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भारत में पहली बार रोपा गया हींग का पौधा, लाहौल के क्वारिंग में ट्रायल के तौर पर होगी खेती - भारत में हींग का पहला पौधा

लाहौल के क्वारिंग गांव में 17 अक्टूबर को देश का पहला हींग का पौधा लगाया गया. अफगानिस्तान से लाए गए हींग के बीज का पालमपुर स्थित हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान की लैब में वैज्ञानिक तरीके से पौधा तैयार किया गया है. संस्थान ने ट्रायल के तौर पर हींग की पैदावार के लिए देश में सबसे पहले लाहौल-स्पीति जिले को चुना है.

हींग का पौधा
हींग का पौधा
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Published : Oct 20, 2020, 2:03 PM IST

Updated : Oct 20, 2020, 4:19 PM IST

कुल्लू: औषधीय गुणों से भरपूर हींग की अब देश में ही पैदावार होगी. दुनिया में तैयार होने वाले हींग की भारत में 50 फीसदी खपत होती है. समुद्रतल से करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर लाहौल के क्वारिंग गांव में 17 अक्टूबर को हींग का पौधा लगाया गया. ये पहला मौका है जब देश में हींग का पौधा रोपा गया है.

अफगानिस्तान से लाए गए हींग के बीज की मदद से पालमपुर स्थित हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान की लैब में वैज्ञानिक तरीके से पौधा तैयार किया गया है. संस्थान ने ट्रायल के तौर पर हींग की पैदावार के लिए देश में सबसे पहले लाहौल-स्पीति जिले को चुना है. आईएचबीटी की यह पहल कामयाब हुई तो हींग से इस जनजातीय क्षेत्र के किसानों की आर्थिकी में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा.

वीडियो.

ट्रायल के तौर पर घाटी में फिलहाल केवल 7 किसानों को हींग के पौधे दिए गए हैं. क्वारिंग में पूर्व जिप उपाध्यक्ष रिगजिन ह्यरपा के खेत में हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशक डॉ. संजय कुमार ने हींग का पौधा रोपित किया. उन्होंने कहा कि देश में अभी तक हींग की खेती नहीं होती है. अफगानिस्तान से हींग का बीज लाकर संस्थान ने इससे पौधा तैयार करने की तकनीक विकसित की है.

देश में सालाना हींग की खपत करीब 1200 टन है. भारत अफगानिस्तान से 90, उज्वेकिस्तान से 8 और ईरान से 2 फीसदी हींग का हर साल आयात करता है. संस्थान ने पालमपुर स्थित रिसर्च सेंटर में हींग के पौधों की 6 वैरायटी तैयार की है. सालों के शोध के बाद आईएचबीटी ने लाहौल घाटी को हींग उत्पादन के लिए माकूल पाया है.

इसके अलावा उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके, लद्दाख, किन्नौर, जंजैहली का पहाड़ी क्षेत्र भी हींग के लिए उपयुक्त माने गए है. हींग की खेती के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान होना जरूरी है. लाहौल घाटी में फिलहाल ट्रायल के तौर पर मड़ग्रा, बिलिंग, केलांग और क्वारिंग के 7 किसानों को हींग का बीज वितरित किया है. ट्रायल के दौरान करीब 5 बीघा भूमि में हींग की खेती होगी.

पांच साल में तैयार होता है हींग
हींग की फसल पांच साल में तैयार होती है. इसकी जड़ पूरी तरह तैयार होने के बाद पौधे में बीज तैयार होंगे. संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि हिमालय के ऊपरी क्षेत्र को हींग की खेती के लिए उपयुक्त पाया गया है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में हींग की कीमत 35 हजार रुपये प्रति किलो है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत हींग का दुनिया में सबसे अधिक खपत करने वाला देश है. हिमालय क्षेत्रों में हींग उत्पादन होने के बाद किसानों को इसकी अच्छी कीमत मिलेगी.

कुल्लू: औषधीय गुणों से भरपूर हींग की अब देश में ही पैदावार होगी. दुनिया में तैयार होने वाले हींग की भारत में 50 फीसदी खपत होती है. समुद्रतल से करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर लाहौल के क्वारिंग गांव में 17 अक्टूबर को हींग का पौधा लगाया गया. ये पहला मौका है जब देश में हींग का पौधा रोपा गया है.

अफगानिस्तान से लाए गए हींग के बीज की मदद से पालमपुर स्थित हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान की लैब में वैज्ञानिक तरीके से पौधा तैयार किया गया है. संस्थान ने ट्रायल के तौर पर हींग की पैदावार के लिए देश में सबसे पहले लाहौल-स्पीति जिले को चुना है. आईएचबीटी की यह पहल कामयाब हुई तो हींग से इस जनजातीय क्षेत्र के किसानों की आर्थिकी में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा.

वीडियो.

ट्रायल के तौर पर घाटी में फिलहाल केवल 7 किसानों को हींग के पौधे दिए गए हैं. क्वारिंग में पूर्व जिप उपाध्यक्ष रिगजिन ह्यरपा के खेत में हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशक डॉ. संजय कुमार ने हींग का पौधा रोपित किया. उन्होंने कहा कि देश में अभी तक हींग की खेती नहीं होती है. अफगानिस्तान से हींग का बीज लाकर संस्थान ने इससे पौधा तैयार करने की तकनीक विकसित की है.

देश में सालाना हींग की खपत करीब 1200 टन है. भारत अफगानिस्तान से 90, उज्वेकिस्तान से 8 और ईरान से 2 फीसदी हींग का हर साल आयात करता है. संस्थान ने पालमपुर स्थित रिसर्च सेंटर में हींग के पौधों की 6 वैरायटी तैयार की है. सालों के शोध के बाद आईएचबीटी ने लाहौल घाटी को हींग उत्पादन के लिए माकूल पाया है.

इसके अलावा उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके, लद्दाख, किन्नौर, जंजैहली का पहाड़ी क्षेत्र भी हींग के लिए उपयुक्त माने गए है. हींग की खेती के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान होना जरूरी है. लाहौल घाटी में फिलहाल ट्रायल के तौर पर मड़ग्रा, बिलिंग, केलांग और क्वारिंग के 7 किसानों को हींग का बीज वितरित किया है. ट्रायल के दौरान करीब 5 बीघा भूमि में हींग की खेती होगी.

पांच साल में तैयार होता है हींग
हींग की फसल पांच साल में तैयार होती है. इसकी जड़ पूरी तरह तैयार होने के बाद पौधे में बीज तैयार होंगे. संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि हिमालय के ऊपरी क्षेत्र को हींग की खेती के लिए उपयुक्त पाया गया है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में हींग की कीमत 35 हजार रुपये प्रति किलो है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत हींग का दुनिया में सबसे अधिक खपत करने वाला देश है. हिमालय क्षेत्रों में हींग उत्पादन होने के बाद किसानों को इसकी अच्छी कीमत मिलेगी.

Last Updated : Oct 20, 2020, 4:19 PM IST
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