कुल्लू: सनातन धर्म में जहां देवी देवताओं का महत्व है. वही, पितरों को भी सनातन धर्म में देवताओं की तरह पूजने का विधान है. ऐसे में हर साल पितृपक्ष के समय पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है. जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष शुरू होते हैं और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पितृपक्ष का समापन होता है. ऐसे में सनातन धर्म से जुड़े लोग अपने पितरों की याद में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं.
29 सितंबर से पितृपक्ष: वही, इस साल पितृपक्ष 29 सितंबर शुक्रवार से शुरू हो रहे हैं. इसका समापन 14 अक्टूबर शनिवार को किया जाएगा. पितृपक्ष के पहले दिन पूर्णिमा तिथि पर श्राद्ध पक्ष शुरू होगा और प्रतिपदा तिथि पर श्राद्ध पक्ष समाप्त होगा. हिंदू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 28 सितंबर को शाम 6:49 को होगा और पूर्णिमा तिथि का समापन 29 सितंबर को दोपहर 3:26 पर होगा. ऐसे में पूर्णिमा श्रद्धा का मुहूर्त 29 तारीख को सुबह 11:47 से लेकर 12:35 तक होगा.
गंगा किनारे श्राद्ध का महत्व: आचार्य पुष्पराज शर्मा का कहना है कि विद्वान ब्राह्मण से ही श्राद्ध कर्म करवाने चाहिए और पूरी श्रद्धा से पितरों के निमित ब्राह्मण को दान करना चाहिए. इसके अलावा गरीब व जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता करने से भी पुण्य मिलता है. पितृपक्ष के समय गाय, कुत्ते और कौवे के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए. वहीं, अगर संभव हो तो गंगा नदी के किनारे श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए.
श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान: जिस दिन श्राद्ध हो, उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए और भोजन के बाद उन्हें धन देकर संतुष्ट करना चाहिए. श्राद्ध के दिन योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्र उच्चारण करना चाहिए और पूजा के बाद जल से तर्पण करना चाहिए. इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है. उसमें गाय, कुत्ते और कौवे का हिस्सा अलग निकालना चाहिए. वहीं, भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए और मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का भी निवेदन करना चाहिए.
पितरों का मिलेगा आशीर्वाद: पितृपक्ष में पितरों को दिए जाने वाले जल में कुशा और तिल को महत्वपूर्ण माना गया है. इसके बिना यह नियम अधूरा होता है. हिंदू धर्म में कुशा को भगवान विष्णु का प्रतीक माना गया है और तिल में भगवान विष्णु का वास होता है. मान्यता है कि जब कुशा से पितरों का तर्पण करते हैं तो भगवान विष्णु की कृपा से पितरों की मोक्ष प्राप्ति होती है. इसके साथ ही पितृ भी आपसे प्रसन्न होकर आपको आशीर्वाद देते हैं.
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