मंडी: भाई हिरदा राम स्वतंत्रता संग्राम के महान देशभक्त और क्रांतिकारी थे. उनका जन्म 28 नवंबर 1885 को हिमाचल के जिला मंडी में हुआ था. उनके पिता का नाम गज्जन सिंह था. आठवीं तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने स्वर्णकार के रूप में काम शुरू किया. उनके शौक को देखकर उनके पिता अखबार और पुस्तकें मंगवाते रहते थे. क्रांति से संबंधित साहित्य पढ़ने पर उनके मन में देश प्रेम का जोश उमड़ने लगा.
गदर पार्टी के प्रमुख सदस्य बनाए गए हिरदा राम
1913 में युगांतर आम सैन फ्रांसिस्को में गदर पार्टी की स्थापना की गई. भाई हिरदा राम गदर पार्टी के प्रमुख सदस्य बन गए और मंडी में गदर पार्टी की स्थापना की. बंगाल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी राम बिहारी बोस पंजाब के क्रांतिकारियों के बुलावे पर जनवरी 1915 में अमृतसर आए.
रानी खेरगढ़ी ने उन्हें बम बनाने का प्रशिक्षण लेने के लिए राम बिहारी बोस के पास भेज दिया. बाद में भाई हिरदा राम और साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया. लाहौर सेंट्रल जेल में क्रांतिकारियों के खिलाफ 26 अप्रैल 1915 को मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई.
लाहौर बम षड्यंत्र मामले में हुए थे गिरफ्तार
भाई हिरदा राम समिति के सचिव कृष्ण कुमार नूतन ने भाई हिरदा राम का जीवन रेखाचित्र लिखा है और उनके साथ भी रहें हैं. उनका कहना है कि गदर पार्टी ने गदर (ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह) शुरू करने के लिए 21 फरवरी, 1915 की तारीख तय की थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार को इस योजना के बारे में पता चला और भाई हिरदा राम सहित सभी क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें लाहौर बम षड्यंत्र मामले में लाहौर जेल भेज दिया गया.
आजीवन कारावास में बदली फांसी की सजा
लाहौर बम षड्यंत्र केस के रिकॉर्ड में भाई हिरदा राम को आरोपी नंबर 27 था और 1915 में एक ब्रिटिश अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया. युद्ध और भारतीय दंड संहिता की धारा 302/109 के उल्लंघन के लिए उन्हें फांसी की सजा दी गई थी. भाई हिरदा राम की पत्नी सरला देवी की अपील पर वायस राय हार्डिंग ने भाई हिरदाराम की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.
काला पानी में काटी सजा
लेखक कृष्ण कुमार नूतन ने बताया कि उन्होंने अपने आजीवन कारावास की सजा अंडमान और निकोबार सेल्यूलर जेल में बिताया, जिसे काला पानी जेल के नाम से जाना जाता है. जेल में भी उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की यातना का विरोध किया, जिसके बाद उन्हें अलग सेल में अंग्रजों ने छह फीट के एक पिंजरे में 40 दिन तक कैद किया.
सरकारों की ओर से नहीं मिली पहचान
लेखक कृष्ण कुमार नूतन का कहना कि क्रांतिकार भगत सिंह ने भी अपनी चिट्ठी में भाई हिरदा राम को अपना प्रेरणा स्त्रोत बताया है. उन्होंने कहा कि भाई हिरदा राम को अपने जीवनकाल के दौरान कोई मान्यता नहीं मिली. 21 अगस्त 1965 में उनका देहांत हो गया. उनकी मृत्यु के बाद भी लगातार सरकारों द्वारा मान्यता नहीं दी गई है. दिवंगत क्रांतिकारी और उनके उत्तराधिकारी स्वतंत्रता मिलने के बाद भी ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त की गई भूमि को भारत सरकार से वापस पाने में असफल रहे.
भाई हिरदा राम के दोते बलवीर सिंह ने कहा कि लाहौर बम षड्यंत्र मामले के मुख्य अभियुक्तों में से एक होने के नाते, उनके नाना को भी गदर पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ अंग्रेजों द्वारा दोषी ठहराया गया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई. भाई हिरदा राम को उनके जीवन काल के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उनके बलिदान का कोई भी लाभ नहीं दिया गया.
वहीं, हिरदा राम के पोते शमशेर सिंह ने कहा कि उनके दादाजी को मंडी में उनकी मूर्ति की स्थापना के अलावा राज्य या केंद्र सरकारों से कोई मान्यता नहीं मिली, उन्होंने कहा कि उनके दादाजी 1929 में आजीवन कारावास की सजा काट मंडी आए, लेकिन उन्हें अंग्रेज सरकार द्वारा देश आजाद होने तक घर आने नहीं दिया गया. उन्होंने मांग की है कि मंडी में भाई हिरदा राम ट्रस्ट बनाने के लिए सरकार उन्हें जमीन मुहैया करवा दे तो वे उनके द्वारा किए गए बलिदानों को संजोकर रख सकते हैं.
इंदिरा मार्केट में मनाई जाती है जंयती
मंडी के इंदिरा मार्केट में वर्ष 2002 में उनकी मूर्ति की स्थापना की गई जो कि 92 वर्षीय प्रसिद्ध लेखक एवं भाई हिरदा राम समिति सचिव कृष्ण कुमार नूतन के प्रयासों से सफल हो पाया. 28 नवंबर को हर वर्ष इंदिरा मार्केट में उनकी जंयती मनाई जाती है, लेकिन राज्य सरकार भी मूर्ति स्थापना के अलावा अभी तक उन्हें कुछ नहीं दे पाई.
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