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Himachal Lightning: अब आसमानी बिजली गिरने के कारणों की होगी जांच, पूर्वानुमान के जरिए कम होगा नुकसान

हिमाचल प्रदेश में अब आसमानी बिजली पर वैज्ञानिक अपनी नजर बनाए हुए हैं. पहली बार प्रदेश में आसमानी बिजली गिरने वाली घटनाओं का डाटा मेंटेन किया जा रहा है. इसके जरिए वैज्ञानिक आसमानी बिजली गिरने का पूर्वानुमान जानकर, इससे कम नुकसान होने की दिशा में काम कर रहे हैं. (Himachal Lightning) (Lightning Reason) (Lightning Forecast)

Lightning Reason investigate by Scientists
हिमाचल में आसमानी बिजली गिरने के कारण
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Oct 4, 2023, 11:02 AM IST

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में पहली बार आसमानी बिजली गिरने वाली घटनाओं का अब डाटा मेंटेन किया जा रहा है. इन घटनाओं पर किस तरह से रोक लगाई जा सकती है, इसके बारे में भी विशेषज्ञों द्वारा काम किया जा रहा है, ताकि आसमानी बिजली गिरने के कारण लोगों को होने वाले नुकसान को रोका जा सके. जिला कुल्लू के जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन एनवायरमेंट मोहल में इसके लिए लाइटनिंग सेंसर स्थापित किया गया है. जो आसमान से बिजली गिरने की घटनाओं को रिकॉर्ड करता है. यह लाइटनिंग सेंसर आईआईटीएम यानी इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेंटरोलॉजी पुणे द्वारा स्थापित किए गए हैं. भारत में यह दोनों संस्थान आसमानी बिजली पर अध्ययन कर रहे हैं, ताकि आने वाले समय में आसमानी बिजली गिरने की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सके और इससे होने वाले नुकसान को भी रोका जा सके.

कुल्लू में लाइटिंग सेंसर: जीबी पंत नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरमेंट मोहल के वैज्ञानिकों के अनुसार लाइटनिंग सेंसर के माध्यम से खराब मौसम के दौरान आसमानी बिजली के गिरने की घटना रियल टाइम में कैप्चर होती हैं. इसके माध्यम से बिजली गिरने के फ्रीक्वेंसी कितनी थी और इससे कितना नुकसान हुआ है, इसका रियल डाटा मोहल स्थित केंद्र के साथ-साथ पुणे स्थित आईआईटीएम के मुख्यालय में भी रिकॉर्ड होगा. प्रदेशभर के साथ कुल्लू में स्थापित यह लाइटिंग सेंसर में रिकॉर्ड हुई बिजली गिरने की घटनाओं से तैयार किया जाएगा. डाटा को बढ़ाने और उसकी समीक्षा करने पर वैज्ञानिक इस बात का पता लगाएंगे की आसमानी बिजली आखिर क्यों गिरती है. बिजली गिरने के चलते किन कारणों से नुकसान होता है, ताकि आने वाले समय में बिजली के गिरने की घटनाओं का अनुमान लगाकर होने वाले नुकसान को काम किया जा सके.

3 साल पहले सेंसर स्थापित: इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेंटरोलॉजी ने कुल्लू के मोहल स्थित जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट हिमालयन एनवायरमेंट में 3 साल पहले यह सेंसर स्थापित किए हैं. उसके बाद से यहां आसमानी बिजली गिरने की हर घटना रिकॉर्ड हो रही है. लिहाजा प्रदेश में होने वाली आसमानी बिजली गिरने की हर घटना पर आईआईटीएम के वैज्ञानिक नजर बनाए हुए हैं. गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश में आसमानी बिजली गिरने से भारी जान-माल का नुकसान होता है. जिसके चलते वैज्ञानिकों द्वारा इस दिशा में यह कदम उठाया गया है.

आसमानी बिजली पर वैज्ञानिकों की नजर: मोहल में संस्थान के साइंटिस्ट एंड सेंटर हेड इंजीनियर राकेश कुमार सिंह ने बताया कि आईआईटीएम की ओर से मोहल में इस संस्थान में लाइटनिंग सेंसर स्थापित किए गए हैं. जिसके माध्यम से क्षेत्र में आसमानी बिजली गिरने की घटनाओं का रिकॉर्ड मेंटेन किया जा रहा है. पिछले तीन सालों से लाइटनिंग सेंसर के माध्यम से रियल टाइम डाटा तैयार हो रहा है और उसका अध्ययन विशेषज्ञ के द्वारा किया जा रहा है. इससे यह जानने के प्रयास किया जा रहे हैं कि लाइटनिंग क्यों होती है और इससे कैसे नुकसान होता है, ताकि आने वाले समय में लाइटनिंग का पूर्वानुमान की तकनीक को खोजने का प्रयास किया जा सके.

ये भी पढ़ें: Kangra News: बकरियां चराने गए दादा-पोते की आसमानी बिजली गिरने से मौत, नरवाना में 150 भेड़ बकरियां की मौत की सूचना

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में पहली बार आसमानी बिजली गिरने वाली घटनाओं का अब डाटा मेंटेन किया जा रहा है. इन घटनाओं पर किस तरह से रोक लगाई जा सकती है, इसके बारे में भी विशेषज्ञों द्वारा काम किया जा रहा है, ताकि आसमानी बिजली गिरने के कारण लोगों को होने वाले नुकसान को रोका जा सके. जिला कुल्लू के जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन एनवायरमेंट मोहल में इसके लिए लाइटनिंग सेंसर स्थापित किया गया है. जो आसमान से बिजली गिरने की घटनाओं को रिकॉर्ड करता है. यह लाइटनिंग सेंसर आईआईटीएम यानी इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेंटरोलॉजी पुणे द्वारा स्थापित किए गए हैं. भारत में यह दोनों संस्थान आसमानी बिजली पर अध्ययन कर रहे हैं, ताकि आने वाले समय में आसमानी बिजली गिरने की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सके और इससे होने वाले नुकसान को भी रोका जा सके.

कुल्लू में लाइटिंग सेंसर: जीबी पंत नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरमेंट मोहल के वैज्ञानिकों के अनुसार लाइटनिंग सेंसर के माध्यम से खराब मौसम के दौरान आसमानी बिजली के गिरने की घटना रियल टाइम में कैप्चर होती हैं. इसके माध्यम से बिजली गिरने के फ्रीक्वेंसी कितनी थी और इससे कितना नुकसान हुआ है, इसका रियल डाटा मोहल स्थित केंद्र के साथ-साथ पुणे स्थित आईआईटीएम के मुख्यालय में भी रिकॉर्ड होगा. प्रदेशभर के साथ कुल्लू में स्थापित यह लाइटिंग सेंसर में रिकॉर्ड हुई बिजली गिरने की घटनाओं से तैयार किया जाएगा. डाटा को बढ़ाने और उसकी समीक्षा करने पर वैज्ञानिक इस बात का पता लगाएंगे की आसमानी बिजली आखिर क्यों गिरती है. बिजली गिरने के चलते किन कारणों से नुकसान होता है, ताकि आने वाले समय में बिजली के गिरने की घटनाओं का अनुमान लगाकर होने वाले नुकसान को काम किया जा सके.

3 साल पहले सेंसर स्थापित: इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेंटरोलॉजी ने कुल्लू के मोहल स्थित जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट हिमालयन एनवायरमेंट में 3 साल पहले यह सेंसर स्थापित किए हैं. उसके बाद से यहां आसमानी बिजली गिरने की हर घटना रिकॉर्ड हो रही है. लिहाजा प्रदेश में होने वाली आसमानी बिजली गिरने की हर घटना पर आईआईटीएम के वैज्ञानिक नजर बनाए हुए हैं. गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश में आसमानी बिजली गिरने से भारी जान-माल का नुकसान होता है. जिसके चलते वैज्ञानिकों द्वारा इस दिशा में यह कदम उठाया गया है.

आसमानी बिजली पर वैज्ञानिकों की नजर: मोहल में संस्थान के साइंटिस्ट एंड सेंटर हेड इंजीनियर राकेश कुमार सिंह ने बताया कि आईआईटीएम की ओर से मोहल में इस संस्थान में लाइटनिंग सेंसर स्थापित किए गए हैं. जिसके माध्यम से क्षेत्र में आसमानी बिजली गिरने की घटनाओं का रिकॉर्ड मेंटेन किया जा रहा है. पिछले तीन सालों से लाइटनिंग सेंसर के माध्यम से रियल टाइम डाटा तैयार हो रहा है और उसका अध्ययन विशेषज्ञ के द्वारा किया जा रहा है. इससे यह जानने के प्रयास किया जा रहे हैं कि लाइटनिंग क्यों होती है और इससे कैसे नुकसान होता है, ताकि आने वाले समय में लाइटनिंग का पूर्वानुमान की तकनीक को खोजने का प्रयास किया जा सके.

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