कुल्लू: देश में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन जारी है. 21 दिनों के लॉकडाउन को अभी 2 हफ्ते ही बीते हैं. सड़कों पर सरपट दौड़ती, धुआं उड़ाती गाड़ियां गायब हैं. सभी होटल रेस्तरां और फैक्ट्रियां बंद हैं. पर्यटकों की आवाजाही पूरी तरह से ठप है. लॉकडाउन के चलते पसरे इस सन्नाटे में आप भले अपने घरों में कैद हो गए हों, लेकिन कुदरत खुली हवा में सांस ले रही है.
न नदियों में डंपींग हो रही है और न हवा में गाड़ियों और कारखानों का विषैला धुंआ घुल रहा है. ऐसे में प्रकृति खुलकर सांस ले रही है, जिसका असर दो हफ्तों के लॉकडाउन में दिखने लगा है. कुल्लू में कल-कल बहती ब्यास नदी में राफ्टिंग और अन्य व्यवसायिक गतिविधियां बंद हैं. जिसके चलते ब्यास नदी का पानी इतना साफ दिख रहा है कि तलहटी में छिपे पत्थर भी दिखाई देने लगे हैं.
ब्यास नदी का नाम महर्षि ब्यास के नाम पर पड़ा है. ब्यास रोहतांग दर्रे के साथ लगते ब्यास कुंड से निकलती है. फिर कुल्लू, मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा से होते हुए पंजाब के रास्ते पाकिस्तान तक जाती है.
प्रदेश में मनाली, कुल्लू, बजौरा, औट, मंडी, सुजानपुर, टीहरा और देहरा व्यास किनारे बसे प्रमुख कस्बे हैं. हिमाचल में नदी की लंबाई 260 किलोमीटर है.. कुल्लू में सैंज और पार्वती नदी व्यास की सहायक नदियां हैं.. वहीं, कांगड़ा में न्यूगल और चक्की व्यास की सहायक नदियां हैं..
पर्यटकों की मौज मस्ती से लेकर फैक्ट्रियां इन नदियों को गंदा करती है... इन जल धाराओं को प्रदूषित करने में हमारी आस्था का भी हाथ है... ये नदियां साल दर साल इंसानी गलतियों की बदौलत जहरीली होती रहती हैं... सरकारें करोड़ों का बजट तैयार कर भी इन्हें साफ नहीं कर पाती... लेकिन लॉकडाउन के दौरान कुदरत ने मानों ये रास्ता खुद निकाल लिया है. ये लॉकडाउन एक दिन खत्म हो जाएगा और फैक्ट्रियों की गंदगी से लेकर इंसानों का फैलाया कचरा इन नदियों तक पहुंचेगा. इसलिये सरकार और प्रशासन को चाहिए कि कुदरत के मौजूदा रूप को बरकरार रखा जाए, भले इसके लिए कुछ कड़े नियम बनाए जाएं.