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आत्मनिर्भरता की अनूठी मिसाल: जंगलों में बने दड़बों में 6 महीने बिताते हैं ये पशुपालक

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Published : Jun 27, 2020, 8:55 PM IST

आधुनिकता के इस दौर में हर कोई सुख-सुविधा के साथ जिंदगी जीना चाहता है, लेकिन मंडी जिला के कुछ पशुपालक 6 महीने विकट परिस्थितियों में गुजारकर आत्मनिर्भरता की अनूठी मिसाल पेश करते हैं. देश के पशुपालक वीरान जंगलों के बीच दड़बों में रहकर आत्मनिर्भरता के साथ जिंदगी जीने का हुनर जानते हैं.

mandi cattlemen
मंडी के पशुपालक.

मंडी: हिमाचल प्रदेश के पशुपालक वीरान जंगलों के बीच दड़बों में रहकर आत्मनिर्भरता के साथ जिंदगी जीने का हुनर जानते हैं. पशुधन से आजीविका कमाने वाला यह वर्ग हर साल 6 महीने का समय विकट परिस्थितियों में गुजारता है. दड़बों के बीच इस वर्ग ने आत्मनिर्भरता के साथ जिंदगी जीने की कला सीखी है.

आधुनिकता के इस दौर में हर कोई सुख-सुविधा के साथ जिंदगी जीना चाहता है, लेकिन मंडी जिला के कुछ पशुपालक छ: महीने विकट परिस्थितियों में गुजारकर आत्मनिर्भरता की अनूठी मिसाल पेश करते हैं. दड़बों में समय बिताने को लेकर मोहम्मद इसराईल से बात की गई. मोहम्मद इसराईल मंडी जिला के द्रंग विधानसभा क्षेत्र की घ्राण पंचायत के रहने वाले हैं. यह भैंस पालन का काम करते हैं.

वीडियो.

गर्मियों के मौसम में इनके गांव में चारे की कमी होने पर मोहम्मद इसराईल अपने दर्जनों पशुओं के साथ अपने घर से कोसों दूर पराशर की वादियों का रूख करते हैं. यहां इनकी जिंदगी दड़बों में कटती है. पत्थर, मिट्टी और लकड़ी से बनाए इन दड़बों में 6 महीने गुजारते हैं.

मोहम्मद इसराईल ने बताया कि उन्हें 6 महीनों तक अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है. इस दौरान जंगल के बीच रहने पर हर वक्त खतरा भी बना रहता है. कई बार जंगली जानवर पशुओं को नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन कभी किसी इंसान के साथ ऐसी घटना नहीं हुई है.

मोहम्मद इसराईल और इसी तरह से यहां रहने वाले अन्य पशुपालक रोजाना दूध उत्पादन करते हैं. दूध का दही, पनीर, खोया, मक्खन और घी बनाकर अपना रोजगार चलाते हैं. दूध से बने उत्पादों को बेचने के लिए मंडी शहर भेजा जाता है. हालांकि, पराशर की तरफ घूमने के लिए आने वाले पर्यटक बड़ी संख्या में खुद ही यहां से इन उत्पादों को खरीद कर ले जाते हैं. वहीं, इस बार लॉकडाउन के कारण पर्यटकों के न आने से इन्हें थोड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है.

वहीं, वन विभाग इस वर्ग को वन प्रबंधन का अहम हिस्सा मानता है. वन मंडल मंडी की बात करें तो यहां 35 दड़बों के लिए परमिट जारी हुए हैं, जहां पर सरकार की तरफ से बिजली का प्रबंध भी कर दिया गया है. इनसे 2 रूपए प्रति पशु की दर से नाममात्र का किराया लिया जाता है.

डीएफओ मंडी एसएस कश्यप ने कहा कि इस वर्ग के हर साल अपने पशुओं के साथ वीरान जंगलों में पहुंचने पर जंगलों में नई जान पड़ जाती है. पशुओं के पैरों से मिट्टी की खुदाई हो जाती है और गोबर की खाद मिल जाती है, जिससे जंगलों के संवर्धन में काफी ज्यादा मदद मिलती है.

यह वर्ग पूरी आत्मनिर्भरता के साथ अपना जीवन यापन करता है. यह वर्ग जहां खुद की आजिविका कमाते हैं. वहीं, वनों के संरक्षण और संवर्धन में भी अपना अहम योगदान निभाते हैं.

ये भी पढ़ें- चालबाज चीन क्यों ले रहा भारत से पंगा! LAC पर क्या है चाइना की चाल ?

मंडी: हिमाचल प्रदेश के पशुपालक वीरान जंगलों के बीच दड़बों में रहकर आत्मनिर्भरता के साथ जिंदगी जीने का हुनर जानते हैं. पशुधन से आजीविका कमाने वाला यह वर्ग हर साल 6 महीने का समय विकट परिस्थितियों में गुजारता है. दड़बों के बीच इस वर्ग ने आत्मनिर्भरता के साथ जिंदगी जीने की कला सीखी है.

आधुनिकता के इस दौर में हर कोई सुख-सुविधा के साथ जिंदगी जीना चाहता है, लेकिन मंडी जिला के कुछ पशुपालक छ: महीने विकट परिस्थितियों में गुजारकर आत्मनिर्भरता की अनूठी मिसाल पेश करते हैं. दड़बों में समय बिताने को लेकर मोहम्मद इसराईल से बात की गई. मोहम्मद इसराईल मंडी जिला के द्रंग विधानसभा क्षेत्र की घ्राण पंचायत के रहने वाले हैं. यह भैंस पालन का काम करते हैं.

वीडियो.

गर्मियों के मौसम में इनके गांव में चारे की कमी होने पर मोहम्मद इसराईल अपने दर्जनों पशुओं के साथ अपने घर से कोसों दूर पराशर की वादियों का रूख करते हैं. यहां इनकी जिंदगी दड़बों में कटती है. पत्थर, मिट्टी और लकड़ी से बनाए इन दड़बों में 6 महीने गुजारते हैं.

मोहम्मद इसराईल ने बताया कि उन्हें 6 महीनों तक अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है. इस दौरान जंगल के बीच रहने पर हर वक्त खतरा भी बना रहता है. कई बार जंगली जानवर पशुओं को नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन कभी किसी इंसान के साथ ऐसी घटना नहीं हुई है.

मोहम्मद इसराईल और इसी तरह से यहां रहने वाले अन्य पशुपालक रोजाना दूध उत्पादन करते हैं. दूध का दही, पनीर, खोया, मक्खन और घी बनाकर अपना रोजगार चलाते हैं. दूध से बने उत्पादों को बेचने के लिए मंडी शहर भेजा जाता है. हालांकि, पराशर की तरफ घूमने के लिए आने वाले पर्यटक बड़ी संख्या में खुद ही यहां से इन उत्पादों को खरीद कर ले जाते हैं. वहीं, इस बार लॉकडाउन के कारण पर्यटकों के न आने से इन्हें थोड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है.

वहीं, वन विभाग इस वर्ग को वन प्रबंधन का अहम हिस्सा मानता है. वन मंडल मंडी की बात करें तो यहां 35 दड़बों के लिए परमिट जारी हुए हैं, जहां पर सरकार की तरफ से बिजली का प्रबंध भी कर दिया गया है. इनसे 2 रूपए प्रति पशु की दर से नाममात्र का किराया लिया जाता है.

डीएफओ मंडी एसएस कश्यप ने कहा कि इस वर्ग के हर साल अपने पशुओं के साथ वीरान जंगलों में पहुंचने पर जंगलों में नई जान पड़ जाती है. पशुओं के पैरों से मिट्टी की खुदाई हो जाती है और गोबर की खाद मिल जाती है, जिससे जंगलों के संवर्धन में काफी ज्यादा मदद मिलती है.

यह वर्ग पूरी आत्मनिर्भरता के साथ अपना जीवन यापन करता है. यह वर्ग जहां खुद की आजिविका कमाते हैं. वहीं, वनों के संरक्षण और संवर्धन में भी अपना अहम योगदान निभाते हैं.

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