गया.

mal festival celebration in karsog
करसोग में मनाया गया माल त्योहार

व्यापार मंडल पांगणा के प्रधान सुमीत गुप्ता ने कहा कि कि सूर्योदय के समय पशुओं के घर लौटने पर शुभ मुहूर्त में पशुओं को माल्यार्पण और वैदिक विधान से पूजा कर पिन्नियां खिलाई गई. साथ ही गांव की सुख-समृद्धि का आशीर्वाद लिया गया.

ये भी पढ़ें: इंटर-कॉलेज महिला कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन, बिलासपुर कॉलेज ने ट्रॉफी पर किया कब्जा

मंडी: प्राचीन काल से ही आर्थिकी समृद्धि का प्रतीक रहे पशुधन की पूजा माल त्योहार को करसोग के ग्रामीण क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है. रविवार को माल त्योहार पर महिलाओं ने पशुओं के गले में फूल मालाएं बांधी. इसके बाद सफेद और पीला रंग लगाकर पशुधन की पूजा-अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना की.

बता दें कि माल त्योहार के चलते शनिवार की रात को भी महिलाओं ने ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ माल के गीत नृत्य ,नाट्य ,संगीत और लोक गाथाओं का बखान किया. इस पर्व पर गांव की महिलाएं घर में एकत्रित होकर 'मालो मालो-मालो मालो, तू मालै केता देशा आए गै, तू मालै केता देशा आए' गीत गाकर प्राचीन प्रथा को निभाया.

वीडियो.

ग्रामीणों ने कहा कि ब्रह्मवेला में 'जोगठियों' (मशालों) की रोशनी के साथ पशुओं को खेतों और चरागाहों में चरने भेजा गया. घर-आंगन-गोशाला को 'पठावे' (देवदार के परागकणों) से बनी पारंपरिक रंगोलियों से सजाया गया.

mal festival celebration in karsog
करसोग में मनाया गया माल त्योहार

व्यापार मंडल पांगणा के प्रधान सुमीत गुप्ता ने कहा कि कि सूर्योदय के समय पशुओं के घर लौटने पर शुभ मुहूर्त में पशुओं को माल्यार्पण और वैदिक विधान से पूजा कर पिन्नियां खिलाई गई. साथ ही गांव की सुख-समृद्धि का आशीर्वाद लिया गया.

ये भी पढ़ें: इंटर-कॉलेज महिला कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन, बिलासपुर कॉलेज ने ट्रॉफी पर किया कब्जा

Intro:सुबह 4 बजे ही सबसे पहले उठकर गांव की महिलाओं पशुओं के गले में फूल मालाएं बांधी। इसके बाद सफेद और पीला रंग लगाकर पशुधन की पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना कीBody:यहां आज भी निभाया जाता है प्राचीन काल आ रही इस प्रथा को, पारंपरिक गीतों के साथ ऐसे की जाती है पशुधन की पूजा।
करसोग
प्राचीन काल से ही आर्थिकी समृद्धि का प्रतीक रहे पशुधन की पूजा माल त्योहार को आज के आधुनिक दौर में भी पहले की ही तरह करसोग के ग्रामीण क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है। रविवार को सुबह 4 बजे ही सबसे पहले उठकर गांव की महिलाओं पशुओं के गले में फूल मालाएं बांधी। इसके बाद सफेद और पीला रंग लगाकर पशुधन की पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना की। इसी कडी में शनिवार की रात को भी महिलाओं ने ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ माल के गीत नृत्य ,नाट्य ,संगीत और लोक गाथाओं का वखान किया। गाव की महिलाओं ने एक निश्चित स्थान या घर में एकत्रित होकर माल से आठ दिन पूर्व से "मालाे मालाे-मालो मालो , तू मालै केता देशा आए गै , तू मालै केता देशा आए गीत गाकर इस पर्व प्राचीन प्रथा को निभाया। बाग गांव के डोलाराम शास्त्री,सरही.गांव के अध्यापक ओम प्रकाश,लुच्छाधार के अध्यापक लक्ष्मी दत्त और निहरी मताहर के भागचंद ठाकुर का कहना है कि ब्रह्मवेला में "जोगठियों"(मशालों) की रोशनी के साथ पशुओं को खेतों व चरागाहों में चरने भेजा गया। घर -आंगन-गोशाला को "पठावे"(देवदार के परागकणों) से बनी पारंपरिक रंगोलियों से सजाया गया। व्यापार मंडल पांगणा के प्रधान सुमीत गुप्ता का कहना है कि सूर्योदय के समय पशुओं के घर लौटने पर शुभ मुहूर्त में इन्हें माल्यार्पण व वैदिक विधान से धूप-फूल-अक्षत पूजन-अर्चन कर "दाड़ा"(जौ,मक्की, गेहूं, भरठ का समिश्रण) के साथ आटे की नमकीन "पिंदलियां" और पेड़-पौधों का हरा चारा खिलाकर गाय के अगले "खूरों"का स्पर्श कर श्रद्धा के पुष्प अर्पित कर घर और गांव की सुख-समृद्धि का आशीर्वाद लिया।Conclusion:सूर्योदय के समय पशुओं के घर लौटने पर शुभ मुहूर्त में इन्हें माल्यार्पण व वैदिक विधान से धूप-फूल-अक्षत पूजन-अर्चन कर "दाड़ा"(जौ,मक्की, गेहूं, भरठ का समिश्रण) के साथ आटे की नमकीन "पिंदलियां" और पेड़-पौधों का हरा चारा खिलाकर गाय के अगले "खूरों"का स्पर्श कर श्रद्धा के पुष्प अर्पित कर घर और गांव की सुख-समृद्धि का आशीर्वाद लिया।
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