मनाली: हिमाचल प्रदेश को देवों की धरती कहा जाता है. यहां अनेकों देवताओं के प्रसिद्ध व अद्रभुत मंदिरों का समागम है. प्रदेश में होने वाले प्रत्येक त्यौहारों में इन देवी-देवाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. ऐसा ही एक भव्य और प्राचीन मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के मनाली के ढूंगरी गांव में भी स्थित है. माता हिडिंबा के इस मंदिर में कल से अगले 9 दिनों तक नवरात्रों की धूम रहेगी. इस मंदिर में जहां रोजाना पूजा अर्चना की जाएगी तो वहीं हवन यज्ञ का भी आयोजन किया जाएगा, ताकि इलाके में सुख शांति बनी रह सके. माता हडिंबा मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ है और माता हडिंबा, पांडव पुत्र भीम की पत्नी है. जिसे मां दुर्गा के रूप में यहां पर पूजा जाता है.
महाभारत काल से जुड़ी है माता हिडिंबा की कथा: कहा जाता है कि जब कौरवों के द्वारा पांडवों को लाक्षागृह में जिंदा जलाने की योजना बनाई गई थी तो पांडव लाख के महल से बच निकले थे. रात के समय में आग लगने के बाद पांडव सुरंग के रास्ते भाग निकले और गंगा तट पर आ गए. गंगा तट से होते हुए वे दक्षिण दिशा की ओर बढ़े और हिमालय में घूमते रहे. ऐसे में कौरवों को लगा कि पांडवों की मौत हो गई है. लेकिन, वह हिमालयी इलाकों में विचरण करते रहे.
ऐसे में 1 दिन जब भीम जंगल में टहल रहे थे, तो उसी दौरान हिडिंब नाम के राक्षस ने अपनी बहन हिडिंबा को जंगल में भोजन की तलाश के लिए भेजा. वहां पर हिडिंबा ने पांचों पांडवों और उनकी माता कुंती को देखा. लेकिन भीम को देखते ही हिडिंब को उससे प्रेम हो गया. जिस कारण उसने किसी को भी नहीं मारा. ऐसे में राक्षस हिडिंब ने क्रोधित होकर पांडवों पर हमला कर दिया और भीम ने हिडिंब को मार दिया.
पांडव भीम की पत्नी थी माता हिडिंबा: हिडिंब को मारने के बाद माता कुंती ने भीम को आज्ञा दी कि वह हिडिंबा के साथ शादी कर ले और उसके बाद दोनों का विवाह हुआ. दोनों के विवाह के पश्चात उसका पुत्र घटोत्कच पैदा हुआ. जिसने महाभारत की लड़ाई में अपनी वीरता दिखाई. पर्यटन नगरी मनाली में माता हिडिंबा और घटोत्कच का मंदिर आज भी विद्यमान है और लोग उनकी पूजा अर्चना करते हैं.
मनाली के ढूंगरी गांव में विशाल कार देवदार के पेड़ों के बीच में 4 छत वाला यह मंदिर पैगोडा शैली का है. मंदिर का निर्माण कुल्लू के शासक बहादुर सिंह ने 1546 में करवाया था. मंदिर की दीवारें परंपरागत पहाड़ी शैली में बनी हैं और प्रवेश द्वार लकड़ी की नक्काशी का उत्कृष्ट नमूना है. राजा विहंग मणिपाल को कुल्लू के शासक होने का वरदान माता हिडिंबा ने ही दिया था और कुल्लू के पहले शासक विहंग मणिपाल की दादी कही जाने वाली माता हिडिंबा राज परिवार की कुलदेवी भी कहलाती हैं. वहीं, जब तक माता हिडिंबा कुल्लू दशहरा में नहीं पहुंचे तब तक यह दशहरा उत्सव शुरू नहीं होता है.
कुल्लू में माता हिडिंबा का विशेष स्थान: हिडिंबा मंदिर के पुजारी राकेश शर्मा ने बताया कि माता जिला कुल्लू में अपना विशेष स्थान रखती हैं और हर साल नवरात्रों के अलावा भी यहां पर कई तरह के धार्मिक आयोजन किए जाते हैं. वहीं, घाटी में सुख शांति के लिए भी लोग माता के दरबार आते हैं और माता सभी की मनोकामना को पूरा करती है. उन्होंने बताया की यहां के लोगों में माता हिडिंबा के प्रति अथाह श्रद्धा है.
ये भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2023: नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना का मुहूर्त, महत्व जानें, इन बातों का रखे विशेष ध्यान