सुंदरनगर: भारत में अंतिम क्रियाओं में हिस्सा लेने को पुण्य माना जाता है, लेकिन 2020 में हालात बदल गए. लोगों के जहन में कोरोना का खौफ इस कदर बैठ गया कि वह किसी को छूने से भी कतरा रहे हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी जान की परवाह किए बिना कोरोना संक्रमितों के शवों का दाह संस्कार करवा रहे हैं.
नेरचौक डेडिकेटेड कोविड अस्पताल में तैनात 5 कर्मचारी कोरोना वॉरियर्स से कम नहीं है. जिन्होंने कोविड-19 से मरने वाले मरीजों के दाह संस्कार करवाने का जिम्मा संभाल रखा है. यह लोग शव को शव गृह से लेकर श्मशानघाट तक पहुंचाने का कार्य करते हैं. इन कोरोना योद्धाओं द्वारा पूरी एतिहात बरत कर शव का अंतिम संस्कार किया जा रहा है.
इन कोरोना वॉरियर्स की माने तो यह काम बहुत चुनौती भरा होता है, लेकिन वो इस काम को कोविड नियमों का पालन करते हुए पूरा कर रहे हैं. इनका कहना है कि शुरुआत में इन्होंने यह काम समाज सेवा की भावना से किया था, लेकिन बाद में सरकार प्रति डेड बॉडी के हिसाब से इन्हें 6000 रुपये दे रही है, जो 5 लोगों में डिवाइड किया जाता है. अभी तक यह 10 शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं.
इन कर्मचारियों का कहना है कि सरकार को इस चुनौती भरे कार्य के लिए उन्हें और राशि देनी चाहिए. क्योंकि इस मुश्किल घड़ी में उनके पास रोजगार का कोई अन्य साधान नहीं है.
कोरोना संक्रमित शवों का दाह संस्कार करने वाले कर्मचारियों के परिजनों में भी कोविड का खासा डर है, लेकिन परिवार के सदस्य फिर भी इन कोरोना वॉरियर्स का सहयोग कर रहे हैं. इनकी सरकार से बस एक गुहार है कि इस मुश्किल काम को करने के लिए उन्हें और राशि मिलनी चाहिए.
कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने कुछ गाइडलाइंस जारी की है. शव का दाह संस्कार करने वाले कर्मचारियों को पीपीए किट पहनना अनिवार्य है.
कोरोना संक्रमित शवों का दाह संस्कार करना जोखिम भरा काम है, इस काम को करने वाले कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने की मांग भी लाजमी है. किसी की छोटी सी गलती भी हजारों जिंदगियों पर भारी पड़ सकती है, ऐसे में अपनी जिम्मेदारियों को कम वेतन में बखूबी निभाने वाले कोरोना वॉरियर्स के जज्बे को सलाम है.
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