कुल्लू : उत्तराखंड से लेकर हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में एक कांटेदार पौधा उगता है. जिसे बिच्छू बूटी के नाम से जाना जाता है. इस बूटी का इस्तेमाल मां-बाप अपने बच्चों को डराने धमकाने के लिए करते हैं. लेकिन इस बूटी का इस्तेमाल अब हिमाचल में कपड़ा बनाने के लिए किया जाएगा. मनाली में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को इसकी ट्रेनिंग दी जा रही है.
15 महिलाओं को 30 दिन की ट्रेनिंग- कुल्लू जिले की पर्यटन नगरी मनाली के पास ग्राम पंचायत शलीन में इन दिनों 15 महिलाओं को बिच्छू बूटी से कपड़ा बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है. दो हिस्सों में 15-15 दिन की इस ट्रेनिंग से महिलाओं को इस जंगली बूटी से कपड़ा, थैले, चटाई आदि बनाना सिखाया जाएगा. इस ट्रेनिंग का मकसद स्वयं सहायता समूहों को आर्थिक रूप से मजबूत करना है.
कौन दे रहा है ट्रेनिंग- उत्तराखंड से आए सुरेश सिंह इन महिलाओं को प्रशिक्षण दे रहे हैं. जो उत्तराखंड बांस एवं रेशा विकास परिषद् से जुड़े हैं. सुरेंद्र ने बताया कि उत्तराखंड में भी बिच्छू बूटी का कपड़ा बनाने के साथ-साथ उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं. अब मनाली में भी महिलाओं को इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है. ये प्रशिक्षण 15-15 दिन के दो चरणों में होगा. पहले चरण में महिलाओं को बिच्छू बूटी इकट्ठा करने से लेकर उनके रेशे निकालने, उबालने जैसे प्रोसेसिंग की प्रक्रिया सिखाई जाएगी. जबकि दूसरे चरण में उन्हें कपड़ा बनाने की ट्रेनिंग दी जानी है. इस प्रशिक्षण के बाद महिलाएं बिच्छू बूटी के रेशे से कपड़ा तैयार कर मैट, बैग व अन्य सामान बना सकेंगे.
महिलाएं भी उत्साहित- इस समय यहां 15 महिलाएं बिच्छू बूटी से कपड़ा बनाने की ट्रेनिंग ले रही हैं. कुछ नया सीखने को लेकर सभी उत्साहित हैं. ज्यादातर महिलाएं मनाली के आस-पास गांवों में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं. उन्हें भरोसा है कि ये बिच्छू बूटी से कपड़ा बनाने की ये ट्रेनिंग उनके लिए फायदे का सौदा साबित होगी. प्रशिक्षण ले रही दुर्गा देवी ने बताया कि पुराने समय में ग्रामीण क्षेत्र में लोग भांग के रेशों से कई प्रकार की चीजें तैयार करते थे. लेकिन बिच्छू बूटी से रेशा निकालकर सामान बनाने के बारे में उन्हें पहली बार जानकारी मिली है. ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि इस प्रशिक्षण के बाद स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को काफी फायदा होगा. (benefits of nettle)
प्रशासन भी कर रहा महिलाओं को प्रेरित- जिला कुल्लू के नग्गर खंड की बीडीओ ओशिन शर्मा ने बताया कि हिमाचल में पहली बार बिच्छू बूटी से कपड़ा तैयार किया जाएगा. हालांकि इससे पहले उत्तराखंड और कई अन्य स्थानों पर इससे बने उत्पाद बनाये जाते हैं. लेकिन यहां पहली बार पंचायत की महिलाओं को ये हुनर सिखाया जा रहा है. जिससे ग्रामीण महिलाएं आजीविका भी कमा पाएंगी. जिला कुल्लू में भी जंगलों में बिच्छू बूटी बहुतायत में पाई जाती है. ऐसे में ये ट्रेनिंग लेकर ग्रामीण इलाकों की महिलाएं आत्मनिर्भर बना सकती हैं.
बड़े काम की बिच्छू बूटी- उत्तराखंड में इस बिच्छू बूटी का इस्तेमाल खाने में भी किया जाता है. साग व अन्य व्यंजन बनाने में इस बिच्छू बूटी का इस्तेमाल होता है. धीरे-धीरे बिच्छू बूटी के औषधीय गुण भी सामने आए. जिसके बाद इसका इस्तेमाल औषधियों में भी होता है. जिला कुल्लू के आयुर्वेदिक अस्पताल में तैनात डॉ. मनीष सूद का कहना है कि पहाड़ों पर उगने वाली बिच्छू बूटी के सबसे महत्वपूर्ण गुणों में शरीर को डिटाक्सफाइ करना (विषाक्त पदार्थ निकालना), मेटाबोलिज्म को सुधारना, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना, परिसंचरण में वृद्धि, ऊर्जा के स्तर में सुधार, माहवारी का प्रबंधन, रजोनिवृत्ति के लक्षण कम करना, त्वचा को स्वस्थ रखना, गुर्दों और पित्ताशय की थैली के स्वास्थ्य की सुरक्षा करना, सूजन को कम करना, हार्मोनल गतिविधि को नियमित करना, शुगर की बीमारी (मधुमेह) को रोकना, रक्तचाप कम करना, बवासीर को कम करना और श्वसन प्रक्रिया में सुधार लाना आदि होते हैं. (medicinal properties of nettle leaf)
डॉ. मनीष सूद के मुताबिक बिच्छू बूटी दिल और लिवर दोनों के लिए गुणकारी साबित होती हैं. इसमें इथेनॉलिक एक्सट्रैक्ट (Ethanolic extract) होता है, जो हृदय से जुड़ी समस्या एथेरोस्क्लोरोटिक से सुरक्षित रख सकता है. कई लोग इसका इस्तेमाल शरीर में खुजली जैसी कई अन्य समस्याओं से निजात पाने के लिए करते हैं क्योंकि इसमें एंटी-अस्थमैटिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाया जाता है. नेटल लीफ के इस्तेमाल से स्किन से होने वाली समस्याएं जैसे- एक्जिमा और दाद की समस्याओं से बचाव किया जा सकता है (medicinal properties of nettle)
बिच्छू बूटी के फायदे इसे एक विशेष औषधी बनाते हैं. इस बिच्छू बूटी में विटामिन ए, सी, आयरन और कैल्शियम पाया जाता है. उत्तराखंड के अलावा ये हिमाचल के चंबा, मंडी, कुल्लू, लाहौल-स्पीति, शिमला, रामपुर में पाई जाती है. इसके पत्तों पर बारीक कांटे होते हैं जो शरीर पर चुभ जाएं तो जलन होती है. पहले लोग इस पौधे को बेकार मानते थे और इसका इस्तेमाल सिर्फ गांव में बच्चों को डराने धमकाने के लिए किया जाता था. वहीं बिच्छू बूटी से बने फैब्रिक की कीमत 200 से 250 रुपये मीटर तक हो सकती है. (benefits of nettle leaf)
आईआईटी मंडी के द्वारा भी इस विषय में प्रयास किए गए हैं. आईआईटी शोधकर्ता बिच्छू बूटी से बने धागे को कॉटन के साथ मिलाकर उच्च गुणवत्ता वाला फैब्रिक बनाने में सफल रहे हैं. ये फैब्रिक सर्दी में शरीर को गर्म और गर्मी में ठंडा रखेगा और रंगाई में प्राकृतिक रंगों का उपयोग होगा. अब शोधकर्ता बिच्छू बूटी के अलावा हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाली अन्य घास की कई किस्मों से भी फाइबर-फैब्रिक बनाने की तकनीक पर काम कर रहे हैं. यदि ऐसा हुआ तो हिमाचल के जंगलों को बिच्छू बूटी की झाड़ियों से छुटकारा मिलेगा और पौधरोपण क्षेत्र का दायरा भी बढ़ेगा. ऐसे में भविष्य के लिए इस फैब्रिक के उत्पादन में लगी कंपनियों के लिए बिच्छू बूटी एकत्र करवाने के लिए स्वयं सहायता समूहों और महिला मंडलों की मदद लिए जाने की योजना है. इससे रोजगार के अवसर सृजित होने से लोगों की आर्थिकी सुदृढ़ होगी.
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