कुल्लू: विश्व का सबसे बड़ा देव महाकुंभ सात दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव इस बार समृद्ध संस्कृति के बिना संपन्न हो गया है. रावण की लंका जलाई गई और बुराई का अंत करके अच्छाई पर जीत पाई वहीं, कोरोना के भय से बुलाए गए सीमित देवी-देवताओं ने रथयात्रा में भाग लिया.
इस रथयात्रा में हजारों लोगों की जगह इस बार बहुत कम लोगों ने भाग लेकर जहां भगवान रघुनाथ के जयघोषों के नारे लगाए. वहीं, रथ खींचकर पूण्य भी कमाया. प्रशासन ने रथयात्रा से पहले एक बार फिर कर्फ्यू लगाया और जिला मुख्यालय में अनावश्यक लोगों को प्रवेश नहीं करने दिया.
देवी-देवता दशहरा कमेटी व प्रशासन के इस रवैया से नाराज हैं और देव प्रकोप की भी भविष्यवाणी की. सात दिनों तक ढालपुर मैदान देवी-देवताओं के विराजमान होने से स्वर्ग बना रहता था, लेकिन इस बार यह नजारे देखने को नहीं मिले और न ही लोग एक साथ सैंकड़ों देवी-देवताओं के दर्शन कर पाए.
देवताओं के इस महाकुंभ में हजारों लोगों सहित सैंकड़ों देवी-देवताा भी डुबकी लगाते थे, लेकिन इस बार पूरी परंपरा कोरोना की भेंट चढ़ा न मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अंतरराष्ट्रीय लाल चंद प्रार्थी कलाकेंद्र में दशहरा उत्सव का विधिवत समापन करने आए और न ही अठारह करडु देवी-देवताओं को बुलाया गया.
सिर्फ सात देवी-देवताओं का दिया गया था निमंत्रण
विश्व के सबसे बड़े देव महाकुंभ में अनूठी परंपराओं का संगम भी नहीं हो सका. कुल्लू दशहरा पर्व में रघुनाथ की रथ यात्रा के बाद विधिवत रूप से शनिवार को को लंका दहन के नजारे के सीमित लोग ही गवाही बने.
लिहाजा, सात दिनों तक चलने वाले इस महाकुंभ में न तो सैंकड़ों देवी-देवताओं के साथ रघुनाथ जी चल सके और न ही अन्य संस्कृति का निर्वाह हो सका. हुई तो सिर्फ रघुनाथ जी की रथयात्रा. लंका पर चढ़ाई कर रावण परिवार के साथ बुराई का भी अंत किया है.
गोबर से बनाए गए थे रावण, मेघनाथ व कुंभकर्ण के पुतले
लंका चढ़ाई के लिए हुई रथ यात्रा में यहां पहुंचे सभी देवी-देवताओं ने भाग लिया. लंका दहन के साथ ही अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का समापन हुआ. गोबर के बने रावण मेघनाथ व कुंभकर्ण को तीर से भेदने के बाद लंका में आग लगाई गई.
इससे पहले दिन के समय कुल्लू के राजा सुखपाल में बैठकर ढालपुर के कलाकेंद्र मैदान में पहुंचे और महाराजा के जमलू, पुंडीर देवता नारायण व वीर देवता की दराग और रघुनाथ जी की छड़ व नरसिंह भगवान की घोड़ी भी राजा के साथ कला केंद्र मैदान पहुंची, जहां खड़की जाच का आयोजन हुआ. इसके बाद ही रथ यात्रा शुरू हुई. रथयात्रा सफलतापूर्वक संपन्न होते ही देवी-देवताओं ने अपने-अपने स्थलों की ओर जाना आरंभ कर दिया है.
देवी हिडिंबा के आते ही हुआ यात्रा का शुभारंभ
राजपरिवार के सदस्य महेश्वर सिंह, दानवेंद्र सिंह, हितेश्वर सिंहने अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित होकर रघुनाथ जी की रथयात्रा की अगुवाई की. इस रथयात्रा में देवी हिडिंबा के आते ही यात्रा का शुभारंभ हुआ. भगवान रघुनाथ जी की रथ यात्रा आरंभ होते ही जयाकारों के उदघोषोंं व वाद्ययंत्रों से सारा वातावरण कुछ क्षणों के लिए गुजायमान हो गया.
रथयात्रा पूरी होने पर रथ को ढालपुर मैदान से रथ मैदान तक लाया गया. जहां से रघुनाथ जी की प्रतिमा को पालकी में प्रतिष्ठित करके उनके कारकूनों, हारियानों व सेवक ढोल-नगाड़ों व जयकारों के उदघोषों के साथ रघुनाथ में उनके स्थाई मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद स्थापित किया गया. इसी के साथ सात दिवसीय कुल्लू दशहरा सपंन्न हो गया. रघुनाथ जी की रथ यात्रा को सफलतापूर्वक संपन्न करवाकर जिला भर से आए देवी-देवताओं ने अपने स्थलों की ओर जाना आरंभ कर दिया.
लिहाजा, अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में सात दिन के बाद रावण का वध कर व लंका दहन करके जिला के सभी देवी-देवता अपने देवालय वापस लौट गए. लंका पर चढ़ाई के लिए हुई रघुनाथ यात्रा में भाग लेने के बाद यहां पहुंचे 17 से अधिक देवी-देवताओं ने घर वापसी के लिए कूच किया है. सात दिनों तक चले इस ऐतिहासिक देव महाकुंभ में धरती पर उतरे देवता रवाना हो गए हैं और ढालपुर मैदान देवी-देवताओं के बिना सूना पड़ गया है.
पढ़ें: व्यपारियों में जगी उम्मीद, सात माह बाद पटरी पर लौटेगा कारोबार