लाहौल स्पीति: स्नो फेस्टिवल से जहां लाहौल स्पीति के लोगों मे उत्साह है. वहीं, मीडिया एवं सोश्ल मीडिया से इसका नजारा देश-विदेश तक लोगों को देखने को मिल रहा है. यह बात आज लोअर केलांग में गमत्सा उत्सव उपायुक्त पंकज राय ने कही. उन्होंने कहा कि लाहौल घाटी अटल-टनल रोहतांग के खुलने से पूर्व केवल 6 महीने के लिए ही शेष विश्व से कटी रहती थी, जिससे केवल आपतस्थिति में ही हवाई सेवा द्वारा लोगों का आना-जाना संभव हो पाता था. लाहौल के सांस्कृतिक परिदृश्य में भी एक घाटी के लोग दूसरी घाटी में चल रहे उत्सव में भागीदार नहीं हो पाते थे.
अटल टनल रोहतांग ने घाटी को पूरे विश्व से जोड़ा
अटल टनल रोहतांग ने जहां घाटी को पूरे विश्व से जोड़ दिया है. वहीं, इसके द्वारा अब सांस्कृतिक आदान-प्रदान के रास्ते भी खुल गए हैं. उन्होंने बताया इस बार सर्दियों मे हर गांव में अधिकतर लोग अपने पारम्परिक त्यौहारों को मनाने पहुंच रहे हैं, जोकि पूर्व में संभव नहीं था. वहीं, 'फेस्टिवल ऑफ फेस्टिवल' के रूप में स्नो फेस्टिवल के आयोजन से यहां के समस्त पारंपरिक त्यौहारों को एकीकृत होने का अवसर मिल रहा है. इसके साथ ही लुप्त हो रही परम्पराओं को इस फेस्टिवल के माध्यम से पुनर्जीवित होने का भी अवसर मिला है.
शांगजातर, राइंक जातर, दारचा का सेलू नृत्य जोकि अब प्रचलन के दायरे से वर्षों पूर्व बाहर हो चुके थे. उन्हें फिर से प्रचलन में लाने का कार्य 'स्नो फेस्टिवल' के द्वारा किया जा रहा है.
स्नो फेस्टिवल के 50 दिन पूरे
उल्लेखनीय है कि स्नो फेस्टिवल का आरंभ 13 जनवरी को घाटी के पहले पारम्परिक त्यौहार से शुरू हुआ था, जो आधिकारिक रूप से 25 जनवरी को हिमाचल प्रदेश के पूर्ण राज्यत्व की स्वर्ण जयंती के अवसर पर तकनीकी शिक्षा एवं जनजातीय विकास मंत्री डॉ. रामलाल मार्कण्डेय द्वारा किया गया था. 4 मार्च को इसके 50 दिन पूरे होंगे.
'स्नो फ़ेस्टिवल' की परिधि में जिले के सभी पारम्परिक त्यौहारों-उसत्वों को जोड़ा गया है, इसीलिए इसको 'फेस्टिवल ऑफ फेस्टिवल्स' कहा जा रहा है. गमत्सा उत्सव में आज पारंपरिक तीरंदाजी, रस्साकस्सी, सहित लोक नृत्य का आयोजन किया गया.
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