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LAC पर सालों पुरानी दोस्ती में आई खटास, टूटे दो गांव के रिश्ते - India-China border dispute

चीन सीमा से सटा किन्नौर का नमज्ञा गांव कई ऐतिहासिक लम्हों का गवाह रह चुका है. नमज्ञा गांव और चीन का शिपकिला गांव कभी दोनों देशों के बीच दोस्ती की मिसाल का एक साक्ष्य हुआ करता था. दोनों देशों की सीमाओं के ग्रामीण एक दूसरे के मित्र हुआ करते थे और व्यापार के लिए सीमा के आर-पार यात्रा किया करते थे.

special story on Namgya village of kinnaur
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Published : Jun 30, 2020, 7:35 PM IST

Updated : Jul 1, 2020, 2:42 PM IST

किन्नौर: भारत-चीन के बीच सीमा को लेकर जारी तनाव के बीच ईटीवी भारत चीनी सीमा से सटे गावों में ग्राउंड जीरो पर हालात जानने पहुंचा. जिला मुख्यालय रिकांगपिओ से नमज्ञा की दूरी 90 किलोमीटर है.

नमज्ञा गांव पहुंचने के बाद जब हमने ग्रामीणों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि सेना ने आज तक नमज्ञा गांव को परिवार की तरह संभाल कर रखा है. इसी बीच बातचीत के दौरान नमज्ञा गांव के पंचायत प्रधान रहे देवी राम नेगी ने भारत-चीन के बीच के रिश्तों के कई किस्से सुनाए.

नेगी ने बताया कि 1954 से 1958 तक किन्नौर और चीन के गांव शिपकिला के साथ खूब व्यापार होते थे. तब भारत-चीन की सीमा पर कोई सेना तैनात नहीं थी. दोनों देशों की सीमाओं के ग्रामीण एक दूसरे के मित्र हुआ करते थे और व्यापार के लिए सीमा के आर-पार आना-जाना लगा रहता था.

वीडियो रिपोर्ट.

चीन के आधिपत्य के बाद शिपकी गांव का भी चीन में विलय हो गया. देवी राम ने कहा कि 1958 को वह पहली बार अपने पिता के साथ तिब्बत की व्यापार यात्रा पर गए थे. उस दौरान तिब्बत और किन्नौर में खाद्य सामग्री का व्यापार होता था. चीनी सीमा का व्यापार भारतीय मुद्रा में नहीं बल्कि बार्टर सिस्टम (वस्तु विनिमय) से किया जाता था.

देवी राम ने बताया कि किन्नौर-चीन सीमा का नाम पहले शिपकिला नहीं था. इसका नाम पीमा-ला था. पीमा मतलब दो दर्रों को जोड़ने वाला और ला का मतलब पहाड़ी रास्ता, लेकिन अब इसका नाम चीन के शिपकी गांव के सीमा से सटने के कारण शिपकिला रखा गया है. चीन के शिपकी और भारत के शिपकिला गांव के लोग दोस्त हुआ करते थे.

Namgya village of kinnaur
नमज्ञा गांव.

चीन ने जब तिब्बत पर कब्जा कर लिया था उसके बाद किन्नौर के लोगों का संपर्क शिपकी गांव से हमेशा के लिए टूट गया. उनके व्यापारिक मित्र आज भी वहां हैं, लेकिन सीमा विवाद के बाद अब व्यापार के साथ दिल के रिश्ते भी चीन ने खत्म करवा दिए हैं.

1962 में जब चीन ने भारत के साथ युद्ध छेड़ा इसके बाद सीमा विवाद शुरू हुआ और भारतीय सेना ने नमज्ञा गांव में अपना कैंप स्थापित किया. सरकार ने व्यापार पर भी सख्ती बरतना शुरू किया. सीमा बंद होने के बाद भी 1965 से 1994 तक शिपकी व किन्नौर के लोग कस्टम विभाग की निगरानी में बॉर्डर पर व्यापार मेले में आते थे. व्यापार सिर्फ वस्तुओं के आदान प्रदान में होता था. लोग सामान को घोड़ों पर लाद कर लाते और ले जाते थे.

व्यापार में किन्नौर से मसाले, दाल, नमक, पश्म, खुरमानी, अखरोट, हल्दी, चीनी सीमा पर ले जाते थे और चीनी सीमा के ग्रामीण व्यापारी चीन अधिपत्य तिब्बत से थर्मस, चमड़े के जूते, रेशम, हींग, कांच से बनी चीजें किन्नौर के व्यापारियों के लिए लाते थे.

क्या है किन्नौर-लद्दाख-तिब्बत से जुड़ा इतिहास

रामपुर रियासत के राजा केहर सिंह, तिब्बत के राजा और लद्दाख के राजा के मध्य एक संधि हुई थी. जिसमें तीनों राजाओं ने अपने-अपने क्षेत्र पर एक पत्थर पर चांदी की मोहर लगाकर किन्नौर, लद्दाख और चीन सीमा के बीच किसी अनजान जगह पर दबा दिया था.

देवी राम ने कहा कि सूत्रों के मुताबिक संधि में चांदी की मोहर वाले पत्थर को चीन ढूंढने में लगा हुआ है. देवी राम ने कहा कि मान्यताओं मुताबिक रामपुर रियासत के राजा जब तिब्बत की यात्रा करने गए थे तो तिब्बत के राजा ने अपनी बेटी का हाथ रामपुर रियासत के राजा के हाथ में दे दिया था.

इसके बाद तिब्बत का कुछ हिस्सा रामपुर रियासत के राजा कहर सिंह को उपहार के तौर पर दिया था. जिसे आज हांगरंग घाटी के नाम से भी जाना जाता है. अब इसमें कितनी सच्चाई है यह शोध का विषय भी है, लेकिन कई साक्ष्य शिपकी-किन्नौर के रिश्तों को भी दिखाते हैं.

किन्नौर: भारत-चीन के बीच सीमा को लेकर जारी तनाव के बीच ईटीवी भारत चीनी सीमा से सटे गावों में ग्राउंड जीरो पर हालात जानने पहुंचा. जिला मुख्यालय रिकांगपिओ से नमज्ञा की दूरी 90 किलोमीटर है.

नमज्ञा गांव पहुंचने के बाद जब हमने ग्रामीणों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि सेना ने आज तक नमज्ञा गांव को परिवार की तरह संभाल कर रखा है. इसी बीच बातचीत के दौरान नमज्ञा गांव के पंचायत प्रधान रहे देवी राम नेगी ने भारत-चीन के बीच के रिश्तों के कई किस्से सुनाए.

नेगी ने बताया कि 1954 से 1958 तक किन्नौर और चीन के गांव शिपकिला के साथ खूब व्यापार होते थे. तब भारत-चीन की सीमा पर कोई सेना तैनात नहीं थी. दोनों देशों की सीमाओं के ग्रामीण एक दूसरे के मित्र हुआ करते थे और व्यापार के लिए सीमा के आर-पार आना-जाना लगा रहता था.

वीडियो रिपोर्ट.

चीन के आधिपत्य के बाद शिपकी गांव का भी चीन में विलय हो गया. देवी राम ने कहा कि 1958 को वह पहली बार अपने पिता के साथ तिब्बत की व्यापार यात्रा पर गए थे. उस दौरान तिब्बत और किन्नौर में खाद्य सामग्री का व्यापार होता था. चीनी सीमा का व्यापार भारतीय मुद्रा में नहीं बल्कि बार्टर सिस्टम (वस्तु विनिमय) से किया जाता था.

देवी राम ने बताया कि किन्नौर-चीन सीमा का नाम पहले शिपकिला नहीं था. इसका नाम पीमा-ला था. पीमा मतलब दो दर्रों को जोड़ने वाला और ला का मतलब पहाड़ी रास्ता, लेकिन अब इसका नाम चीन के शिपकी गांव के सीमा से सटने के कारण शिपकिला रखा गया है. चीन के शिपकी और भारत के शिपकिला गांव के लोग दोस्त हुआ करते थे.

Namgya village of kinnaur
नमज्ञा गांव.

चीन ने जब तिब्बत पर कब्जा कर लिया था उसके बाद किन्नौर के लोगों का संपर्क शिपकी गांव से हमेशा के लिए टूट गया. उनके व्यापारिक मित्र आज भी वहां हैं, लेकिन सीमा विवाद के बाद अब व्यापार के साथ दिल के रिश्ते भी चीन ने खत्म करवा दिए हैं.

1962 में जब चीन ने भारत के साथ युद्ध छेड़ा इसके बाद सीमा विवाद शुरू हुआ और भारतीय सेना ने नमज्ञा गांव में अपना कैंप स्थापित किया. सरकार ने व्यापार पर भी सख्ती बरतना शुरू किया. सीमा बंद होने के बाद भी 1965 से 1994 तक शिपकी व किन्नौर के लोग कस्टम विभाग की निगरानी में बॉर्डर पर व्यापार मेले में आते थे. व्यापार सिर्फ वस्तुओं के आदान प्रदान में होता था. लोग सामान को घोड़ों पर लाद कर लाते और ले जाते थे.

व्यापार में किन्नौर से मसाले, दाल, नमक, पश्म, खुरमानी, अखरोट, हल्दी, चीनी सीमा पर ले जाते थे और चीनी सीमा के ग्रामीण व्यापारी चीन अधिपत्य तिब्बत से थर्मस, चमड़े के जूते, रेशम, हींग, कांच से बनी चीजें किन्नौर के व्यापारियों के लिए लाते थे.

क्या है किन्नौर-लद्दाख-तिब्बत से जुड़ा इतिहास

रामपुर रियासत के राजा केहर सिंह, तिब्बत के राजा और लद्दाख के राजा के मध्य एक संधि हुई थी. जिसमें तीनों राजाओं ने अपने-अपने क्षेत्र पर एक पत्थर पर चांदी की मोहर लगाकर किन्नौर, लद्दाख और चीन सीमा के बीच किसी अनजान जगह पर दबा दिया था.

देवी राम ने कहा कि सूत्रों के मुताबिक संधि में चांदी की मोहर वाले पत्थर को चीन ढूंढने में लगा हुआ है. देवी राम ने कहा कि मान्यताओं मुताबिक रामपुर रियासत के राजा जब तिब्बत की यात्रा करने गए थे तो तिब्बत के राजा ने अपनी बेटी का हाथ रामपुर रियासत के राजा के हाथ में दे दिया था.

इसके बाद तिब्बत का कुछ हिस्सा रामपुर रियासत के राजा कहर सिंह को उपहार के तौर पर दिया था. जिसे आज हांगरंग घाटी के नाम से भी जाना जाता है. अब इसमें कितनी सच्चाई है यह शोध का विषय भी है, लेकिन कई साक्ष्य शिपकी-किन्नौर के रिश्तों को भी दिखाते हैं.

Last Updated : Jul 1, 2020, 2:42 PM IST
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