कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में लंबे समय तक रसायन युक्त खेती करने के बाद अब किसानों-बागवानों का रुझान वापस प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ रहा है. हिमाचल प्रदेश को रसायन मुक्त करने की दिशा में राज्य सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना चलाई गई है. इस योजना के तहत अब प्रदेशभर से किसान रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं. जिससे किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ रसायन मुक्त पैदावार मिल रही है.
जिला कुल्लू में भी बड़ी संख्या में किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है. जिलेभर के कई किसान प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना का लाभ उठा रहे हैं. इस योजना के तहत मिल रहे लाभों से किसान अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत कर रहे हैं.
कृषि विभाग की आत्मा परियोजना के निदेशक डॉक्टर सुशील कुमार ने बताया कि जिला कुल्लू में 11 हजार 163 किसानों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग दी गई है. कुल्लू जिले में 2 हजार 139 हेक्टेयर एरिया में अब प्राकृतिक खेती की जा रही है. इस साल भी इस योजना के तहत 330 किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूक किया गया है.
डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि इस साल 114 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती के तहत इसे कवर करने का भी लक्ष्य रखा गया है. इस योजना के तहत कृषि विभाग द्वारा इस साल 47 लाख रुपए प्राकृतिक खेती विषय के ऊपर खर्च किए गए हैं. वहीं, योजना के तहत जिला कुल्लू में 84 ट्रेनिंग कैंप भी लगाए गए और इनमें किसानों को विशेष रूप से ट्रेनिंग दी जा रही है.
डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत देसी गाय की खरीद पर भी किसानों को 25 हजार रुपए की सब्सिडी दी जा रही है. इसके अलावा प्रति ड्रम प्राकृतिक दवा बनाने के हिसाब से 750 रुपए किसानों को सब्सिडी दी जा रही है. जिसके तहत इस साल 214 किसानों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है. कॉउ शेड लाइनिंग करने के लिए भी 8000 रुपए की सब्सिडी किसानों को दी जा रही है. जिसके तहत जिला कुल्लू में 12,000 किसानों को जोड़ने का लक्ष्य हासिल किया जा रहा है. संसाधन भंडारण के लिए भी 10,000 रुपए प्रति किसान को सब्सिडी देने का टारगेट इस योजना के तहत पूरा किया गया है.
डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में सरकार द्वारा साल 2018 में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए इस योजना की शुरुआत की गई थी. इस योजना के तहत देसी गाय के गोबर, गोमूत्र से दवाइयां और कीटनाशक तैयार की जाती हैं. इसके अलावा स्थानीय वनस्पतियों के प्रयोग भी इसमें किए जाते हैं, ताकि भूमि को जहरीले रसायनों से मुक्त किया जा सके. वहीं, प्रदेश में 1 लाख 65,000 से अधिक किसानों-बागवानों ने इस योजना का लाभ उठाया है. प्रदेश में 2 लाख 48000 बीघा भूमि पर इस विधि से खेती और बागवानी भी की जा रही है.
कृषि विभाग द्वारा वित्तीय वर्ष 2023-24 में 50,000 बीघा भूमि को प्राकृतिक खेती के अधीन करने का लक्ष्य रखा गया है. प्रदेश के 9 लाख 61,000 किसान परिवारों को भी इस योजना से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है. प्राकृतिक खेतों से होने वाले उत्पादों की बिक्री के लिए 10 मंडियों में अभी स्थान निर्धारित किया गया है. प्रदेश सरकार द्वारा इस साल इसके लिए 13 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया है.
प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत खेती करने वाले किसान हीरालाल ठाकुर व देशराज शर्मा का कहना है कि पहले वह बेहतर फसल के लिए अपने खेतों में कीटनाशक व अन्य रसायनों का प्रयोग करते थे. जिससे शुरुआत में तो उन्हें फसल अच्छी मिली, लेकिन उसके बाद जमीन में जहरीले तत्व अधिक हो गए और फसल उगना कम हो गई. अब उनके द्वारा प्राकृतिक खेती की जा रही है और इसके परिणाम भी काफी अच्छे आ रहे हैं. सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह खेती पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से की जाती है और खेत में तैयार होने वाले उत्पादों को भी बाजार में अच्छे दाम मिलते हैं.
आत्मा परियोजना के निदेशक डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि जिला कुल्लू में प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना किसान और बागवानों के लिए लाभदायक सिद्ध हो रही है और अब किसानों का रुझान भी इस योजना की ओर बढ़ा है. इस साल जिला कुल्लू में 330 किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूक किया गया और 114 हेक्टेयर एरिया पर प्राकृतिक खेती के तहत उसे कवर करने का लक्ष्य भी अब हासिल कर लिया गया है. इसके अलावा साढ़े 47 लाख रुपए इस योजना के तहत विभिन्न कार्यक्रमों में भी खर्च किए गए जा रहे हैं.