कुल्लू: हिमाचल प्रदेश भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) जैविक विविधता का मेगा हॉटस्पॉट है. यहां पर औषधीय पौधे विविधिकरण एवं अतिरिक्त आय का अच्छा विकल्प हैं. ऐसे में हिमाचल प्रदेश में भांग की खेती के लिए भी सरकार जल्द नीति बनाए जाने की मांग भी की जा रही है. यह बात सीपीएस सुंदर ठाकुर ने मनाली में औषधीय पौधों की खेती विषय को लेकर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही. मनाली में हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण एवं संबद्ध खेल संस्थान में 'महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की खेती' स्थानीय समुदायों की आय बढ़ाने का एक विकल्प' विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया.
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित किया जा रहा है. वहीं, इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में लाहौल स्पीति, कुल्लू, कोटी एवं पुजरली-शिमला क्षेत्र के अध्यापक, पंचायत प्रतिनिधि, महिला मण्डल तथा युवा मण्डल के सदस्य, बैंक अधिकारी, गैर सरकारी संगठन इत्यादि के लगभग 30 प्रतिभागियों ने भाग ले रहे है. प्रशिक्षण कार्यक्रम उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता मुख्य संसदीय सचिव, ऊर्जा, वन, पर्यटन व परिवहन सुंदर ठाकुर ने की.
इस दौरान उन्होंने औषधीय पौधों के क्षेत्र में काम करने और इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करके विभिन्न हितधारकों के लिए अनुसंधान निष्कर्षों के प्रसार में हिमालय वन अनुसंधान संस्थान के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने कहा कि भांग और औषधीय खेती से किसानों को अतिरिक्त आय का साधन प्राप्त होगा और सरकार की ओर से जो भी सहयोग की आवश्यकता होगी. उसमें सरकार पूर्ण सहयोग करेगी.
वहीं, कार्यक्रम में हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला के निदेशक डॉ. संदीप शर्मा ने कहा कि हिमालयन क्षेत्र में औशधीय पौधों की लगभग 1,748 प्रजातियां हैं. हिमाचल प्रदेश में लगभग 800 औषधीय पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं और इसमें से 165 औषधीय पौधों प्रजातियों पर व्यापार होता है, लेकिन अब अत्यधिक दोहन के कारण औषधीय पौधों की 60 प्रजातियां खतरे में हैं. उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से वैज्ञानिक खेती और टिकाऊ कटाई समय की आवश्यकता है.
सूबे में उच्च मूल्य वाले औषधीय पौधों की व्यावसायिक खेती करके इसे एक स्थायी आय सृजन गतिविधि के रूप में बनाने की बहुत गुंजाइश है. इन मूल्यवान औषधीय पौधों की रक्षा और संरक्षण का एकमात्र तरीका उनका कृषिकरण है. इसके अलावा प्राकृतिक प्राकृतिक वास में भी इन्हे सरंक्षित करना होगा. उन्होंने कडु और निहानी की संस्थान द्वारा विकसित तकनीक पर भी जानकारी सांझा की.
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