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धर्मशाला: पीला रतुआ से फसल के बचाव के लिए कृषि विभाग तैयार- डॉ. अशोक कुमार - kangra news hindi

पीला रतुआ से फसल को बचाने के लिए हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग पूरी तरह तैयार है. पीला रतुआ एक फंगस की तरह है जो कि फसल को खराब कर देती है. जिला कांगड़ा और ऊना व अन्य जिलों में भी फसलों में यह बीमारी होती है. ऐसे में विभाग द्वारा टीमों का गठन किया गया है और चिन्हित किए गए स्थानों पर विभागीय टीम नजर रखे हुए है.(Yellow rust disease in crops in Himachal)

What is yellow rust disease
फसल में पीला रतुआ की बीमारी
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Published : Dec 30, 2022, 3:33 PM IST

फसल में पीला रतुआ की बीमारी

धर्मशाला: दिसंबर माह के अंत में गेहूं की फसल में पीला रतुआ की समस्या सामने आती है. ऐसे में किसान परेशान न हों, इसके लिए कृषि विभाग ने कमर कसते हुए टीमें गठित कर ली हैं. यही नहीं हर वर्ष जिन-जिन क्षेत्रों में पीला रतुआ की समस्या पेश आती है, उन एरिया को कृषि विभाग ने हॉटस्पॉट के रूप में चिन्हित किया है. जब पीला रतुआ के मामले सामने आते हैं तो सबसे पहले विभाग की टीमें हॉटस्पॉट को ही चेक करती हैं.

क्या है पीला रतुआ: कृषि विभाग की मानें तो पीला रतुआ जो कि फंगस/फंफूद है, एक राष्ट्रीय समस्या है. खेतों में इस रोग का संक्रमण एक छोटे गोलाकार क्षेत्र से शुरू होता है जो धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाता है. इस रोग से प्रभावित खेतों में फसल की पत्तियों से जमीन पर गिरा हुआ पीले रंग का पाउडर (हल्दी जैसा) देखा जा सकता है. पत्तियों को छूने पर यह हल्दी जैसा पाउडर हाथों पर लग जाता है. जिला कांगड़ा ऊना व अन्य जिलों में भी फसलों में यह बीमारी होती है. विभाग की ओर से समय पर किसानों को जागरूक करने के लिए ज्वाइंट टीमें बनती जिला स्तर पर बनाई जाती हैं. (What is yellow rust disease)

बीमारी के कण पौधों में करते हैं इन्फेक्शन: ज्यादातर दिसंबर अंत में यह पीला रतुआ की बीमारी शुरू होती है. गेहूं के पौधे निकल आते हैं, खेतों में नमी भी होती है, यदि बीमारी के कण हैं तो वो पौधों में इन्फेक्शन कर देते हैं और पत्तों पर हल्दी की तरह का पाउडर आ जाता है. किसान इसे आसानी से महसूस कर सकते हैं, यही पीला रतुआ के लक्षण हैं. जहां अच्छी किस्म की गेहूं का बीज बीजा जाता है, वहां इस तरह की समस्या नहीं आती. (Yellow rust disease in crops in Himachal)

कहां-कहां हैं हॉटस्पॉट: पीला रतुआ को लेकर जिला कांगड़ा में कुछ हॉटस्पॉट चिन्हित किए गए हैं, जहां हर साल यह बीमारी आती है. कृषि विभाग की टीम सबसे पहले हॉटस्पॉट को चेक करती है. रैत ब्लॉक में बागडू-पुहाड़ा एरिया में पीला रतुआ के लक्षण देखे जा सकते हैं, यदि पुरानी वैरायटी लगी होगी. ज्वालाजी के पास भी बौहण भाटी भी हॉटस्पाट है. देहरा ब्लॉक में घलौर चनियारा में हॉटस्पाट है. परागपुर में भी कुछ पीला रतुआ के हॉटस्पाट हैं. गेहूं की फसल में यदि पीले रतुए के लक्षण दिखाई दें तो किसानों को 200 मिली लीटर प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी दवाई प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर साफ मौसम में छिड़काव करना चाहिए. यदि एक छिड़काव का असर हो तो 15 दिन के बाद दूसरा छिड़काव करना चाहिए. (protect crops from yellow rust)

ये भी पढ़ें: किन्नौर में बर्फबारी, तापमान शून्य से पार, सैलानियों को एडवाइजरी जारी

फसल में पीला रतुआ की बीमारी

धर्मशाला: दिसंबर माह के अंत में गेहूं की फसल में पीला रतुआ की समस्या सामने आती है. ऐसे में किसान परेशान न हों, इसके लिए कृषि विभाग ने कमर कसते हुए टीमें गठित कर ली हैं. यही नहीं हर वर्ष जिन-जिन क्षेत्रों में पीला रतुआ की समस्या पेश आती है, उन एरिया को कृषि विभाग ने हॉटस्पॉट के रूप में चिन्हित किया है. जब पीला रतुआ के मामले सामने आते हैं तो सबसे पहले विभाग की टीमें हॉटस्पॉट को ही चेक करती हैं.

क्या है पीला रतुआ: कृषि विभाग की मानें तो पीला रतुआ जो कि फंगस/फंफूद है, एक राष्ट्रीय समस्या है. खेतों में इस रोग का संक्रमण एक छोटे गोलाकार क्षेत्र से शुरू होता है जो धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाता है. इस रोग से प्रभावित खेतों में फसल की पत्तियों से जमीन पर गिरा हुआ पीले रंग का पाउडर (हल्दी जैसा) देखा जा सकता है. पत्तियों को छूने पर यह हल्दी जैसा पाउडर हाथों पर लग जाता है. जिला कांगड़ा ऊना व अन्य जिलों में भी फसलों में यह बीमारी होती है. विभाग की ओर से समय पर किसानों को जागरूक करने के लिए ज्वाइंट टीमें बनती जिला स्तर पर बनाई जाती हैं. (What is yellow rust disease)

बीमारी के कण पौधों में करते हैं इन्फेक्शन: ज्यादातर दिसंबर अंत में यह पीला रतुआ की बीमारी शुरू होती है. गेहूं के पौधे निकल आते हैं, खेतों में नमी भी होती है, यदि बीमारी के कण हैं तो वो पौधों में इन्फेक्शन कर देते हैं और पत्तों पर हल्दी की तरह का पाउडर आ जाता है. किसान इसे आसानी से महसूस कर सकते हैं, यही पीला रतुआ के लक्षण हैं. जहां अच्छी किस्म की गेहूं का बीज बीजा जाता है, वहां इस तरह की समस्या नहीं आती. (Yellow rust disease in crops in Himachal)

कहां-कहां हैं हॉटस्पॉट: पीला रतुआ को लेकर जिला कांगड़ा में कुछ हॉटस्पॉट चिन्हित किए गए हैं, जहां हर साल यह बीमारी आती है. कृषि विभाग की टीम सबसे पहले हॉटस्पॉट को चेक करती है. रैत ब्लॉक में बागडू-पुहाड़ा एरिया में पीला रतुआ के लक्षण देखे जा सकते हैं, यदि पुरानी वैरायटी लगी होगी. ज्वालाजी के पास भी बौहण भाटी भी हॉटस्पाट है. देहरा ब्लॉक में घलौर चनियारा में हॉटस्पाट है. परागपुर में भी कुछ पीला रतुआ के हॉटस्पाट हैं. गेहूं की फसल में यदि पीले रतुए के लक्षण दिखाई दें तो किसानों को 200 मिली लीटर प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी दवाई प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर साफ मौसम में छिड़काव करना चाहिए. यदि एक छिड़काव का असर हो तो 15 दिन के बाद दूसरा छिड़काव करना चाहिए. (protect crops from yellow rust)

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