कुल्लू: सनातन धर्म में एकादशी का अपना विशेष महत्व है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसे में देवउठनी एकादशी इस बार 23 नवंबर वीरवार के दिन मनाई जाएगी. धार्मिक मान्यता के अनुसार इस तिथि पर ही भगवान विष्णु क्षीरसागर में अपने चार माह के शयन के बाद जागते हैं. इसलिए इस तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. वहीं इस एकादशी के बाद मुंडन, विवाह, गृह प्रवेश सहित अन्य शुभ और धार्मिक कार्य भी शुरू हो जाएंगे.
देवउठनी एकादशी का प्रारंभ 22 नवंबर दोपहर 1:30 पर होगा और इसका समापन 23 नवंबर को सुबह 11:31 पर होगा. ऐसे में एकादशी का व्रत 23 नवंबर को किया जाएगा. आचार्य विजय कुमार का कहना है कि देवशयनी एकादशी तिथि के दिन भगवान श्री हरि क्षीरसागर में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं और इसी दिन से सभी मांगलिक कार्य भी बंद हो जाते हैं. वहीं चार माह के बाद देवउठनी एकादशी में भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं और फिर सभी मांगलिक कार्य भी शुरू किए जाते हैं.
इस एकादशी के दिन कार्तिक पंच तीर्थ महा स्नान भी शुरू होता है जो कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है. पूरे महीने कार्तिक स्नान करने वालों के लिए एकादशी से पंच भीखम का व्रत भी आरंभ होता है, जो 5 दिनों तक निराहार रहकर किया जाता है. यह धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से 1000 अश्वमेध यज्ञ और 100 राज सूय यज्ञ करने के बराबर फल मिलता है.
आचार्य विजय कुमार का कहना है की एकादशी तिथि व वीरवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है. ऐसे में देवउठनी एकादशी वीरवार के दिन पड़ रही है. जिस कारण इस एकादशी तिथि का भी महत्व बढ़ रहा है. देवउठनी एकादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का भी शुभ संयोग बन रहा है. ज्योतिष शास्त्र में दोनों योग काफी शुभ बताए गए हैं. सर्वार्थ सिद्धि योग शाम 5:16 से 24 नवंबर को सुबह 6:50 तक रहेगा. रवि योग सुबह 6:49 से शाम 5:16 तक रहेगा.
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