कुल्लू: ऐतिहासिक कुल्लू दशहरे के चलते जिला मुख्यालय देव महाकुंभ में बदल गया है. उत्सव में जहां जिलावासी एक ओर जुट रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर देवता भी अपनी रिश्तेदारी मिलन की अनूठी परंपरा को निभा रहे हैं. इस अनूठे मिलन का नजारा मोहल्ला पर्व पर भी खूब देखने को मिला.
देवताओं के कारकूनों के अनुसार हर साल उत्सव के दौरान खोखन से आदि ब्रह्मा (ब्रह्मा), दियार से त्रियुगी नारायण (विष्णु), भ्रैण से बिजली महादेव (शिव) उत्सव में पहुंचते हैं. बालू नाग (लक्ष्मण अवतार) व देवी हिडिंबा भी यहां पर पहुंच मुख्य भूमिका निभाती है और उत्सव का आगाज करवाती है. इसके बाद अस्थायी शिविर में पहुंचने के बाद देवी हिडिंबा अपने पुत्र घटोत्कच्छ से भी मिलती है.
छेउंर से मंगलेश्वर महादेव अपनी बहन देवी पटंती, शृंगा ऋषि व बलागाड़ की देवी का भी आपस में भाई-बहन का रिश्ता है. कुल्लू राज परिवार की कुलदेवी दोचा-मोचा भी दशहरा में आती है और यह दोनों देवियां मनु महाराज की पत्नियां हैं और इनके प्राचीन नाम श्रद्धा और इड़ा हैं. बिजली महादेव, माता पार्वती और देवी महिषासुर मर्दनी के देवरथों का भी ढालपुर में भव्य मिलन देखने को मिलता है.
कुल्लू में एक ही देवता के अलग-अलग जगह देवालय हैं. इनमें देवी भागा सिद्ध के नरोगी व धारा में देवालय हैं. सियाली महादेव को शिव का रूप माना जाता हैं. सचाणी के ऋषि गर्गाचार्य और दलासणी की श्यामाकाली का आपस में भाई-बहन का रिश्ता है. देव वीरनाथ हुरला और महर्षि मार्कंडेय थरास का भी भाई-बहन का रिश्ता माना गया है. इनका भी दशहरा उत्सव में भव्य मिलन होता है और हजारों लोग इस भव्य देव मिलन के साक्षी बनते हैं. जिला के इतिहासविदों के और देव कारकूनों के अनुसार दशहरा उत्सव देव मिलन की अनूठी पहल है. इसके लिए स्थानीय देवलु व आयोजक युगों से देव कारज का निर्वहन करने आ रहे हैं.