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बड़ा देव छमांहू की निकाली गई रथ यात्रा, चवाली माता की कैद में फंसे देवता - Dev Shribada Chhamu

नवसंवत के मौके पर हर साल कुल्लू में देव कार्यक्रम मनाया जाता है. कोरोना के चलते अबकी बार देव कार्यक्रम सूक्ष्म रूप से मनाया गया. कहा जाता है कि नवसवंत के दिन देवता बड़ा छमांहु तीन महीने बाद देवराज इंद्र की सभा से स्वर्ग लोक से लौटे. इसी मान्यता के चलते आज भी हजारों लोग नवसंवत के दिन देवता के आगमन का स्वागत करते हैं, लेकिन इस बार कोरोना नियमों के कारण यह देव परंपरा सूक्ष्म तरीके से निभाई गई.

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Published : Apr 13, 2021, 7:04 PM IST

कुल्लू: शात्रों के अनुसार सृष्टि की रचना नवसंवत के दिन ही हुई थी. देवता बड़ा छमांहु को ही सृष्टि का रचियता माना जाता है. बड़ा छमांहु का अर्थ है देवताओं के छह सूमहों का एक देव. इसका मतलब है कि एक रथ में 6 देवी-देवता वास करते हैं.

बड़े स्तर पर नहीं मनाया गया देव कार्यक्रम

नवसंवत के मौके पर हर साल कुल्लू में देव कार्यक्रम मनाया जाता है. कोरोना के चलते अबकी बार देव कार्यक्रम सूक्ष्म रूप से मनाया गया. कहा जाता है कि नवसवंत के दिन देवता बड़ा छमांहु तीन महीने बाद देवराज इंद्र की सभा से स्वर्ग लोक से लौटे. इसी मान्यता के चलते आज भी हजारों लोग नवसंवत के दिन देवता के आगमन का स्वागत करते हैं, लेकिन इस बार कोरोना नियमों के कारण यह देव परंपरा सूक्ष्म तरीके से निभाई गई. देवता को सोने चांदी के आभूषणों और फूलों से सुसज्जित कर दर्शन किए. सराज घाटी के कोटला गांव की देवता की कोठी से भव्य रथ यात्रा का आयोजन माता चवाली के मंदिर तक हुआ.

रस्सा लगाकर देव रथ को खींचने का प्रयास

गौर रहे कि देवता बड़ा छमांहु की 44 हजार रानियां हैं और स्वर्ग लोक से लौटते ही वह सर्वप्रथम अपनी रानियों से मिलने जाते हैं. रानियों से मिलने का यह दृश्य आकर्षक और भाव विभोर करने वाला होता है, वहीं यह रानियां देव रथ को अपने कब्जे में ले लेती हैं. हजारों लोगोंं की मौजूदगी में यह दृश्य होता था. इस बार लोगों ने देव मिलन के बाद देव रथ को वापस लाना चाहा तो देव रथ एक जगह स्थिर हो गए. इससे भक्तों ने देव रथ में रस्सा लगाकर खींचना शुरू किया. लोगों के बल से भी देवरथ टस से मस नहीं हुए और एक जगह स्थिर रहे.

जय घोषों के साथ रथ को वापस कोटला गांव पहुंचाया

देव हारियानों ने यह समझ लिया था कि आखिर उनके देवता रानियों के वश में कैद हो चुके हैं. लाख कोशिश करने के बाद भी लोग देव रथ को नहीं खींच पाए. देव हारियानों को पता था कि 44 हजार रानियां जो योगनियों का रूप हैं जुठ लगाने से देवता को छोड़ सकती हैं. हरियानों ने देव रथ में बांधे रस्से में जब जुठ लगाई तो देव रथ एकदम छूट गए और जय घोषों के साथ लोगों ने रथ को खींच कर वापस कोटला गांव पहुंचाया. यहां पर कुछ महिलाओं और अन्य लोगों ने परंपरागत तरीके से देवता का स्वागत किया और नया सवंत पर्व हर घर में शुरू हुआ.

ये भी पढ़ें: IGMC से चोरी हुई ECG मशीन बरामद, आरोपी गिरफ्तार

कुल्लू: शात्रों के अनुसार सृष्टि की रचना नवसंवत के दिन ही हुई थी. देवता बड़ा छमांहु को ही सृष्टि का रचियता माना जाता है. बड़ा छमांहु का अर्थ है देवताओं के छह सूमहों का एक देव. इसका मतलब है कि एक रथ में 6 देवी-देवता वास करते हैं.

बड़े स्तर पर नहीं मनाया गया देव कार्यक्रम

नवसंवत के मौके पर हर साल कुल्लू में देव कार्यक्रम मनाया जाता है. कोरोना के चलते अबकी बार देव कार्यक्रम सूक्ष्म रूप से मनाया गया. कहा जाता है कि नवसवंत के दिन देवता बड़ा छमांहु तीन महीने बाद देवराज इंद्र की सभा से स्वर्ग लोक से लौटे. इसी मान्यता के चलते आज भी हजारों लोग नवसंवत के दिन देवता के आगमन का स्वागत करते हैं, लेकिन इस बार कोरोना नियमों के कारण यह देव परंपरा सूक्ष्म तरीके से निभाई गई. देवता को सोने चांदी के आभूषणों और फूलों से सुसज्जित कर दर्शन किए. सराज घाटी के कोटला गांव की देवता की कोठी से भव्य रथ यात्रा का आयोजन माता चवाली के मंदिर तक हुआ.

रस्सा लगाकर देव रथ को खींचने का प्रयास

गौर रहे कि देवता बड़ा छमांहु की 44 हजार रानियां हैं और स्वर्ग लोक से लौटते ही वह सर्वप्रथम अपनी रानियों से मिलने जाते हैं. रानियों से मिलने का यह दृश्य आकर्षक और भाव विभोर करने वाला होता है, वहीं यह रानियां देव रथ को अपने कब्जे में ले लेती हैं. हजारों लोगोंं की मौजूदगी में यह दृश्य होता था. इस बार लोगों ने देव मिलन के बाद देव रथ को वापस लाना चाहा तो देव रथ एक जगह स्थिर हो गए. इससे भक्तों ने देव रथ में रस्सा लगाकर खींचना शुरू किया. लोगों के बल से भी देवरथ टस से मस नहीं हुए और एक जगह स्थिर रहे.

जय घोषों के साथ रथ को वापस कोटला गांव पहुंचाया

देव हारियानों ने यह समझ लिया था कि आखिर उनके देवता रानियों के वश में कैद हो चुके हैं. लाख कोशिश करने के बाद भी लोग देव रथ को नहीं खींच पाए. देव हारियानों को पता था कि 44 हजार रानियां जो योगनियों का रूप हैं जुठ लगाने से देवता को छोड़ सकती हैं. हरियानों ने देव रथ में बांधे रस्से में जब जुठ लगाई तो देव रथ एकदम छूट गए और जय घोषों के साथ लोगों ने रथ को खींच कर वापस कोटला गांव पहुंचाया. यहां पर कुछ महिलाओं और अन्य लोगों ने परंपरागत तरीके से देवता का स्वागत किया और नया सवंत पर्व हर घर में शुरू हुआ.

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