कुल्लू: प्रदेश में कला की बात की जाए तो महान विभूतियों में से एक लाल चंद प्रार्थी का नाम सबसे ऊपर आता है. राजनीति के साथ प्रार्थी साहित्यकार, संगीतकार और कवि भी थे. इनकी बोए हुए बीज ने ही आज कुल्लवी नाटी को नई पहचान दी है.
शेर-ए-कुल्लू, चाँद कुल्लुवी, हिमाचल का मिर्जा गालिब के नाम से अलंकृत स्व. लाल चंद प्रार्थी का जन्म कुल्लू जिला की प्राचीन राजधानी नग्गर गांव में 3 अप्रैल, 1916 को हुआ था. महिलाओं को नाटी में स्थान दिलाने में इनका अहम योगदान रहा. जिसकी बदौलत आज कुल्लवी नाटी का नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज़ हो चुका है.
स्व. लाल चंद प्रार्थी ने कुल्लू जिला के लिए ही नहीं बल्कि पूरे हिमाचल प्रदेश के लिए ऐसे कार्य किए हैं जिन्हें भूलना प्रदेश वासियों के लिए मुश्किल है. प्रार्थी सिर्फ राजनीति के क्षेत्र में प्रसिद्ध नहीं बल्कि उनके अंदर साहित्यकार, कवि और संगीत का हुनर भी भरा हुआ था.
ये वहीलाल चंद प्रार्थी थे जिन्होंने 1967 में मंत्री बनने के बाद हिमाचल प्रदेश में भाषा-संस्कृति विभाग और अकादमी की स्थापना की थी. उसके बाद प्रदेश में भाषाओं के संरक्षण पर अभूतपूर्व कार्य हुआ. इतना ही नहीं उस दौरान उन्हें भाषा एवं संस्कृति मंत्रालय के साथ साथ आयुर्वेदा मंत्री का कार्यभार भी सौंपा गया था.